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अमृता और काका रोशन सिंह

Story Info
Amritha aur kaka ji romance.
2.8k words
3.87
2.7k
4
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अमृता और काका रोशन सिंह

स्वीट सुधा २६

उस वक़्त शाम के पांच बजे थे! अमृता अपनी छोटीसी मकान के वरांडेमे बैठकर चावल बीन रही थी! इतने मेँ एक आदमी लकड़ी का पाठक ठेलकर अंदर आ रहा था!

उसे देखकर अमृता उठ कड़ी हुई और बोली। .. "अरे... काकाजी आप? आइए कैसे आना हुआ?"

"अमृता बेटी सरकारी दफ्तर मेँ काम पड गया है ... पूरन कैसा है?" आने वाला जिसका नाम रोशन सिंह है पुछा! रोशन सिंह अमृता के पति पूरन सिंह का दूर का रिश्तेदार है! पूरन उसे मामा कहता था, इसीलिए अमृता उसे काकाजी कहती है! रोशन सिंह एक पचास के ऊपर का हट्टा कट्टा आदमी है! तावदार मूछड़, रोबीला आवाज़ और लम्बा कद उसे और भी रोबीला बनाते है!

पिछले तीन साल से हर तीन चार महिने मे एक बार वह जरूर पूरन के यहाँ आजाता था... किसी न किसी सरकारी दफ्तर मेँ किसी काम के लिए! पिछले तीन साल मेँ उसने कोई बारह चौदह बार पूरन के घर आया होगा! वह जब भी आता था, शाम के वक़्त आता था और रात वहीं ठहरकर, सवेरे सरकरी दफ्तर मेँ काम निपटाकर वहींसे गांव चला जाता था!

"काकाजी... वह तो टरक लेकर पुणे गए है..." रोशन के सवाल का जावाब दी अमृता ने! पूरन सिंह एक ट्रक ड्राइवर है!

"ओह!" रोशन सिंह ने बोलै और फिरसे पुछा... "बच्चे किधर है? दिख नहीं रहे.."

"जी आज कल नवरात्री के त्यौहार के दिन है! उन्हें माँ अपने यहाँ लेगाई है! बच्चे तो अब छुट्टियों के बाद ही आएंगे... वह भी अच्छे है"!

"अरे...यह तो अच्छा नहीं हुआ, खैर मैं चलता हूँ! आज रात कसी पहचान वाले के यहाँ रुकजाता हूँ या नहीं तो किसी होटेल ..." और वह उठने लगा!

"...अरे नहीं काका यह क्या बात कर रहे है... वह नहीं तो क्या मै तो हूँ ना.. और वैसे भी अगर उन्हें पता चला की आप आकर चले गए है तो वह नाराज़ हो जाएंगे! नहीं आप रुकिए, मैं आप के लिए भी चावल चढाती हूँ! तब तक आप नाहा लीजिये और आराम कीजिए" कहते अमृता चावल पतीला लेकर अंदर चली गयी! थोड़ी देर बाद वह बहार आई और एक तौलिया और अपने पति का एक लुंगी रोशन को थमाती बोली "आप नाहा लीजिये" कह वह अंदर चली गयी!

तब पहली बार रोशन सिंह ने अंदर जाती अमृता को एक अलग ही नजरोंसे देखा! अमृता कोई 28 (२८) साल की साधरण नयन नक्शों वाली औरत है! लेकिन उसका सारा बदन रस से भरा है! उसकी बड़ी बड़ी घाटीले चूचियां, मदभरी नितम्ब, हसीन मुस्कराहट और तीखी नयन नक्श वाली औरत है! वह दो बच्चों की माँ है! बेटा 7 साल तो बेटी 5 साल की!

रोशन सिंह ने अमृता की मादकता से भरी चूतड़ और मटकती चाल के साथ उछलती बड़ी बड़ी चूचियों को पहली बार एक अलग ही नाजाओं से देखा तो और उसके आँखों में वासना के डोरे उभर आए और उसकी धोती मे सुर सुरहट होने लगी! 'मौका अच्चा है कोशिश करके देखते हैं' वह सोचा और तौलिया लेकर कुवाँ के पास नहाने चला गया!

उसने अपनी धोती और लंगोटी उतारा और एक पतला सा कपडा कमर मे लपेट कर अपने बदन पर पनी उँडेला! जिस के वजह से कपडा गीला हो गया और उसके बदन से चिपक गयी!

अमृता के मदभरे बदन को देख कर और उसके बारे में सोंचकर रोशन सिंह कि मर्दानगी में जान आने लगी! उसमे उभार आगया! इसे देख कर रोशन सिंह के मन में एक खयाल आया और "अमृता बेटी..." बुलाया!

"जी काकाजी आई" अंदर से अमृता अपनी पल्लू को हाथ पोंछते बहार आई!

"बेटी जरा पीठ पर साबुन लगा दोगी" रोशन सिंह ने अपने बदन पर साबुन मलते पुछा!

"जी काकाजी" वह बोली और साड़ी ऊपर खींचकर कमर में ठोसी और काका के पास आयी और साबुन पीठ पर मलने लगी! मौका देख कर रोशन सिंह थोड़ा सा तिरछा हुआ तो उसका आगे का बदन अमृता की ओरा पलट गयी! साबुन मलते मलते अमृता की निगाहे काका के आगे बदन पर पडी तो देखा की गीले कपडे के नीचे काका का जांघो के बीच उनकी वह ग्यों के रंग में दिख रही थी!

ना चाहते हुए भी उसकि निगाहें बार बार उस तरफ ही जारहा था! तब तक रोशन सिंह के मर्दानगी में जान आगयी और और वह फूल गयी! काका ने आँख बंद कर साबुन लगाने के बहाने अपने जंघों के ऊपर का कपडा और ऊपर उठाया तो अमृता को काका का नंगा पन दिखी! तब तक रोशन सिंह का पूरी तरह खडा हो गया और कपडे के नीचे से बहार आने को थी!

उसे देख कर अमृता ने सोचा "बापरे ये तो अभी इतना मोटा है, अगर पूरा कड़क होगा तो ... यह सोचते ही अमृता की खूब चुदी बुर में गीलापन महसूस किया!

रोशन सिंह यह नाज़रा सिर्फ तीन या चार सेकंड केलिए कराया और झट दूसरी तरफ पलटकर अपना कपड़ा ठीक करता बोला "बस बेटी... अब मैं नहा लेता हूँ शुक्रिया" कह अमृता को साबून लगाने से रोक दिया! अमृता को काका के नंगे पन को और देखने का मनकर रहा था। ... पन वहां मन मसोसते अपना हाथ पोंछते अंदर आ गयी! लेकिन उसके आँखों के सामने जो नज़ारा उसने काका का किया वही घूम रही थी! अनजाने में ही उसने अपने गांव के मुखिया सुखराम के बारे में सोचने लगी!

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अमृता एक देहाती लड़की थी! गांव में उसके पिता का ४ एकड़ खेत है! वह उस परिवार की अकेली लड़की थी! इसी लिए उसे बहुत लाड प्यार से पाले थे! वह 16 की उम्र में ही पक्का 20 की दिख रही थी! पढायी में उसका ध्यान नहीं था! उस गांव में स्कूल भी नहीं था 3 मील दूरी पर एक और गांव में स्कूल थी! अमृता वहीँ पढ़ने जाती थी! उसको पढ़ाई से ज्यादा इधर उधर की बातें करना, सुन ना अच्छा लगता था!

खास करके शादी शुदा सहेलियों से। .. यह लड़कियां उसे अपने अपने पति कोसे करते थे, और उनका कितना लम्बा और मोटा है और वो उन्हें कैसे करते थे बता ते थे! जिस से अमृता में भी कामोत्तेजना उभरने लगी! वह सोचती थी की काश उसे भी कोई चोदे! वह सब सुन उसके कुवांरी बुर में खुजली सी होती थी! उस स्कूल के हेडमास्टर की नज़रें उस पर थी!

एक दिन हेडमास्टर ने इसी बहाने उसे रोका और उस पर हाथ फेरा! अमृता ऐसे ही किसी मौके की तलाश मे थी और वह हेडमास्टर की बात मन गयी और उस से चुद गयी! हेडमास्टर क्यों की बूढा था उस से अमृता जल्दी ही ऊब गयी! इसी समय अमृता के गांव के मुखिया सुखराम की नज़र उस पर पड़ी! सुखराम ऐक 35/36 साल का हट्टा कट्टा मर्द था! अमृता उस से फँस गयी!

अमृता खुश थी की उसे सुखराम से चुदाई के खूब मज़े मिलते थे! सुखराम उसे उसकी शादी तक एक रखेल की तरह रखा, उसे इस्तेमाल किया!

आज अमृता वह सब बातें यद् करके और भी गर्म हो रही थी! रोशन काका का लंड देख कर उसके खूब चुदी बुर में चुदाई के कीड़े रेंगने लगे और वह उस चुदाई की तड़प को रोशन काका से मिटने को टान बैठी थी!

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"काका खाना तैयार हो.." वह बोली. "बेटी.. अभी नहीं... सारा बदन दुःख रहा है! बहार जाकर एक पेग मारके आता हूँ तब खालूंगा!" जब भी वह पूरन के पास आता उसे घूँट मारने की आदत है!

"अरे काका इसके लिए आप बहार क्यों जाते हो.. यही घूँट मारलो, उनका एक अद्धा घर में है" वह बोली! और साथ ही साथ वह शराब की एक अद्धा और एक गिलास और कुछ नमकीन रोशन के पास राखी. जैसे ही वह झुकी उसकी वजनी चूचियो का नज़ारा कर रोशन की लंड और बभी तन गयी! रोशन खुश होगया! असल में उसका इरादा पीने की बहाना कर अमृता पर हाथ डालने का था! वह मौका तो घर पर ही मिल रही है!

रोशन ने गिलास में से एक घूँट मरी और चटकार मारकर बोला "पूरन होता तो पीने का मज़ा आता था.. अकेले पीने में मन नहीं लगता..." कहा और फिर बोला "तुम ही थोड़ा साथ दो न बेटी"! अमृता के मन मे लड्डू फूट रहे थे! वह यही चाहती थी... लेकिन ऊपरी मन से बोली। .. "लेकिन काका मैं तो पीती नहीं.."

"अरी अमृता..एक घूँट से क्या होता है ... वैसे तुम साथ ही दोगी न..." रोशन कको मल्लों था की वह अपने पाती को कभी कभी साथ देती है! यवह बट एक दिन खुद पूरन, अमरोठा के पति ने उस से कहा था!

"ठीक है काका.." वह ऐसा बोलि की वह सिर्फ उसके साथ देने के लिए पी रही हो! दोनों पीना शुरू कर दिए! रोशन ने अपनी लुंगी थोड़ा ऊपर उठाकर बैठा जिसके वजह से उसके मुश्तण्ड की झलक अमृता को मिल रही थी! अमृता भी कुछ कम नहीं थी, वह अपना पल्लू गिराकर अपनी दूधिया चूचियों का नज़ारा करा रही थी! हंस हंस के बाते कर रही थी, और रोशन की बातों को सुनकर खिल खिलाकर हंस रही थी! दोनों भी मौके की तलाश में थे की किकै से शुरू करें!

"अमृता एक बात कहूँ... बुरा तो नहीं मानोगी?" रोशन उसके उभरे चूचियों को घूरता बोला! यह बात अमृता ताड गयी काका उसके मस्तियों को घूर रहे है, और आगे झुक कर उसको नज़ारा कराती बोली " हाँ..हाँ काका... कहए न क्या बात है?"

रोशन एक दो सेकंड हीच किचया और उसे घूरता बोला" पूरन बहुत ही भाग्य शाली है... काश मैं भी ऐसा भाग्यशाली होता... "

"ऐसी क्या बात है काका...?" वह एक दिलकश मुस्कराहट के साथ पूछी! उस मुस्कराहट से रोशन फ़िदा होगया!

"उसे तुम्हारी हैसी पत्नी मिली... तुम कितनी सुन्दर हो.. और उसका कितना ख्याल रखती हो... एक मेरी पत्नी है... उसे मेरी ख्याल ही नहीं रहता!"

"जाओ काका आप भी ना..." वह लजाने का नखरे करती बोली!

"सचकह रहा हूँ बेटी... तुम बहूत सुन्दर हो... जी चाहता है मुझे भी तुम्हारी जैसी पत्नी मिलती..." कहते कहते उसने अमृता के कंधो पर हाथ रख धीरे से दबाया!

"काका यह आप क्या कर रहे है... उफ्फ्फ छोडो..." वह उपरी मन से बोली! असल में उसका दिल चाह रहा था की रोशन उसे वैसे ही जकड़े!

रोशन भी उसे नहीं छोड़ा ऊपर से उसके ऊपर झुक कर उसके मुलायम होंटो पर अपना होंठ लगा दिया और चूमने और चूसने!

"नहीं काका नहीं,,, यह गलत है..." कहने को कह रही थी। .. लेकिन वह अपने आप को छुड़ा नहीं रही थी! दोनों को खुमारी खूब छड़ी थी!

"प्लीज अमृता.. मेरी रानी.. एक...बार.. बस एक बार " कह वह अबकी बार उसने अमृता के गलों को काटा और उसकी एक चूची पकड़ जोरसे मसल दिया! "आआआहहह...ममम...काका नहीं।।।' कहते हुए वह रोशन से लिपटने लगी! यह बात रोशन जान गया और उसे जोर से जकड कर अपने आगोश में भर लिया

"नहीं काका.. मैं आपकी बेटी जैसी हूँ..." वह नखरे कर रही थी!

"बेटी जैसी हो..बेटी नहीं हो, वैसे भी तुम इतनी सुन्दर हो की तुम बेटी होती तो भी मैं तुम्हे छोड़ने वाला नहीं! बस एक बार.. मुझे मालूम है पूरन से तुम्हे सुख नहीं मिलता... वह महीने में 15 - 20 दिन तो टरक में ही रहता है! ऊपर से गाड़ी छकाने की थकावट! इस वजह से उसमे तुझे खुश करने का दम कहाँ?" कहते रोशन ने फिर से उसकी चूची को दबाया और गाल चूमा!

"लेकिन काका..." अमृता रोशन के चुम्बनों का और मसलन का मज़ा लेती बोली "किसी को पता चले थो..." यह बात कहने की देर थी की रोशन समझ गया अब वह चुदेगी और कहा "कैसे पता चलेगी...मैं तो नहीं बोलने वला... लेकिन तुम किसी को कहो तो" उसने बात अधूरा छोड़ दिया!

"धत... क्या बात करते हो काका... ऐसी बातें भी किसी से कहि जाति है क्या?"

"फिर पता कैसे चलेगा? चल... अब अजा... बहुत दिनों से तुम्हारे लिए तड़प रहा हूँ..." रोशन बोलने की देरी की ... अमृता ने कहा "झूट..."

"नहीं मेरी रानी मैं जब भी यहाँ अत हूँ तो, वह सिर्फ तुम्हारे लिए, सरकारी काम तो एक बहाना है... लेकिने पूरन के सामने क्या करता...?" रोशन बोला!

"सच काका... तुम मुझे इतना चाहते हो...?"

"तुम्हारी इन चूचियों की कसम और इस मदभरी बुर की कसम" कहते उसने एक हाथ से अमृता के चूची को जकड़ा तो दुसरे से उसकी बुर गगरे के कर से ही...

"हाय काका.. मैं मरजावां" कह कर वह उस से लिपट गयी! रोशन उसकी गगरा और चोली उतर फेंका फिर अपना लुंगी उतरा! उसका 8 इंच लम्बा मुश्तण्ड एक दम से तनकर तैयार था!

उसको देखते ही अमृता की चूत में भडकने की साथ साथ, बुर और मुहं में पानी आया!

"हाय काका... कितना प्यारा है.. जी चाहता है चूमूँ..." हसरत भरी नज़रों से उस लंड को देखती बोली!

"तो चूमना... रोक कौन रहह है... अब यह गन्ना तुम्हारा है... जो चाहे करले.. चूमेगी, चाटेगी.. तेरी मर्ज़ी..." कह कर एक बार अमृता की चूची को दबोचा!

"ससससीइससषा" सीत्कार कर कही "हाय काका तुम कितने अच्छे हो" वह झट आगे झुकी और उसे अपने मुट्ठी में जकड़ी और लगी चूमने... उसकी मुट्ठी में वह गर्म था! उस गर्म डंडे को जकड़ने में अमृता को खूब मजा आ रहा था!

'हाय मुट्टी में इतना मज़ा दे रही है तो जब बुर में घुसेगी तो...' यह सोचते ही उसकी बुर गीली होने लगी! जैसे ही अमृता लंड चूसने लगि रोशन सिंह ने उसका गगरा खोल दिया! अमृता की सुडैल बदन को देख कर वह पागल सा हो गया! इतनी गदरायी औरत का मज़ा लेकर उसे ज़माना हो गया!

वह अपनी थुल थुल बदन वाली और भैंस जैसी पत्नी के सामने अमृता उसे जन्नत की पारी लग रही थी! उसने झट उसकी जाँघों में हाथ डाला और उसकी रिसती चूत को जकड़ा! अमृता ने उसके लिए अपने टाँगे पैलादी! फिर रोहन ने उसकी गीली बुर में अपनी मोटी ऊँगली दाल कर चोदने लगा!

"ममम...स..सस्म्ममं...ककाआअ...आआ...मममम" कहती अमृता ने उसकी ऊँगली से चुदा रही थी! देखते ही देखते दोनों की गर्मी आसमान पर चढ़ी! अब रोशन से रहा नहीं जा रहा था! ऐसे ही हाल अमृता की भी थी!

रोशन ने अमृता को नीचे गिरया और उसके ऊपर चढ़ गया! अमृता ने अपनी जंघे पैलाकार एक हाथ से काका कि मर्दनगी को मुट्ठी में जकड कर सूज आयी चूत के होंटो पर रगड़ी और छेद पर रख कमर ऊपर उठाई!

उसकी उतावला पैन देख कर रोशन भी अब उसे न तड़पने की सोच अपनी कमर का जोर का दबाव दिया! उसका गन्ना अमृता की बुर को चीरती अंदर तक फँस गयी!

"उम्मम्मम...का.का... इतना मोट ..आ.. यह तो मेरी फाड़ देगी" वह कहने को थो कह गयी लेकिन अपनी कमर ऊपर को उछली!

उसका कमर उछाल ते ही रोशन ने एक और दक्का जोर से दिया "आआह्हा।।।ममम ऐसे ही..." रोशन का गन्ना जड़ तक अंदर घुस गयी तो अमृता कराही!

"क्या हुआ मेरी जान..?" एक धक्का और मरता पुछा!

'देखो तो कैसा पूछ रहा है... जैसे इसे मालूम ह नहीं...मेरो बुर को फाड़ डा और पूछ रहै है... क्या हुआ...हूँ' वह सोची और फिर भी अपनी कमर ऊपर को उछली!

रोशन सिंह अब जोश में आकर उसके उन्नत उरोजों को पकड़ कर मसलने लगा, चुभलाने लगा उसके मदमस्त चूचियों को! वह उसकी चूचो पीने के सात उसकी मांसल नितम्बो को मसलने लगा और मौका देख कर अमृता की गाँड की छेद में भी ऊँगली करने लगा!

रोशन का ऐसा ऊँगली करना अमृता को और अच्छा लगा 'आह .. कितना मोटा और लम्बा है काका का... मैं तो तरस गयी थी ऐसी लंड के कलिये' वह सोची और कही... "ओह! काका ...मारो...और जोर से मारो...उम्म्म... ऐसे हो मेरी गांड में ऊँगली भी करो... तुम्हारी ऊँगली करने से मेरी बुर में खुजली बढ़ गयी और लार टपक ने लगी" और अमृता उस से जकड कर लिपटा गयी और काका को चूमने लगी!

"अमृता तेरी गांड मस्त है... एक बार तो उसमे भी अपना घुसेडूंगा.." उसकी गांड की छेद में ऊंगली करता बोला!

"कुछ भी करो काका... पीछे मेरी गांड मारो या बुर चोदो लेकिन मुझे खुश करके ही जाना..."

"तू गभरा मत रानी...तेरी जैसी मस्त माल मिल गई गयी तो अब छोड़ने का सवाल ही। .. उछाल छिनाल अपनी गांड काका के लंड के लिए उछाल.. ले..काका का अपने में... भोसड़ी..." कहते वह गपा गप अमृता की लार टपकती बुर को चोदने लगा! अमृता भी बड़ी मस्ती से अपना कमर उछाल कर काका के लंड को लीलने लगी!

ऐसे ही उस रात रोशन ने अमृता लो तीन बार उसकी मस्ती भरी चूत और एक बार गांड मारा! अमृता रोशन काका की चुदाई से बाग़ बाग़ हो गयी! उसका पति तो उसे कभी भी तीन बार नहीं चोदा! मुश्किल से दो बार तो बहुत हो गया!

अमृता की मस्ती देख कर उस एक रात रुकने वाला रोशन पूरा चार दिन अमृता के पति के आने तक रुका और हर रोज तीन से चार बार चोदता रहा! अमृता को काका की लंड भा गयी!

रोशन जब जाते समय उसके आँखों में अँसु आगये! रोशन जाते समय एक मोबाइल खरीद दिया और अपना नंबर भी!

अमृता समझ गयी की वह मोबाइल क्यों दिया और जैसे ही पति ट्रक लेकर जाता वह रोशन को फ़ोन करती और फिर दोनों एक दुसरे से...

तो दोस्तों यह है एक चुड़क्कड़ औरत अमृता की दास्ताँ! यह दास्ताँ कैसी है कमेंट करना... फिर मिलेंगे...

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scorpiomscorpiom

Badhiya Story

Bahot dino ke baad aisi perfectly narrated story padhi hai.

Sabse achhi ye baat lagi ki story bahot jyada lambi khichi nahi.

Part which is important is only highlighted .

Jaise Amruta ki Head Master ke saath ki masti ho ya Sarpanch ke saath kiya hue maje isko jyada elaborate kiya nahi.

Lekin Roshan ke saath kiye hue maje bahot intensely likha hai, its like my own fantasy coming true.

I can see the seeds of new story in this story itself of Puran with his affairs as a truck driver at different places with multiple sexy women.

Hope you like my idea, looking forward to such fantastic stories.

Thanks Dear

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