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ससुरजी के साथ मेरे रंगरेलियां 01

Story Info
Pati ki anupatithi me sasur bahu ki masti.
5k words
4.74
906
12

Part 1 of the 4 part series

Updated 06/10/2023
Created 08/22/2021
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ससुरजी के साथ मेरे रंगरेलियां 1

हेमा नंदिनी

दोस्तों, मैं हु आपकी चाहेती हेमा, हेमानंदिनी एक बार फिर मेरा एक और अनुभव के साथ आपके समक्ष। आशा रखती हूँ की पहले के मेरे अनुभव के तरह ही इस अनुभव का भी आप आनद उठाएंगे। कृपया आपकी प्रतिक्रिया जो भी हो मुझे कमेंट करके बताएं। इसके लिए मैं आपकी आभारी रहूंगी।

आपकी हेमा

आईये अब अनुभव का आनंद लीजिये

जब मेरी शादी हुयी थो तो मैं केवल 22 साल की थी। उस समय मैं B.Com फर्स्ट ईयर का परीक्षा लिख चुकी थी। यह रिश्ता हमें ढूंढते आया है, तो मम्मी पापा ने सोचा जब रिश्ता आया ही है तो शादी कर देना बेहतर है, और मेरी शादी मोहन से हो गयी। मेरे पति 25 साल के है और इलेक्ट्रिकल में डिप्लोमा कर चुके है। मेरे पति एक जेंटलमैन है और मुझे बहुत प्यार करते है। मैं बहुत सुंदर लड़की हूँ। सुना है कि मेरे पति, एक डेड साल पहले मुझे किसी शादी में देखे है और मेरा सुंदरता पर फ़िदा हुए और शादी करेंगे तो मुझ से ही करने की टानी थी। रात में वह जब मुझे लेते है तो कहते है कि मेरी सुंदरता उन्हें मोह लेती है।

लेकिन मेरी यह सुंदरता ही मेरी शत्रु बन गयी। यहाँ एक बात कहनी थी, ससुराल में मेरे ससुरजी, उनकी दूसरी पत्नी, मेरे पति के एक सगी बहन संगीता जिसके एक साल पहले शादी ही चुकी है और मेरे सासुमा की बेटी गीता रहते है (गीता ससुरजी की दूसरी पत्नी की बेटी)

जैसे की मैंने कहा मेरी सुंदरता मेरी शत्रु बानी, मेरी ब्यूटी मेरी सासूमाँ को और छोटी ननद को भाई नहीं। में गीता से सुन्दर होना उन्हें रास नहीं आया। इसीलिए शादी के छह महने के अंदर ही सासुमा और मेरी छोटी ननद गीता मुझे कोसने लगे। बात बात में ताने देना उनकी दिनचर्या है। कोई काम करे तो एक परेशांन, न करे तो एक परेशांन, मुझे कोसने का कोई न कोई बहाने ढूंढे ही लेते है माँ बेटियाँ।

उस घर में मेरे पति के अलाव मेरे ससुरजी मुझे बहुत मानते है। दोनों माँ बेटियाँ डायन है। संगीता, मेरे ससुरजी के पहली पत्नी की बेटी भी मुझ बहुत मानती है।

हमरी शादी के छह महीने में हमारे सासुमाँ द्धारा हम घर छोड़ने को मजबूर हो गये। मैं और मोहन, मेरे पति हमारे ससुरजी के ऑफिस के पास एक 2 BHK अपार्टमेंट किराये पे लेकर रहने लगे। वास्तव में यह घर भी मेरे ससुरजी ने ही लिया है। हम उस घर में रहने लगे। मेरे ससुरजी कभी कभी ऑफिस के बाद हमारे यहाँ आजाते थे। कभी कभी दोपहर दो बजे आजाते और शाम तक यहाँ रुक, शाम के चाय पीने के बाद अपने घर जाते थे। कारण यही है की घरमे उनको शांति नहीं मिलती थी। सासुमा हमेशा उन्हें तंज कसती रहती है। ससृर जी हमरा बहुत ख्याल रखते है।

मेरे पति एक प्राइवेट फैक्ट्री में electrician की नौकरी करते है और उनका सालरी बहुत ही कम है। मेरे पापा ने उन्हें अपने कॉन्ट्रैक्ट जॉब सीखने को कहे है और उन्हें अपने यहाँ सुपरवाइजर रख कर काम सीखाने लगे। अब पापा सरकारी कॉन्ट्रैक्ट के साथ अपने कंस्ट्रक्शन कंपनी शुरू करे और अब घर बना कर बेचने की व्यवसाय करने लगे। मेरे पति को उसमे इंचार्ज बनाया गया है। पैसे के अभाव के बावजूद हमरा लाइफ मज़े में चल रही है।

मैंने कहा हमारे दिन मज़े में गुजर रहे है। मेरे पति एक अच्छे चुड़क्कड़ है। अपनी पत्नी को कैसा सेक्स में परम सुख देना वह जानते है, वैसे उनका मर्दानगी उतना लाम्बा या मोटा नहीं है, जिन चार पांच व्यक्तियों से मैं पहले ही करा चुकी हूँ पर वह अपना कड़ापन तब तक टिकाये रकते है, जब तक मैं दो बार जड़ न जाती हूँ और अपना क्लाइमेक्स तक पहुँच न जाती। उनका मीडियम साइज की डिक नुझे बहुत आनंद देती है।

मेरे ससुरजी अपने घर में कभी खुश नही थे। सासुमा, (उनकी दूसरी पत्नी) हमेशा उन्हें किसी न किसी बहाने नीचे दिखाने की कोशिश करती, और तंज कसती रहती है। पहले वह एक ही थी अब उसकी बेटी गीता भी उस से मिलगई है। गीता 20 साल की है और मेरे से दो वर्ष छोटी है। ससरजी सरकारी दफ्तर में सेक्शन सुपरवाइजर है। उनका ऑफिस 5 बजे ख़तम होती है लेकिन वह हमेशा ही देर से घर आते है ताकि वह सासुमा से बचे रहे। हम यानि कि मैं और मेरे पति अलग होने के बाद, वह हमारे घर आते है और हमारे यहाँ रुक कर आराम करते है मेरे से और उनके बेटे से बातें करते है। और फिर घर जाते है। कभी कभी वह दोपहर दो बजे आजाते है और शाम तक हमारे ही यहाँ रुक कर शाम चाय पीके जाते है, कभी कभी डिनर भी करके जाते है। हम इस घर में आकर ४ महीने गुजर गए है।

उस दिन भी ऐसे ही एक दोपहर थी, ससुर जी दोपर 1.30 बजे घर आये, हम दोनों ने मिलकर खाना खाये अरु वह दुसरे बैडरूम में आराम करने चले गए। मैं अपने कमरे में गयी और आराम करने लगी मुझे आँख लग गयी। जब मैं उठी तो 4.30 बज चुके थे। मैं जल्दी से उठी और किचन में जाकर मेरे और ससुरजी के लिए चाय बनायीं और एक कप लेकर उनके कमरे की तरफ बड़ी। दरवाजा बिदका हुआ था और मैं हमेशा की तरह दरवाजे धकेली और अंदर कदम रखी।

जैसे ही मैं दरवाजा खोलकर अंदर कदम राखी अंदर का नज़ारा देख कर मैं शॉक में रह गयी और बुत (स्टेचू) की तरह रह गयी। मुझे ऐसा लगा जैसे मुझे लकुवा मार गयी। अंदर ससुरजी पलंग पर बैठ अपनी लुंगी हटाकर और अपने मर्दानगी को मुट्ठी में जकड कर ऊपर निचे हिलाते हुए दिखे।

दरवाजे की आवाज सुनकर ससुरजी इधर पलटे और मुझे देख उन्हें भी लकुवा मार गयी। उनके फेस में काटो तो खून नहीं। वह मुट्ठी मारते बहु द्वारा रंगे हाथ पकडे गए। ससुरजी का हाथ अपनी मर्दानगी से हठी। अनजाने में हि मेरी नज़र उस पर पड़ी। वह एक दम तनकर कड़ी थी और छत को देख रही थी। उतनी कम समय में भी जो में देखी देख कर डंग रह गयी। उनका सामने का चमड़ी पीछे हटकर, उनका हेलमेट, गुलाबी रंग में चमक रहा था। और वहां के नन्हे से छेद से निकली एक बूँद उस पर ठीकी थी। मैं शर्म से लाल पीली होगयी और झट पलटकर कमरे से बाहर भागी।

पांच छह मिनिट बाद मैं अपने आपको संभाली और फिर से चाय माइक्रो में गरम करके उनके कमरे के पास जाकर अबकी बार डोर कट कटाकर अंदर गयी। तब तक ससुरजी ने भी फ्रेश हुए, अपने कपडे पहन तैयार थे। में उन्हें चाय दी तो उन्होंने मेरी ओर देखे बिना ही मेरे हाथ से कप लिए और ख़ामोशी से चाय पीलिये। वह तो अधमरे थे। जैसे ही चाय ख़तम हुयी चाय कप मेरे हाथ में दिए और कमरे से बाहर निकले। फिर सैंडल पहन घर से बाहर। में उन्हें रोक ने की कोशिश नहीं की, कैसे करती मैं खुद उसी पोजीशन में थी।

उस रात जब मेरे पति घर आय तो में उनको उनकी पापा के आयी बात बताई। उस शाम क्या घटी थी यह नहीं बताई। कहने से मेरे पति और मेरे ससुरजी भी embarrass होसकते थे। उस सारी रात उस घटना के बारे में ही सोचती रही, और मेरे ससुरजी पर गुस्सा भी आ रहा था। 'ऐसे कैसे कर सकते है वह.. क्या वह भूल गाये की वह बहु के घर में है'। जब एक घंटा या डेड ये सोचने के बाद मेरा गुस्सा कम हुअ। जब मैं फिरसे ससुरजी के बारे में सोची तो उनपे दया आयी। बिचरे क्या कर सकते थे।

मेरी बड़ी ननद संगीता से मालूम हुआ की सासुमा उन्हें अपने कमरे में सोने भी नहीं देती। उन दोनों के बीच तनाव बढ़ा ही है लेकिन कम नहीं होती थी। जो चार, पांच महीने मैं वहां थी, तब मैं देखि भी थी की ससुरजी एक अलग ही कमरे में सोते थे। यह सोचते ही मुझे उनपर सिम्पती होने लगी।

जब तक मैं वहां थी मैंने देख है की सासुमा उन्हें खातिर ही नहीं करती थी। हमेशा अपमानित करती थी। इस वजह से ससुरजी सासुमा से बहुत कम बात करते है।

हम अलग होनेके बाद वह हमारे यहाँ रेगुलरली आने लगे और यहाँ मेरे साथ और अपने बेटे की साथ समय बिताते वह बहुत खुश नज़र आते थे। उनके मुख पर रौनक दिखने लगी। हम तीनों ने मिलकर इधर उधर के बहुत से बातें करते थे। कभी कभी रविवार ऑफिस का बहना कर वह हमारे यहाँ आजाते है, और हम कैरम, रमी खेल ते थे। हम उन्हें साथ लेकर कभी कभी बहार जाया करे थे और बाहर ही सिनेमा देख कर खाना खा लेते थे। ससुरजी इतना खुलकर बातें करते उस घर में मैं नहीं देखि थी।

दूसरे दिन मैंने संगीता को फ़ोन कर घर आने को कही। आधे घंटे के बाद वह अपने बच्चे के साथ आयी। हम दोनों कभी कभार ऐसे मिलते थे। कुछ देर इधर उधर की बातें होने के बाद, मैं बातों बातों में उस से ससुर जी के बारे में पूछी। मालूम हुआ की सासुमा पांच छह साल से उन्हें अपने कमरे में सोने नहीं देती थी। तब मई सोची बेचारे.....

पांच साल पहले यानि की उस समय उनकी उम्र 45 की होगी। तभी से वह अपनी पत्नी की सुख से वंचित थे। यह बात सोचते ही मेरे गले में कुछ अटकी। आँखे नम हो गये।

उस घटना को घटके एक हप्ता बीत गया। उस दिन के बाद ससुरजी फिर हमारे घर नहीं आये। मुझे मालूम है वह बहुत embarrass होगये। वह मुझे अपना मुहं नहीं दिखाना चाहते। ससुरजी का न आना मुझे खल रही थी। बिचारे उनका क्या दोष। मैं हमेशा की तरह अंदर चली गई, मेरा ही गलती है। मुझे दरवाजा कट कटाकर अंदर जाना चैहिये थी। एक दिन मेरे पति ने भी पुछा 'क्यों उनके बाबूजी नही आ रहे है?' में उन्हें कोई जवाब नहीं दी। तीन दिन और बीत गए।

उस दिन ग्यारह बजे मैं ससुरजी के ऑफिस में फ़ोन करि और उन्हें कही की वह आज लंच के किये घर आये। 'ऑफिस मे बहुत काम है' कह कर वह मुझे टालना चाहे। "बबुजी आप घर आ रहे है, बस। में आपके लिए खाना बना रहि हूँ, और मैं आपके लिए वेट करूंगी" कही और फ़ोन बंद करदी। में खाना बना रही थी लेकिन बहुत टेंस फील कर रही थी।

बाबूजी का पसंदीदा दाल तड़का और चिकन लोल्ली पोप्स बना लिया है। दोपहर के 1 बजे से मेरी निगाहें डोर पर ही टिकी थी। कान तेज कर डोर बेल् की इंतजार में थी। 1.15 हो गए। ससुरजी नहीं आये। हर दो, तीन सेकंड को मेरी निगाहे दरवाजे पर चली जाती थी। जैसा जैसा समय बीतता गया मेरा कलेजा धक् धक् करने लगा। 'आएंगे की नहीं' यही सोच रहि थी। 1.30 हो गया। बाबूजी नहीं आये। आअह्ह आखिर 1.35 को घंटी बजी। में भागी दरवाजे को ओर। दरवाजा खोली। वह सामने खड़े थे। उनके मुख पर वही उदासी। मेरी ओर देखने में कुछ असुविधा महसूस करते हुए।

"ओह।.. बाबूजी।. आईये.. अंदर आईये..." मैं उनके हाथ को प्यार से पकड़ी और उन्हें अंदर ले आयी। हम दोनों सोफे पर बैठे। मैं उनके बगल मे ही बैठी। "हेमा..." वह बोले... "बाबूजी सारे बातें हम बाद में करेंगे, अभी तो मुझे भूख लगी रही है... आईये खाना खाले..." कहते मैं उन्हें उनके रूम तक ले आयी और बोली 'आप फ्रेश हो जाईये.. खाना ठंडा हो रहा है" में उनके हाथ में लुंगी और बनियान देती बोली।

पंद्रह मिनिट बाद वह आये और हम दोनों ख़ामोशी से खाना खाने लगे। हम खाना खा ही रहे थे की उनहोने फिर से बोले.. "हेमा...उस दिन...."

"बाबूजी, अब कुछ मत बोलिये.. सिर्फ खाना खाइये। मैं तो उसी दिन सब भूल गयी, आप के लिए मेरे मन में कोई रंजिश नहीं है" मैं उनके लेफ्ट हैंड को दबाती बोली।

"थैंक यू हेमा.... तुम बहुत अच्छी लड़की हो और एक अच्छी बहु भी, फिर भी मुझे कुछ असमंजस लगता है.. उस दिन मैं वैसा नहीं करने चाहिए था.." उनके स्वर में उदासी थी।

"ओफ्फो! बाबूजी.. अब उसके बारे में मत सोचिये, सच मनो, उस दिन मेरा भी गलती थी.... मुझे दरवाजा नॉक करके आना चाहिए था" में बोली। मैं उनके लेफ्ट हैंड को सहला रहीथी। ससुरजी मुझे देख कर हलके से हँसे। मैं उन्हें मुस्कुराते देख कर खुश थी की उनके वदन (face) में हंसी आयी। उन्होंने अपना लेफ्ट हैंड मेरे हाथ पर रखे और बोले "तुम मेरी ज्यादा ही ख्याल राखती हो हेमा, इसी लिये बता रहा हूँ, यह बात मैंने कभी संगीता से भी नही कही। तुम्हे मालूम है संगीता मेरी बेटी भी मुझे बहुत चाहती है। वास्तव में बात यह है की, मैंने औरत को छूकर दस साल बीत गए, और उस दिन तुम्हारी सासुमा बहुत यद् आ रही थी, और... मैं यह भूल गया की में अपने बहु के घर में हूँ.. सॉरी..."

बाबूजी की यह बात सुनकर मैं सकते में रह गयी। मेरा मुहं खुले का खुला ही रह गया और खाना खाना भूल गयी। "बाबूजी.. आपका मतलब..." मैं आगे नहीं बोली। उन्होंने अपना सर 'हाँ' में हिलाये।

"ओह.. बाबूजी I am sorry" में बोली। मुझे बहुत ही अफ़सोस हो रहा था। उन पर जो सहानुभूति मेरे में थी वह अब और बढ़ गयी। फिर कुछ देर हम वैसे ही बेसुध बैठे रहे। "चलो.. भूल जाओ सब.. यह सब तक़दीर का खेल है... सब मेरा तक़दीर है... खाना ठंडा हो रही है..ख़तम करो..." बाबूजी बोले। फिर चार पांच मिनिट तक वह सॉरी बोलते रहे और मैं सॉरी बोलती रही.. फिर हम दोनों जोरसे हँसे।

खाने के बाद वह अपने कमरे में चले गए और में डाइनिंग टेबल साफ कर ससुरजी के बारे में सोचते वहीं बैठ गयी। "बिचारे बाबूजी.. कितना यातना सही है उन्हीने.. औरत का सूख न मिलना भी एक यातना ही है' में सोची, फिर एकाएक मेरे दिमाग़ में यह ख्याल आया की क्यों न मैं उन्हें वो सुख देवूं, जिस से वह दस साल से वंचित रहे। एक बार तो मैं सोची 'यह गलत है' लेकिन जैसे जैसे मैं सोच रही थी मेरा इरादा बुलंद होते गया की मैं ही उन्हें वह सुख दे सकती हूँ। वैसे भी मैं अब तक चार जनों से मेरी गीली, खुजलाती बुर को चुदवा चुकी हूँ, (रति सुख भोग चुकी हूँ) शशांक भैय्या के साथ साथ तीन और लोगों से। अब एक और.. क्या फर्क पड़ता है.. ऊपर से वह मेरे ससुरजी हैं... उनका ख्याल रखना मेरा धर्म भी तो है।

बस एक बार में ऐसा निर्णय लेते ही मेरी चूचियों में कड़ापन आगया और वेह उभर लेने लगे। मेरा ब्लॉउस टाइट हो गयी। मैंने मेरा ब्लॉउस खोल कर उन पर हाथ फेरी और कड़क होचुके घुड़ियों को पिंच किया। मैंने अपना हाथ एक चूची के नीचे रख उसे ऊपर उठायी और सर झुका कर उसे चाटने लगी आआह्ह्ह्ह.. कितन मज़ा आरहा है.. जैसे ही मैंने चूची दाबाई मेरी चूत में खुजली होने लगी। साड़ी के ऊपर से ही मैं वहां हाथ रखी और उसे दबाई। साली मेरी बुर खूब फूलकर एक और नया लंड के लिए रिसने लगी। मेरी पैंटी गीली होगयी।

दस दिन पहले देखि गई उनका लंड का मोटापा और कड़क पन मेरे आँखों के सामने घूम गयी। मैं ने घडी देखि। दो पहर के 2.30 बजे थे। में उठी और बाबूजी के कमरे की ओर निकल पड़ी। दरवाजा बिदका था। मैंने नॉक नहीं किया और धीरेसे दरवजे को धकेलि और अंदर कदम रखी। बाबूजी पलंग पर चित लेटे थे। उनके सांसे नियमित रूप से चल रह है। उनकी छाती ऊपर निचे हो रही है। उनका एक हाथ छाती पर तो दूसरा उनके आँखों पर। में बिल्ली की तरह उनकी तरफ बड़ी।

धड़कते दिल से में उनके पलंग के ऊपर उनके कमर के पास बैठि। मैंने धीरे से उनकि लुंगी का एक कोना पकड़ कर, हलके से हठा रही थी। कोई तीन, चार मिनिट बाद जो चीज मुझे चाहीए थी उसका नजारा हुआ। उन्होंने अंडरवियर नहीं पहनि थी। उनका बिलकुल सॉफ्ट, मुरझाया हुआ वेपन उनके बॉल्स पर निस्तेज पडी है। उस स्थिति में भी वह लोई 3 1/2 या 4 इंच लम्बा है। में उसे अपने हाथ में लिया। बिलकुल नरम थि वह। उसे हाथ में लेकर मैं आगे को झुकी और उस मुलायम सी दिखने वाली उनकी मर्दानगी को अपने मुहं में ली।

देखते ही देखते वह मेरे मुहं में बढ़ने लगी और मेरे हलक को छूने लगी। एक बार उसे मैं मुहं से निकल कर देखि तो दंग रह गया। वह तो 8 इंच से भी लम्बा दिख रहा है। जैसे लम्बा मोटी वाली मूली। उसे हाथ में लेकर चमड़े को नीचे की तो बाबूजी का मोटा गुलाबी सुपाड़ा मेरे झूटन से चमक रहा है। बहुत ही प्यारा दिख रही है। मैंने अपनी जीभ को उस सुपाडे गिर्द चलायी और उस सुपाडे की ऊपर की नन्हे से छेद में अपना जीभ से कुरेदी।

तब तक बाबूजी की नींद खुल गयी और वह मुझे देखे। उनके आँखों में आश्चर्य था। "हेमा.... यह.. यह क्या.. कर रही...हो...आह?" वह चकित हो कर बोले।

"shshshshshshshsh" मैं बोली

और मेरी तर्जनी ऊँगली मेरे होंठों पर रखी, साथ ही साथ मैंने बाबूजी के एक हाथ को मेरो मदभरी उभर पर रखी। मैं पहले हो मेरे ब्लाउज के सारे हुक्स खोल चुकी थी। बाबूजी मेरे ओर अस्श्चर्या से देखे, फिर भी उनके हाथ मेरी चूची को हल्का सा दबाव दिए।

अब तक उनका 8 इंच लम्बा मुस्सल मेरे मुहं में तनकर छत को देख रही थी। मैंने उसे तीन चार बार ऊपर नीचे किया और मुस्क़ुरते हुए मेरे होंठ उनके होंठों पर रख कर उनके ऊपरी होंठ को चुबलाने लगी,, जबकि मेरा निचला होंठ बाबूजी के होंठों में। बाबूजी, यानि की मेरे ससुरजी को अब होश आया और वह समझ गए की क्या होने वाला है, और मेरी मस्ती को जोरसे दबाये। "उउउउउम्मम्मम" एक मीठी सीत्कार मेरे मुहं से निकली। बाबूजी के मुहं से भी जोश भरे आवाजें निकल रहे है।

"ओह बाबूजी..आअह्हह्ह... खेलिए उनसे.. कितना रोमांचंक है आपके हाथ मेरे बूब्स पर उममम्मा... मसलिये उन्हें.. और जोरसे.. उन कलियों की खुजलाहट अब कुछ ज्यादा ही हो गयी है... बाबूजी कैसी है आपकी बहु की टिट्स मस्त है न.... आपको खेलने में मजा आरहा है... की नही... हाँ.. हाँ..वैसे ही.. और जोरसे मसलिये उन दुदददुवों को मममममआ... दबाइये अपनी बहुके मस्तियों को.. खूब खेलिए मेरे चूचियों के साथ..." में उन्हें एनकरेज कर रही थी।

मेरे से उत्साहित होने पर उनके मुख से उदासीनता गायब हो गयी और मेरे बूब्स के साथ दिल खोल कर खेलने लगे। मेरे घुड़ियों को मसल रहे थे और पूरा चूची को आटे की तरह गूंद रहे है।

"AAAHHHH...हेमा मैं स्वीटी। तुम कितनि अच्छी हो... और पूरा सेक्सी डॉल भी हो AAMMMAAA.... ओह गॉड हेमा कितने सख्त है तुम्हारे यह उम्म्म..ससस..." बाबूजी बड़ बड़ा रहे है। अब मैंने देखा की आनंद से उनके आंखे चमक रही है।

उनकी लुंगी उनके नीचे बिखरी पड़ी है। मेरी साडी पलंग के नीचे पडि है। अब मेरे शरीर पर कमर के नीचे सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज है जिसके हुक्स खुले है। बाबूजी को ख़ुशी देने कि खयाल और मेरे शरीर पर उनके शरारती हरकते, यह सब मेरे शरीर में एक अजीब सि लहर दौड़ा रहे है। मेरा रोम रोम रोमांचित होकर पुलकित होने लगी। मेरे जांघों के बीच वाली उसमे खुजली अब मेरे से सहा नहीं जा रहा है।

मैं अपना लहंगा कमर तक ऊपर उठायी, एक पैर उनके दुसरे तरफ रखी और उन पर चढ़ गयी। बाबूजीका सब्बल हाथ में लिया और उसे मेरे बुर के मोटे पुत्तियों के बीच रख एक दो बार ऊपर नीची की और फिर उनके सुपडे को स्वर्ग द्वार के मुहाने पर रखी और उस खम्बे पर धीरेसे बैठी। मुझे ऐसा लगा की मेरी बुर दो भागों में बाँट रही है और बाबूजी का मर्दानगी मेरी चूत की दीवारों को रगड़ते अंदर और अंदर घुसने लगी।

तब तक बाबूजी ने अपन एक हाथ मेरे मांसल नितम्ब पर रख कर वहां सहलाने और दबाने लगे। मेरे नितम्बों को वह इतनी जोरसे दबा रहे है की शायद वह उनके उँगलियों की निशान पड़े। मैं अब उनके ऊपर नीचे होने लगि। उनकी मर्दानगी मेरे दीवारों को रगड़ती अंदर बहार हो रहा है।

मुझ में मस्ती भरी आनंद की कोई सीमा नहीं थी। और ससुरजी का 8 इंच लम्बा लंड मेरी गीली बुर के अंदर के सतह तक ठोकर दे रही है। में आनंद से सीत्कार कर रही थी तो ससुर जी उत्तेजना में गुर्रा रहे है।

जैसे जैसी मैं उनके ऊपर उछाल रही थी, वैसे वैसे मेरे घाटीले चूचियिन भी ऊपर नीचे हो रहे थे। इधर बाबूजी नीचेसे अपना कमर उछाल कर मुझे ले रहे है। मुझे खूब मज़ा आ रहा है।

मेरी गीली बुर में बाबूजी का लेकर मैं अपनी कमर को ऊपर नीचे कर रही हूँ। उनका मोटा और लम्बा लंड मेरे अंदर गहराई तक ठोकर दे रही है। अकस्मात मुझे बाबूजी से खेलने का और उन्हें छेड़ने का ख्याल आया। मैं अपनी लेफ्ट कोहिनी पर आगे झुकी, मेरी राइट बूब को मेरे राइट हैंड में लिया और उस बूब कोबाबूजी के मुहं पर रगड़ते बोली आआह्ह्ह्ह... ज़ज़्ज़ज़्ज़ज़्ज़ससससससीई.. मेरे प्यारे ससुरजी कैसे है मेरे चूचियां... उन्हें पीना चाहोगे.. लो..पीयो... चूसो।. ममम... चूसो अपनी पुत्रवधु की चूची को.. बहु को चोदते हुए उसकी चूची पीयो.... आह आह अम्मा.मैं अपनी बूब को उनके मुहं पर, होंठो पर,, उनकी आँखों में रगड्ती बोली।.. यहाँ तक की एक दो बार मेरे निप्पल को बाबूजी के नाक में भी घुसेड़ी।

"ओह.. हेमा.. मैं डिअर डॉटर-इन-ला।.. ऊफ्फ.. तुम कितना सेंसिटिव हो और समझदार भी... मेरे प्रति तुम्हारा प्यार देख कर में पागल बनगया.. और तुम्हारी सुंदरता ने भी मुझे पागल बना दिया... धन्यवाद बहु... कितने मुलायम और घाटीले है तुम्हारी यह चूची... ओह उस काले अँगूरों को, तुम्हारे बाबूजी को चखाओ।.." कहते हुए बाबूजी ने अपना मुहं खोले और मेरी एक घुंडी को अपने लेने की कोशिश करे, मैं झट दूसरी तरफ पलटी ताको उन्हें मेरा निप्पल ना मिले। बाबुजी उधर मेरी निपल की ओर घूमे.. मैं फिर एक और तरफ घूमते उन्हें छेड़ने लगी। ऐसा ही कुछ देर चला..

इस खेल से बाबूजी बहुत उत्तेजित हुए हुएवह भी मेरे से खेलने लगे... वह कभी मुझे चूम रहे थे तो कभी मेरे नितम्बों की पिंच कर रहे है एकबार तो उन्होंने मेरी पीछे की छेद में ऊँगली भी घुसेड़ी। मुझे ऐसा लगा की उनकी सब्बल मेरे अंदर और कड़क हो गयी है... फिर आखिर उन्होंने मेरी चूची को पकड़ कर मुझे आगे झुकाये और एक बूब बटन को अपने टंग से फ्लिक (flick) किये।

ओह... ओह.. बाबूजी यह क्या कर रहे है.. ओह मैं गॉड.. उन्होंने मेरी दूसरी घुंडी को भी अपने मुहं मे लेने की कोशिश कर रहे है.. गुड गॉड.. यह क्या? दोनों घुंडियां एक साथ.. मुहं में लेना चाहते है। इनके इस खेल से मैं भी उत्तेजित होने लगी उन्होंने मेरे दोनों चूचियों को एक जगह दबाकर मेरे दोनों घुड़ियों को अपने मुँहने लिए। मैं और आगे झुक कर उनके इस खेल में हेल्प कर रही थी। एट लास्ट... बाबूजी को इस खेल में सफल मिली।

उनकी इस हरकत से मेरे सरे शरीर में आग धधक उठी। वैसे बाबूजी का लैंड अभी भी मी अंदर ही है... फिर भी वहां मुझे सिहरन सी हुयी। बाबूजी ने मेरे दोनों निप्प्ले एक साथ चूसने में सहलाते हुए.. बहुत कम समय के लिए ही सही.. लेकिन सफल हुए।

एक बार मेरे दोनं घुंडियां ऊके मुहंमे आते ही बाबूजी ने अपने होंठ मेरे निपल गिर्द टाइट किये। उनका ऐसा करते ही मेरी रिसती बुर में खलबली मच गयी और मैं बाबूजी की चुदाई की वजह से पहली बार झड़ चुकी हूँ, और मेरा मदन रस बाबूजी के लिंग को अभिषेक करने लगी।

"ओह.! ससुरजी.. मेरे प्यारे ससुरजी...ohhhhhh...ssssssssshh ohoh..." मैं खुशी से सीत्कार कर उठी। उस समय मेरा आनंद की कोई सीमा नहीं थी। अगर कोई औरत अपने दोनों घुंडियां एक ही समय पर अपने पार्टनर से चुसवाई हो तो वैसे औरत ही मेरी दशा समझ सकती है।

जैसे हि मैं अपनी चरम सीम पर पहुंची बाबूजी ने मुझ अपने नीचे क्रर वह ऊपर आगये औरलगे मुझे पेलने। मेरा मदन रस निकलने की वजह से अब उनका फ़क पोल बहुत आसानी से मेरे अंदर आ जा रही है। चार पंच बार ऊपर नीचे होने के बाद उन्होंने अपना फ़क पोल को मेरे फ़क होल से निकाले।और अपने लुंगी से अपने लवडे को साफ करे। उनका औज़ार अब मुझे और मोटा और लम्बा दिखने लगी। अपना पोंछने के बाद उन्होंने मेरी चूत को भी पोंछे। मैं इतना गरमा चुकी तह की मैं समझी बाबूजी समय नष्ट कर रह है और मैं बोली ''हहहहआ.. बाबूजी डालिये।। अंदर बहुत खुजली हो रही है" और मैं अपनी गांड ऊपर उछाली।

"चुप साली.. देख तेरा कितना लूज़ हो गया है.. इसे थोड़ा सुखाले.." कहते उन्होंने अपना लुंगी का एक चोर मेरी बुर में घुसाने लगे। बाबूजी का मुझे 'साली' बोलना मुझे अच्छा लग। बाबू जी.. ऐसे बात करेंगे मैं सोची नहीं थी।

बाबूजी ने अपना लुंगी का एक हिस्सा मेरी गीली बुर में दाल कर मेरी बुर के दीवारों को सूखा किये और फिर मेरी जांघो में आगये। मेरे दोनों टांग अपने कमर के गिर्द लिए और अपना मुश्टन्ड के सुपडे को मेरे बुर को होंठों पर उपर नीचे रगड़े। "बाबूजी...ममम..." में नीचे से मेरे नितमबों को ऊपर उठाते कुन मुनाई। ठीक उसी समय बाबूजी अपना एक दक्का जोर से मेरे चूत के अंदर दिए। उनका आधा लंड मेरे बुर को चीरते अंदर चली गयी। अब मैं समझी बाबुजी ने मेरे बुर को सूखा क्यों किये। अब उनका रूलर मेरे अंदर टाइट आ, जा रही है। "Aaaaahhhh.. ammaamaaa मेरी फट गयी.." में दर्द के मारे चीखी।

उनका लावड़ा मेरे दीवारों को रगड़ देती अंदर तक घुस गयी। "ओह.. ससुरजी.. धीरे... आआअह्हह्ह्ह्ह.... मेरी फाड़ दोगे क्या..? मैं बोलने को बोली लेकिन मेरी चूतड़ ऊपर को उठायी।

"किसे फाड़ दिया क्या मेरी बहु..." मुझे चिढ़ाते हुए वह बोले और एक जोर का दक्का दिए।

छी... छी।.. गंदे कहीं के... कितने गंदे बात करते है बाबूजी आप.." मैं बोली और नयी ब्याही वधु की तरह शर्मायी I मेरे गालों में गर्म खून बही।

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