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गंगाराम और स्नेहा Ch. 01

Story Info
एक पचपन वर्ष के आदमी के साथ इक्कीस वर्ष की युवती की योन क्री
6k words
4.76
324
11

Part 1 of the 12 part series

Updated 11/29/2023
Created 06/03/2022
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गंगाराम और स्नेहा - 1 स्वीट सुधा 26

एक पचपन वर्ष के आदमी के साथ इक्कीस वर्ष की युवती की योन क्रीड़ा।

गंगाराम एक 55 साल का हट्टा कट्टा आदमी है। उसका कद कोई 5'7" लम्बाई होगी। दिखने में आकर्षक दिखता है और अच्छे सलीके से रहता है। उसके दांत में दो दिन से दर्द हो रहा था और आज वह डेंटिस्ट से मिलने आया है। उसने अंदर कदम रखा और एक 20 - 21 साल की उम्र की एक लड़की को एक छोटीसी टेबल पीछे बैठा पाया। लड़की उसे देख कर उठी और उससे काम पूछी, गंगाराम अपनी दर्द के बारे में बताया।

"डॉक्टर साब तो अभी आए नहीं 15 मिनिट में आजाएंगे आप बैठिये" उसने वहां पड़े कुछ कुर्सियों की ओर दिखाती बोली। गंगाराम उसके सामने की एक कुर्सी पर बैठ गया।

लड़की ने उसे परखा की वह वह एक सिल्क की जुब्बा पहने था और जीन्स में था। उसके दायां हाथ में एक सोने की ब्रेसलेट और बाया कलाई के दो उँगलियों में सोने की वजनी अंगूठियां है। उसके खुले गले से गले में का सोने की चैन भी दिख रहीथी। बहुत अमीर होगा लड़की सोची और उसके नाम और उम्र पूछ रजिस्टर में लिखी। और उसके लिये एक मेडिकल कार्ड बनायीं।

गंगाराम भी उस लड़की को परखा, उसकी उम्र कोई 20 -22 की होगा गंगाराम सोचा। लड़की दुबली पतली और, सावंली है। नयन नक्श अच्छे है। वह सलवार और कमीज पहनी थी और उसके उपर सलेटी रंग की कोट पहनी। शायद डाक्टर ने दिया हो। लड़की अपना काम करती इधर उधर घूम फिर रही थी तो गंगाराम ने देखा की उसके नितम्ब छोटे छोटे है लेकिन मांसल है। उसके नितम्ब लुभावनी अंदाज़ मे आगे पीछे हो रहे थे। उसके चूचियां भी छोटे छोटे है। बस एक हाथ में पूरे आ जाएंगे।

बैठे बैठे बोर होता गंगारम ने पुछा "नाम क्या है बेटी तुम्हारा?" रजिस्टर में कुछ लिखते लड़की ने सर उठाया और उसे देख कर बोली "जी... स्नेहा"। कुछ देर खामोशी रही और फिर पुछा "क्षमा करना बेटी बोर हो रहा हूँ इसीलिए पूछ रहा हूँ.. यहाँ कब से काम कर रही हो?"

"परवाह नहीं अंकल; तीन साल से कर रही हूँ" लड़की हँसते बोली। उसकी हसी बहुत मोहक है' सोचा गंगाराम। और गंगाराम के पैंट के अंदर सुर सूरी होने लगी।

"क्या सालरी मिलती है?" गंगाराम ने फिर पुछा।

वह एक क्षण हीच किचाई और बोली "जी, बारह हज़ार रूपये"।

"कितने बजे तक काम करती हो?" गंगाराम अपना बोरियत दूर करने की नियत से पूछा।

"सुबह ग्यारह बजे से दोपहर दो तक और शाम छह से दस तक..." लड़की ने उत्तर दिया।

"कहाँ तक पड़ी हो..?"

"इंटर पास हूँ..." लड़की को भी टाइम पास होता रहा था तो जवाब देने लगी।

यहाँ थोडा सा गंगाराम के बारे में जानते है। जैसे की ऊपर दिया गया है वह 55 का आदमी है। और एक रियल एस्टेट बिज़नेस करता है। वह पहले एक सरकारी कारखाने में काम करता था। और साइड में एक रियल एस्टेट बिज़नेस के सामान्य सा एजेंट बन गया। वह एजेंसी ऐसी थी की उस समय वह plots सेल करती थी वह भी किश्तियों (instalments) में। Plot का सेल फाइनल होते ही वह एजेंट को कमीशन देतीथी, साथ ही साथ हर बीस प्लाट बेचने पर एक प्लाट फ्री में देती थी।

गंगाराम क्यों की फैक्ट्री में काम करता था और plot किश्तियों में मिल रहा है ज्यादा तर वहां काम करने वाले खरीद लेते थे। गंगाराम को अच्छा कमाई होती थी और plots मुफ्त में मिल जाते थे। उसका कमाई इतनी थी की वह नौकरी छोड़ कर इसे ही अपना धंधा बना लिया। इस धंधे में उसने अच्छी कमाई की और अपने दोनों बेटों को अच्छा पढ़ाया और अब वह दोनो; एक अमरीका में है तो दूसरा ऑस्ट्रेलियामें है। दोनों की शादी हो गयी और घर भी बस गए। गंगाराम स्वयं विदुर है। उसकी पत्नी पांच साल पहले गुजर चुकी है।

हाथ में ढेर सारा पैसा जिस से वह मनमौजी बन गया। बढ़िया खाना बढ़िया पीने के साथ साथ उसे बढ़िया औरतों का भी शौक लग गयी। सुन्दर और जवान औरतों को देख कर उसके लार टपकते थे।

अब डेंटिस्ट के पास इस लड़की स्नेहा को देख कर भी उसके यही हाल हुआ। वह कुछ और बात बढ़ाने की सोचा इतने में डॉक्टर आगया तो लड़की सजग हो गयी। फिर गंगाराम को अंदर भेजी। डॉक्टर ने उसका मुआइना किया और उसे कहा की उसके दांत में सुराख़ पड़गई और अंदर कीड़े भी हो सकते है। डॉक्टर ने उसे कुछ दवई लिखी और चार दिन तक हर रोज आने को कहा। और उस सुराख़ को भरने की बात कही।

दुसरे दिन गंगाराम 10 बजे चला गया। स्नेहा उसे देखकर विश करि और बैठने को बोली। "आप जल्दी आगये अंकल डॉक्टर तो 11 या 11.15 बजे आते है।" स्नेहा बोली।

"हाँ मालूम है, आखिर घर में भी बैठना ही है, सोचा यही बैठ लेते है" फिर दोनों के बीच चुप्पी रही। "आप क्या काम करते है अंकल?" स्नेहा ने उसके उँगलियों में अंगूठियां देखती पूछी।

"कुछ नहीं, बस मौज मस्ती करता हूँ..."

"मतलब।...?"

"रियल एस्टेट में बहुत कमाया, सारा पैसा FD में लगाया है, हर तीन महीने में उसका ब्याज आती है और एक अपर्टमेंट है जिस से किराया आ जाता है, बस इसी से काम चलता है" वह बोला।

लड़की में उत्सुकता जागी पूछी "वैसे महीने में कितना income है अंकल?"

"हर महीना एक लाख किराया आता है, और हर तीन महीने में एक बार उतना ही पैसा ब्याज आता है।"

स्नेहा आश्चर्य चकित रह जाती है, फिर अपने आप को संभालती है और पूछती है "आपके पत्नी, बच्चे..."

"दो लड़के है, एक अमेरिका में है तो दूसरा ऑस्ट्रेलिया में है। दोनों की शादी हो गयी है और पत्नी पांच साल पहले कैंसर से भगवान को प्यारी होगयी है" उदास स्वर में बोला। सब मुझे ही पूछोगी, अपना भी तो कुछ बताओ" वह लड़की देखते पुछा।

"हमारा क्या है अंकल, एक निम्न मध्य वर्गीय (lower middle class) फॅमिली है। घर में मैं सबसे बड़ी हूँ और मेरे बाद एक बहेन है 18 साल इंटर में है और एक भाई 14 साल आठवीं में पढ़ रहा है। माँ और पिताजी।"

"तुम्हारे पीताजी कया करते है?" पुछा।

लड़की ने जवाब नहीं दिया, खामोश रह गयी। गंगाराम ने जवाब के लिए जोर नहीं दिया।

इतने में डॉक्टर साहिबा आगयी और बात वही रुक गयी। डॉक्टर ने उसके इलाज किया और दवा लिख कर चार दिन और आने को कही। इन चार दिनों में गंगारामने स्नेहा और घनिस्टता बढगई। लड़की स्नेहा ने भी उसमे रूचि लेने लगी। इस बीच गंगाराम ने मालूम किया की लड़की का बाप बेवड़ा है, नौकरि चले गयी, अब कुछ करता नहीं है। घर का खर्च तो लडकी की कमाई और घर में माँ कुछ सिलाई करके कमाती है, उसी से चलता है।

एक दिन वह उस से बोला "आज मेरा आना आखरी दिन है, वैसे तुम्हारे से बात करना बहुत अच्छा लगा। मैं तुम्हे मिस करूंगा" बोला

"मैं भी अंकल, आपसे अच्छा टाइम पास हो जाता था।

गंगाराम ऐसे ही किसी मौके का इंतज़ार था बोला "तुम्हे कोई प्रॉब्लम नहीं तो मैं रोज आकर बैठा करूँगा"

"मुझे क्या प्रॉब्लम हो सकती है, मुझे तो ख़ुशी होगी लेकिन आपका समय बेकार जायेगा।

"घर में भी बेकार ही बैठा रहूँगा, वहां के बदले यहाँ बैठूंगा, तो समय गुजर जायेगा" गंगाराम लड़की की ओर देखता बोला।

आपकी मर्जी अंकल मुझे कोई प्रॉब्लेम नहीं है... पर डॉक्टर आने से पहले। ." वह रुक गयी।

"वैसे ही होगा" गंगाराम कहा और चला गया। उसके बाद गंगाराम हर रोज 9.30 बजे आजाता था और 11.00 निकल जाता था। हर रोज लड़की के लिए कभी फल तो कभी चॉकलेट तो कभी नाश्ता ले आता था। और स्नेहा न न कहने पर भी उसे जबरदस्ती देता था। लड़की भी ना ना करती शर्माती ले लेती थी।

एक दिन उसने पुछा तुम संडे को क्या करती हो? उस दिन तो छुट्टी होती है न..?"

"कुछ नहीं अंकल घर में ही रहती हूँ, कभी कभी किसी सहेली के पास चली जाती हूँ।"

गंगाराम ऐसी बातों में अनुभवी खिलड़ी है तो उसने आठ दस दिन वहां जाना रोक दिया। गंगाराम को न आते देख कर लड़की तड़पने लगी और बेचैन होने लगी। आखिर उस से रहा नहीं गया रजिस्टर निकाल कर उसका फ़ोन नोट करि और उसे फ़ोन करि।

"हेलो कौन...?" अपने फ़ोन बजने पर गंगाराम ने पुछा।

"अंकल मैं हूँ, स्नेहा; डेंटिस्ट के यहाँ से..."

"ओह स्नेहा क्या बात है? डॉक्टर ने बुलाया है क्या...?"

"नहीं अंकल मैंने ही फ़ोन किया, वह क्या है की आप इतने दिन नहीं अये तो सोचा आपकी तबियत कैसी है" बस।

"ताबियत तो ठीक है, बस एक डील आगया..बहुत बड़ा है... इसी लिए... "वैसे तबियत ठीक न होती तो क्या करती?" गंगाराम ने हँसते पुछा।

"क्या करती कमसे कम तबियत पूछने तो आ जाती" स्नेहा ने भो हँसते जवाब दिया।

"तुम मेरे यहाँ तो कभी भी आ सकती हो"

"वाह ऐसे थोड़े ही आजाते, दावत दो तो आती हूँ..."

दावत का कया चाहे तो आज ही देता हूँ ...?"

"ओह.. कब आ रहे है...?" स्नेहा फिर से पूछी।

"दो दिन बाद.." उसने बोला और फ़ोन रख दिया। वह समझ गया की लड़की फँसी है... बस थोड़ा सा और कसना है।

दो दिन बाद वह स्नेहा के लिए एक महंगा सलवार सूट ख़रीदा और उसे भेंट की" यह तुम्हारे लिए...मेरा डील सक्सेस हुआ है..."

"यह क्या है..?"

"देखो तो..." उसने पॉकेट खोली तो सलवार सूट पाया और बोली "वाह कितना अच्छा है, बहुत महंगा होगा..." बोली, कुछ रुक कर फिर बोली "नहीं, नहीं इसे मैं नहीं ले सकती.. अगर माँ पूछे तो क्या जवाब दूँगी..." वह उसे वापस करती बोली।

"अरे कुछ तो बोलो पर मेरा दिल मत थोड़ो... तुम्हरे लिए बहुत चाहत से लाया हूँ,"

"लेकिन अंकल..."

"कह्देना की तुम्हारे यहाँ के फ्लैट में किस्तों में कपडे बेचने वाला आता है, उन्हीसे तुम यह खरीदी है"

*****************

"माँ यह कैसी है?" स्नेहा ने गंगाराम की दिए हुई सलवार सूट माँ को दिखाकर पूछी।

माँ उसे देखकर बोली "बहुत अच्छी है बेटी.. महँगी लगती है.. कहां से लाई?"

जो बात कहने को गंगाराम ने उसे कहा वह वही कही और बोली ज्यादा महँगी नहीं है माँ... मैंने पूजा के लिए खरीदी है..." पूजा उसकी छोटी बहन है ..क्या दीदी ओह तुम मेरी लिए खरीदी है.. कितना अच्छा है.. थैंक यू दीदी.." और उसने दीदी के गालों को चूमि।

"लेकिन तुम अपने लिए ले लेती..." माँ बोली।

नहीं माँ, पूजा कॉलेज जाती है.. इसे अच्छे कपड़े होने चाहिए.. उसके पूरे कपडे पुराने होगये है..." वह बोली।

फिर स्नेहा और गंगारम नजदीकी और और बढ़ते गयी यहाँ तक की गंगाराम अब उसके बदन पर हाथ फेरने लगा, गाल को चिकोटी काटने लगा। पहले तो स्नेहा को कुछ अजीब लगता था लेकिन अब उसे यह सब अच्छा लगने लगा। आखिर वह भी तो जवान लड़की है। उसेक दिल में भी जवानी के उमंग उभरने लगे। अब गंगाराम स्नेहा को कहीं न कहीं घूमने लेजाने लगा। कभी पार्क तो कभी मॉल तो कभी सिनेमा... स्नेहा भी हर संडे को अपने सहेली के यहाँ जाने की कह कर गंगाराम के साथ घूमने चली जाती थी।

मौका देख कर गंगाराम कभी उसके बदन पर हाथ फेरता तो स्नेहा की शरीर में करंट दौड़ती थी। उसे ऐसा लगता की इसमें मदहोशी छा गयी गयी हो, और उसके जांघो के बीच वहां से कुछ रिस रही हो।

*****************

उस दिन भी रविवार था। गंगाराम ने स्नेहा को फ़ोन किया और कहा " सुनो तुमने एक बार कहा था की दावत दो तो हमारे घर आवोगी.. बोला था न..."

"हाँ तो..." स्नेहा पूछी!

"आज तुम्हे दावत दे रहा हूँ तुम आज के दिन मेरे यहाँ बिताएगी" मुझे यहाँ मिलो और उसने उसे एक अच्छा होटल का नाम बताया। सुबह के गयारह बजे स्नेहा ने तैयार होकर, गंगाराम का दिया हुआ सलवार सूट बहन से पूछ कर पहनी और सहेली के साथ पिक्चर देखने जाने को कह शाम तक आने को कह चली गयी। जब वह ऑटो में वहां पहुंची तो गंगाराम वहां था और उसने ही ऑटो का भाड़ा चुकाया और उसे लेकर अंदर चला गया।

वहां दोनो ने अच्छ खाना खाया। ऐसा खाना तो स्नेहा ने ख्वाब में भी नहीं सोचो थी। इतना स्वादिष्ट था। फिर वह उसे लेकर अपने घर आया। उसके घर देख कर स्नेहा आश्चर्य में रह गयी। लोग ऐसे घरों में भी रहते क्या? वह सोची। कहाँ उसका दो छोटे छोटे कमरों का एस्बेस्टस की छत का घर कहाँ यह घर। उसके दीवार ही 11 फ़ीट ऊँचे थे। इतने बड़े बड़े कमरे देख कर वह चकित रह गयी।

जब वह सोफे पर बैठी तो उसे लगा की वह उसने घस रही है।

गंगाराम उसे कूल ड्रिंक पिलाया.. और इधर उधर की बातें करने लगा। गंगाराम कोई जल्दबाज नहीं करना चाहता था। स्नेहा को तो यह सब सपना लग रहा था। कुछ देर बाद गंगाराम ने स्नेहा को एक कमरा दिखा कर कहा "तुम इसमें आराम करो.. मैं मेरे कमरे में हूँ' कह कर उसे वहां छोड़ के गया।

स्नेहा धड़कते दिल से कमरे में पहुंची। इतना बड़ा कमरा.. और इतना बड़ा खटिया, उसके उपर मखमली बिस्तर। जब वह उस पर लेटी तो उसे लगा की वह एक फीट अंदर घस गयी। इतना बड़े कमरे में वह अकेली कुछ अजीब लगा और कुछ ढ़र भी।

वह उठकर गंगाराम की कमरे की ओर निकल पड़ी। कमरे में गंगाराम लुंगी बनियन पहन कर पलंग पर लेटा था। "अंकल" उसने बुलाया। गंगाराम ने सर घुमकर स्नेहा को देखा और उठकर बैठा और पूछा "क्या बात है स्नेहा आराम नहीं करि?"

"नहीं अंकल, इतने बड़े कमरे में कुछ अजीब सा लगा, कुछ ढ़र भी लगा था..."

"अरे ढर किस बात का..आओ इधर लेटो" अपने बिस्तर पर थप थपाया। स्नेहा धीरे से आकर वहां लेट गयी और सीधा लेट कर कुछ सोच रहीथी। दोनों खमोशी से अगल बगल लेटे थे।

"क्या सोच रही हो?" गंगाराम उसके ओर पलट कर पुछा।

"कुछ नहीं..."

"ऐसे तुम कितना सुन्दर लग रही हो" गंगाराम उसके मुहं पर झुकता पुछा।

उसने देखा की स्नेहा की होंठों मे हलका सा कम्पन है। उसने अपने गर्म होंठ स्नेहा के मुलायम होंठों पर लगा दिया। स्नेहा ने कोई प्रतिरोध नहीं किया।

स्नेहा ने कुछ देर खामोश रही और फिर वह गंगाराम की सहयोग करने लगी। गंगाराम की चुम्बन का जवाब वह भी उसके होठों को चुभलाते दी। स्नेहा का ऐसा सहयोग पाते ही गंगाराम मदहोश होगया। वह जमकर उसकी होंठों को चूमते एक हाथ उसके छोटे चूचि पर रखा और जोर से दबाया। " अहहहहहहह "स्नेहा दर्द से कराह उठी। उसके चुम्बन से उसके सास भी फूलने लगा।

उसने जोरसे गंगाराम से छुडाली और बोली "उफ्फ्फ..अंकल इतना जोरसे..ओह.. मेरी तो जान ही निकल गयी" वह गहरी साँस लेकर बोली।

"ओह! सॉरी.. तुम्हारा सहयोग पाते ही मैं जोश में..."

"तुम्हारी जोश ठीक है, मेरी तो जान निकल गयी ..." वह धीरेसे बोली।

गंगाराम ने उसे उल्टा पलटा कर उसके कुर्ते का हुक खोलने लगा। स्नेहा ने ख़ामोशी से अपने कुर्ते की हुक्स खुलवायी।

सारे हुक खुलते ही उसने स्वयं अपनी कुर्ता सर के ऊपर से निकाली साथ ही अंदर का स्लिप भी। अब वह ऊपर सिर्फ एक ब्रा में थि तो नीचे सलवार।

गंगाराम उसे सफाई से पीछे सुलाया और उसके ब्रा को उसके चूचियों से ऊपर किया। हमेशा ढक के रहने के कारण उसके चूची सफ़ेद दिख रहीथी। छोटे छोटे, मोसाम्बि के जैसा और उसके निपल भी छोटा जैसे मूंग फली की दाने की तरह।

"वाह। क्या मस्त चूची है..." उस पर हाथ फेरता बोला ।

"झूट अंकल, सबतो कहते है की मेरे छोटे है... उतना सुन्दर नहीं दीखते..."

"वह तो अपनी अपनी नजरिया है...मेरे लिए तो यह मस्त है..आओ तुम्हे दिखाता हूँ" उसने कहा और स्नेहा को पलंग पर से उतार कर आदम कद शीशे के सामने लाया.. उसे उसके छबि उसमे दिखाता बोला.. " देखो कितना सुन्दर लग रही हो"

स्नेहा अपने आप को शीशे में देख कर सोची "मैं संवलि हूँ तो क्या कितना सुन्दर हूँ, काश मेरी चूची कुछ और बड़े होते..'

गंगारम उसके पीछे ठहर कर अपना तना मस्तान उसके चूतड़ों पर रगड़ रहा था। स्नेहा ने सलवार के बावजूद उसके लंड की गर्माहट महसूस किया। गंगारम ने उसके दोनो नन्गी चूचियो पर हाथ फेरा और फिर उसकी नन्ही घुंडियों को उँगलियों से मसला।

"सससस...ममम.." स्नेहा मुहं से एक मीठी कराह निकली। गंगाराम ने अपने हाथ ऊपर से नीचे तक उसके बदन पर फेरते उसके नाभि के पास आया और छोटि सि नाभि के छेद में अपने ऊँगली डाल कर घुमाया.. "मममम..." एक सीत्कार और निकली स्नेहा मुहं से।

हाथों को और नीचे लेकर उसने स्नेहा के सलवार के नाडा खींचा.. 'ससररर' उसका सलवार उसके पैरों के पास। स्नेहा ख़ामोशी से यह सब करवाते मजा ले रही थी। उसके बदन में आग लगी है। "आह अंकल कुछ करो..." वह कुन मुनाई।

"क्या करूँ...?" वह उसकी आँखों में देखता पुछा।

स्नेहा शर्म से लाल होती बोली "जैसे के आपको मालूम नहीं...?"

गंगाराम ने कमर की ओरसे उसके पैंटी में हाथ डाला और उसके उभरे चूत को सहलाया। साफ़ सफाचट चूत पाकर वह खुश हुआ और पुछा.. "वह कितना सॉफ्ट है तेरी यह मुनिया.. लगता है...आज ही साफ करि हो.."

"हाँ.. आप के लिए ही मैं आज साफ करि हूँ..." वह इठलाती बोली।

उसका उत्तर सुनकर गणराम अचम्भे में रह गया और पुछा "मेरे लिए...तुम्हे मालूम था की मैं .." वह रुक गया।

स्नेहा ने चित्ताकर्षक ढंग से मुस्कुरायी और पलंग की ओर बढ़ते बोली... "हाँ... मुझे पहले से मालूम था की तुम क्यों मेरी दोस्ती कर रहे हो.."

उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं था.. उसने आश्चर्य से पुछा.."कैसे..." तब तक स्नेहा बेड पर चित लेट गयी लेटने से पहले उसने अपना पैंटी उतार फेंकी और अपने दोनों पैरों को चौड़ा कर एक हाथ अपनी बुर पर रख बोली "जब तुम्हारा इलाज होने के बाद भी तुम मेरे से बात करने की बहाने आने लगे तब ही मुझे मालूम था की तुम्हारा मकसद क्या है..." अपने बुर पर हाथ चलाते बोली!

गंगाराम उसे आश्चर्य चकित होकर देख रहा था।

"हाँ.. फिर भी... आखिर मैं क्या करती। मैं इक्कीस की होगयी हूँ, मेरा बेवड़ा बापतो मेरी शादी नहीं करेगा। बॉय फ्रेंड की तलाश नहीं कर सकती। वैसे मुझ जैसे सामान्य लड़की को कौन अपना गर्ल फ्रेंड बनाएगा? मेरी नौकरी ही ऐसी है। सुबह दस बजे से रात दस बजे तक। दोपहर दो तीन घंटे रेस्ट मिलती है.. लेकिन मैं घर ना जाकर वही क्लिनिक में रेस्ट करती हूँ.. अब समय कहा है बाहर घूमने फिरने की"।

"आखिर मैं भी जवान लड़की हूँ, मेरी उसमें भी आग लगती है... मेरी उस आग बुझाने के लिए मैं कहाँ जा सकती हूँ..." स्नेहा रुकी और फिर से बोली, "ठीक उसी समय तुम मेरे से फ्रेंडशिप करने की इच्छा व्यक्त किया तो सोचा तुम जैसे उम्र दराज से मैं सेफ रहूँगी" तो मैंने भी तुम्हे बढ़ावा दिया।"

*************************

"तो तुम तय्यार होके आयी हो...?" गंगाराम उसकी गाल को चिकोटी काटते पूछ. स्नेहा ने शर्म से लाल होकार अपने सर झुकाली।

"स्नेहा.. जब तुम शरमा रही हो तो बहुत सुन्दर लग रहि हो..." यह बात वह वास्तव में हि कहि। वह सब मॉडर्न लड़िकियों जैसा नहीं थी लेकिन उसका शर्माना गंगाराम को बहुत भाई। वह लड़की की कमर के पास बैठ कर लड़की को अपनी बुर पर हाथ चलाते देख रहा है।

उसके ऐसे देखने से स्नेहा और लाल हो गयी और शरमाते ही पूछी "ऐसे क्या देख रहे हो अंकल...?"

जवाब देने की स्थान पर गंगाराम स्नेहा के जांघो के बीच अपने, मुहं लगाया और स्नेहा की उभरी चूत को अपने मुहं में लिया।

"ओह अंकल यह क्या कर रहे हो...?" गंगारम के बालों को पकड़ कर पूछी।

"क्या कर रह हूँ.. इतनी अच्छी बुर का स्वाद ले रहा हूँ.." और उसके उभरे फांकों पर अपने जीभ फेरने लगा।

"आआह्ह्ह.. अंकल.. इस्सस... अच्छा लग रहा है.. उफ़ यह क्या हो रहा है मुझे..." स्नेहा गंगाराम की सर को अपनी चूत पर दबाती बोली। गंगाराम अपना काम में बिजी रहा। उसने अपनी अंगूठियों से स्नेह के फैंको को चौड़ा कर अंदर की लालिमा को देखता नीचे से ऊपर तक अपना जीभ चलाने लगा। स्नेहा को मानो ऐसा लग रहा है जैसे वह स्वर्ग में हो। अनजाने में ही वह अपने कमर ऊपर उठाकर गंगाराम की चाटने का मज़ा ले रही है।

कुछ ही पल गांगराम उसके बुर को चाटा होगा की अब उसके बुर में से मदन रस टपकने लगे।

यह देख गंगाराम और गर्म होगया और जोश मे आकर उसके रिसते चूत के अंदर तक अपना जीभ पेलने लगा। स्नेहा को ऐसा लग रहा था की उसके सारे शरीर में हज़ारों चींटे रेंग रहे हो।

"ओह माँ....आ... यह क्या हो रहा है मुझे.. मै कहीं उडी जा रही हूँ... अंकल.. उफ्फ्फ..." स्नेहा अपना चूतड़ ऊपर उठाते बोली।

"आअह्ह्ह्ह .. अंकल.. मममम.. मुझे मालूम नहीं था कि इस खेल में इतना मज़ा है... ससससससस.... मममम करो अंकल.. चाटो मेरी चूत को और चाटो.. ममम.. मुझे कुछ हो रहा है ... अंकल मुझे पिशाब लगी है..." छोड़ो मुझे बातरूम जाना है..." वह गंगाराम को अपने ऊपर से ढकेल ने की कोशिश की।

गंगाराम और जोर से उसके बुर को अपने मुहं में लेते उसके छोटे छोटे कूल्हों को दबाने लगा और कहा.. "चलो.. मूतो.. मेरे मुहं में मूतो.." कहते स्नेहा की क्लीट (clit) को अपने मुहं में लिए और धीरे से उसे दबाया..."

"आअह्ह्ह्ह... अंकल... हो गयी.. में मूत रही हूँ.. अब रोके नहीं जाता.. निकली ....ससस... निकली.." कहते खलास हो गयी। उसके अनचुदी चूत ने पहली बार बगैर चुदे ही अपने चरम सीमा पर पहुंची और स्नेहा निढाल होगयी।

**********

पूरा आधे घंटे के बाद....

"कैसा लगा मेरी जान...?" गंगाराम स्नेहा को अपने आगोश में लकर उसके गलों को और आँखों को चूमता पुछा।

"कुछ पूछो मत अंकल.. सच मैं तो स्वर्ग में थी... काश यही स्वर्ग है.. वैसे अंकल मुझे पिशाब जैसा लगा वह क्या है.. वह तो पिशाब नहीं था न..."

"नहीं.. स्नेहा.. तुम सच में ही बहुत भोली भाली हो.. आज कल के 14, 15 वर्ष की लड़कियां चूद जाते है... और उस रस के बारे में जानते है.. उसे मदन रस कहते है.. या climax पर पहुंचना.. जब लड़की को सेक्स में परम सुख मिलती है तब वह क्लाइमेक्स पर पहुँचती है.. जिसे ओर्गास्म (orgasm) भी कहते है...

कुछ देर दोनों के बीच ख़ामोशी रही। फिर गंगाराम ने पुछा "स्नेहा अब असली काम शुरू करें?"

स्नेहा ने लज्जा से लाल होती अपना सर झकाली और धीरे से अपने सर 'हाँ' में हिलायी। गांगराम अपना लुंगी खींच डाला। अंदर उसके मुस्सल तन कर आक्रमण करने के लिए तैयार है। उसे देखते ही स्नेहा की प्राण ऊपर के ऊपर और नीचे के नीचे रह गए।

"बापरे... इतना लम्बा और मोटा..." वह चकित हो गयी और बोली.. "अंकल यह तो बहुत बडा है.. मेरी छोटी सी इसमे कैसे जाएगी..?"

"तुमने इस से पहले किसी का देखि हो...?" गंगाराम उसकी छोटी सी चूची को टीपते पुछा।

"नहीं अंकल.. किसीके नहीं देखि ... हाँ मेरा छोटा भाई का देखि हूँ.. वह 14 साल का है लेकिन उसका तो मेरे ऊँगली की उतना भी नहीं है।"

"फिर तुम्हे कैसा मालूम है की मेरा बडा है..." अबकी बार उसने स्नेहा की छोटी सी निप्पल तो अपने उँगलियों से मसलते पुछा...

"मेरी एक सहेली है सरोज, मेरी ही उम्र की है। वह भी मेरे जैसे ही एक डॉक्टर के पास काम करती है। उस डॉक्टर का क्लिनिक मेरे डॉक्टर के क्लिनिक के सामने है। सरोज की शादी दो साल पहले हो चुकी है, वह मेरी पककी सहेली है.. उसीने बताया है कि उसका पति का कितना है। वह कह रहि थी की उसका पति का कोई छः इंच का है और पतला भी, वह कहती है की कभी कभी उसे उतना मज़ा नहीं अति है.. उस कुछ और चाहिए होती है।"

"अच्छा...और क्या कहती है तुम्हारि सहेली...." अब गंगाराम का एक हाथ उसके मस्तियों को टीप रहा है तो दूसरा उसके जांघों के बीच बुर से खिलवाड़ कर रही है।

बहुत कुछ नही अंकल बस यही की काश उसका पति का और थोड़ा लम्बा और मोटा होता तो शायद उसे मज़ा आ जाता..."

तब तक स्नेहा ने गंगारम के खेल का मजा लेते उसके लंड को अपने मुट्ठी में जकड़ी और बोली.." आह अंकल यह कितना अच्छा है.. जी चाह रहा है की चूमूँ.."

"तो चूमों न मेरी बुल बुल रोक कौन रहा है.. आवो मेरे जाँघों में..." और अपने जंघे पैलादि!

स्नेहा उसके जाँघों के बीच आयी और झुक कर अपना मुहं अंकल के लंड के पास ले आयी तो उसके नथुनं को एक अजीब सा गंध आया। वह बोलने को तो बोली लेकिन वास्तव में चूमना था तो कुछ हीच किचाई। फिर भी हलके से उस हलबी सुपाडे को नाजूक होंठों से चूमि और फिर जीभ की नोक से टच करी।

"मममम.. स्नेहा.. इस्सस.. " गंगाराम सीत्कार करा और उसके सर की अपने जांघों में दबाया।

गंगारम का सिसकारी सुनते ही स्नेहा में जोश आयी और पूरा सुपाड़ा अपने मुहं में ली। उसे चुभलाते उस पर अपने tongue चला रही थी। यहि कहते है न जब सेक्स की बात हो तो प्रकृति (natre) सब सिखा देती है। स्नेहा का भी यही हाल था। उसे कोई अनुभव नहीं थी फिर भी एक अनुभवी लड़की की तरह वह गंगाराम के लवडे को चाट रहीथी, चूम रही थी और चूस रही थी।

"मममम.. वैसे ही मेरी बुल बुल.. हहआ.. म... कया मज़ा दे रही हो.. वैसे ही करो... मेरी जान... और वैसे ही .. पूरा लेलो अपने मुहं में..." कहते गंगाराम जोर लगा कर अपना पूरा लवड़ा उस अनचुदी लड़की के मुहं में घुसेड़ेने लगा। एक दो बार तो लंड स्नेहा की गले में अटक गयी थी।

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