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गंगाराम और स्नेहा Ch. 03

Story Info
स्नेहा अपनी सहेली सरोज को गंगाराम से चुदने की बात की बात बता.
6.4k words
4.67
159
0

Part 3 of the 12 part series

Updated 11/29/2023
Created 06/03/2022
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स्नेहा अपनी सहेली सरोज को गंगाराम से चुदने की बात की बात बताती है।

उस दिन संडे था। समय कोई ग्यारह बज रहे थे। स्नेहा ने अपनी सहेली सरोज को फ़ोन किया और पूछी की क्या वह खाली है.. सरोज ने उधर से जवाब दी की वह खाली है।

"तेरे पति नहीं है क्या...?" पूछी स्नेहा।

"नहीं वह अपने कुछ फ्रेंड्स के साथ फिल्म देखने गया है और कह गया ही की वह शाम से पहले आने वाला नहीं।."

"खाना खायी...?"

"कहाँ यार स्टोव भी नहीं जलाई... में अकेली हूँ, सोच रहा हूँ की मेस से एक प्लेट माँगा लेती हूँ; मेरे घर के समीप ही एक मेस है। वहां फ़ोन करूँ तो भिजवा देते है..." सरोज का जवाब आया।

"चल, आज मैं तुझे खाना अच्छे से होटल में खिलाती हूँ..."

"अरे वाह मेरी बन्नू... क्या बात है.... बहुत चहक रही है...?"

"वैसा कुछ भी नहीं यार... बहुत दिन हो गये तुमसे मिलकर... कल ही मेरी सैलरी मिली है.. बस.."

"अच्छी बात है.. कहाँ मिलूं.. या तू मेरे घर आजा..."

"नहीं, तुहीं होटल को आजा.." स्नेहा होटल का नाम बोलती है और फिर कहती खाने के बाद "मैं तुम्हारे साथ.... गप्पे मारते है.."

"ठीक है..." सरोज फ़ोन बंद कर तैयार होने लगती है।

सरोज हेमा की उम्र की ही लड़की है.. वह भी स्नेहा की तरह एक डॉक्टर के पास काम करती है। दिखने में स्नेहा से जरा सा गोरी है उसका शरीर भी स्नेहा कि मुकाबले में भरा, भरा है। सरोज के चूची भी स्नेहा के मुकाबले बड़े है। जब की स्नेहा के 28 A कप वाली ही तो सरोज के 32 B कप के है। उसके कुल्हे भी स्नेहा के मुकाबले बड़े है और मांसल (fleshy) है। जब वह चलती है तो उसकी थिरकते कूल्हे देख कर राह चलने वालों की मन मचल जाती है। दो साल पहले उसकी शदी हो चुकी है और अभी तक उसका कोई संतान नहीं है।

जब दोनों सहेलियां होटल के सामने मिले तो लगभग एक बज रहा था। सरोज को स्नेहा होटल के बाहर ही उसका वेट करते मिली। स्नेहा को देख कर सरोज ढंग रह गयी। स्नेहा जीन पैंट पहन कर शर्ट डाली थी। सरोज स्नेहा से मिलकर तीन महीने के ऊपर होगये। स्नेहा कभी भी जीन पैंट नहीं पहनती थी। लेकिन आज वह जीन पैंट में और शर्ट में थी, और खूब जच रही थी। जीन पैंट से स्नेहा के पतली जाँघे और छोटे नितम्बो का कटाव दिख रहे थे। सरोज खुद सलवार सूट में थी।

"हाय हनी..." सरोज स्नेहा से गले मिली। स्नेहा भी उसे चिपक गयी। दोनों अंदर चलने लगी।

"स्नेहा क्या बात है... बहुत मस्त लग रही है..." सरोज उसे निचे से ऊपर तक देखती पूछी।

"कुछ नहीं मेरी माँ.. पहले चल अंदर जमके भूख लगी है..." इससे पहले भी दोनों सहेलियां, कभी कभी मिलकर बाहर खाना खाते थे, लेकिन तब हमेशा होटल न जाकर मेस में खा लिया करते थे। लेकिन आज स्नेहा उसे इतनी अच्छे होटल ले आयी है..बात क्या है'...' वह सोचने लगी।

दोनों आमने सामने बैठ गए। "बोल क्या खायेगी...?" स्नेहा पूछी।

"यार आज बटर नान और कड़ाई चिकेन खाने का दिल बोल रही है... चलेगा...?"

"हाँ.... हाँ.. क्यों नहीं चलेगा जो चाहे खालो.... फिर आइस क्रीम भी मंगालेना। बिलकी फ़िक्र न कर.." स्नेहा बोली।

"यार स्नेहा, कोई बात तो जरूर है... जो तू इतना दरिया दिल निकली.. कोई लाटरी लग गयी क्या...?"

"आरी मेरी माँ.. चुप करना... पहले आर्डर तो दे... घर चल कर सब बता दूँगी.."

"एक बात बता स्नेहा.. कोयी बॉय फ्रेंड मिल गया क्या... बहतु खुश दिख रही है..."

""हाँ, लेकिन बॉय फ्रेंड नहीं... मैन फ्रेंड है.."

"क्या.. मैन फ्रेंड..? यह कौन हुआ...?"

"यार, मैन फ्रेंड यानि की आदमी... कोई जवान नहीं..."

"अच्छा.. कितने वर्ष का है..कोई 30, 32 वर्ष का तो होगा ही..." सरोज स्नेहा को देखती पोची।

"नहीं रे.. और बड़ा है..."

"अरे कितना बड़ा है.. कहीं बुड्ढा तो नहीं .."

"यार सरोज, सबकुछ यहीं पूछेगी क्या...? में कही थी न घर चलकर बताउंगी..." स्नेहा अपनी सहेली को डाँटि। उसके बाद दोनों इधर उधर की बाते करते खाने लगे।

"यार सरोज.. तेरे पती कैसे हैं...?"

"उन्हें क्या वह तो मनमौजी है...सवेरे कंपनी जाते है और शाम को वापस.. मैं ही ऐसी की सवेरे दस बजे से दोपहर दो तक और फिर शाम 5.30 से रात दस कभी कभी 10.30 होजाते है। साली क्या नौकरी है...न आराम है न छुट्टी मिलती।"

"हाँ वह तो है... लगभग मेरा भी यही हाल है..." एक लम्बी साँस लेते बोली स्नेहा।

दोनों सहेलियां खाना ख़तम करने के बाद स्नेहा ने लजीज ice cream मंगाई। उसका cost मालूम होते ही सरोज फिर से दंग रहगयी। सोची 'जरूर कोई मालदार के पाले पड़ी है'।

खाना ख़तम करने के बाद दोनों सहेलियां सरोज के घर आयी। सरोज का दो कमरों का छोटा सा घर है। एक बेड रूम, एक फ्रंट रूम और छोटासा किचन बस। दोनों सहेलियां हाथ मुहं धोकर सरोज के बेडरूम में आये। सरोज ने दो मैक्सी निकाल कर एक स्नेहा को दी और एक खुद पहनी। स्नेहा ने भी अपना जीन पैंट और शर्ट उतार कर सरोज दवरा दिए मैक्सी पहनी।

दोनों सहेलियां पलंग पर अगल बगल लेटे रहे। वह एक दुसरे को देखते बातें करने लगे। सरोज का हाथ स्नेहा के कमर क गिर्द लिपटी है तो स्नेह का सरोज के कमर के गिर्द। ऐसे लेटके बातें करना वह पहले से करते थे।

"स्नेहा..." सरोज बुलाई और स्नेहा को अपने नजदीक खींची।

"vooon" बोलती स्नेहा सरोज के समीप किसकी। "क्या है...?" पूछी।

"तुझ में बहुत बदलाव आए है..." स्नेहा की गाल पर अपनी तर्जनी ऊँगली घुमाती बोली।

"अच्छा... ऐसे क्या बदलाव देखे है तूने..?"

"सबसे पहले तो तेरे छेहरे पर निखार आयी है। तेरी स्किन पहले से ज्यादा स्मूथ हो गयी है। और अब तू कुछ ज्यादा महंगे कपडे पहन ने लगी। पहले तू सर्फ सलवार सूट में रहती थी लेकन अब..." सरोज कुछ पल रुकी और पीर बोली "अब तु जीन्स, शर्ट के साथ साथ, लेग्गिंग्स और शार्ट कुर्ती भी पहन रही है... क्या यह सब बदलाव नहीं है..?" सरोज रुकी।

"वाह बहुत अच्छी परख रही है..."

"सच बोलना स्नेहा यह सब उस बॉय फेरेंड का असर तो नहीं है...?"पूछी।

"हाँ.... उसी का असर है..." स्नेहा कुछ सोचते बोली।

"चल सुना अपना किस्सा..." कहती सरोज ने स्नेहा के मैक्सी के अंदर हाथ डालकर एक चूचिको पकड़कर भींची।

"सससससस...ह्ह्ह्हआआ.... इतने जोरसे नहीं.." स्नेहा सरोज के हाथ को रोकते बोली। "चल सुन.. तू भी क्या यद करेगी...?"

ठहर.... आज बहुत गर्मी है.. मैक्सी निकल देते है..." सरोज कही और खुद ही अपना और स्नेहा का भी मैक्सी उतार फेंकी। अब दोनों सहेलियां सिर्फ पैंटी और ब्रा में रह गये है। स्नेहा की ब्रा, पैंटी का ब्रांड का नाम देख कर सरोज बोली "waaaav... इतनी महंगी अंडरवियर..." वह अचम्भे में रह गयी।

उसे मालूम है की उस कंपनी के ब्रा और पैंटी की से मिनीमम 300 रूपये से कम नहीं है।

यह पैंटी तो बहुत अच्छी...महंगी होगी...?" सरोज अपने हाथ स्नेहा के पैंटी को टच करती बोली।

"हाँ ब्रा और पैंटी का जोड़ा 400 की है।" 400 रुपिये उस निम्न मध्य वर्गीय (Lower middle class) युवतियों किये महंगी ही है। वैसे मार्किट में 1000 रुपये के ऊपर वाले भी उपलब्ध हैं।

सरोज याद् करि की वेह लोग हमेशा मर्केट से किसी ठेले वाले के पास से 25, 30 की ब्रा पैंटी खरीदते थे। वह कुछ बोलने को सोची, फिर खामोश होगयी।

उसके बाद स्नेहा ने अपनी गंगाराम का किस्सा पहले से सुनाई।

"ओह.. तो तू उस 55 साल के बुड्डे से चुद गयी..."

"सरोज मै फ्रेंड... 55 साल का बुड्ढा नहीं... 55 साल का जवान कह; जवान मर्द कैसे चोदते हैं मुझे नहीं मालूम नहीं; क्यों की मैं इस से पहले किसी से चुदाई नहीं... लेकिन इस अंकल की चुदाई तो मुझे स्वर्ग की सैर कराती है।"

"अच्छा... क्या तुम्हरा यह अंकल इतना अच्छा करता है...?" सरोज में उत्सुकता जगी।

पूछो मत.. मुझे तो मजा ही मजा मिलती है... प्यार भी ऐसे करते है की दिल बाग बाग हो जाति है।

"अच्छा.... तू कितने बार करा चुकी है...?" सरोज उत्सुकता से पूछी।

"यार मेरा और उनका परिचय 4 महीने से चल रहा है.. और अब तक में सात से आठ बार उनसे.... वह रुकी... सच बहुत मजा देते हैं..." स्नेहा गंगारम की हरकतों को याद करते बोली।

"अच्छ ऐसा क्या करते हैं...?"

"क्या बोलूं.. मेरी समझमे नहीं आ रहा है.. अंकल तो मेरी चूची के दीवाने है ....?

"क्या...? मैं तो सुना है की लोग बड़े चूची के दीवने होते है... सॉरी.. तुम्हारे तो इतना छोटे है की..."

"आरी इस में सॉरी क्यों... जो है वही कह रही है न.. सही.. मेरे तो बहुत छोटे हैं... मैं इक्कीस की हूँ लेकीन मेरी दुद्दू.. छी...छी.... दुद्दू क्या वह तो कच्ची कैरी की गुटली जैसे है...उसे चूची कहना चूची के साथ अन्याय होगी..."

"खैर छोड़ो... भगवन ने जैसे दिए है वैसे हैं ... तो तुम्हरे अंकल क्या करते हैं ..?

"यार वह तो मुझे पहले चित लिटाते है और मेरी कपडे निकलने बाद सबसे पहले तो मेरी चूची पर टूट पड़ते हैं..."

"चूची पर टूट पड़ते हैं.. क्या मतलब...?"

"पहले तो वह एक के बाद एक को चूची की बेस से ऊपर नन्ही सी घुंडी तक चाटते हैं। उनकी खुरदरी जीभ का स्पर्श से ही में झड़ जति हूँ..... चाटते चाटते वह घुंडी को अपने जीभ से टिकल करते है तो मेरी सारे शरीर में बिजली दौड़ती है..."ममममम... अंकल.." कहते मैं उन्हें मेरे सीने से दबाती हूँ... फिर यह मेरी नन्ही घुंडी को होंठों मे दबाते है.. दांतों में नहीं... होंठों में... जब तो मैं पागल सी हो जति हूँ... और मैं खुद मेरी ऊँगली अपनी बुर पर पैंटी के ऊपर से चलाती हूँ...

फिर अंकल मेरे पूरी चूचिको अपने मुहं में लेते है और ऐसे चूसते है की मुझे तो लगता है मेरा सारा खून मेरी चूची से उनके मुहं में बह रहा हो..." स्नेहा रुकी।

स्नेहा की दास्ताँ से सरोज भी जोशमे आने लगी। वह खुद स्नेहा की पैंटी के साइड से ऊँगली अंदर डाल कर उसकी बुर को खुरदते वह खुद स्नेहा की पूरी चूची को मुहं में लेकर चूसने लगी।

"ससससस.... सरोज.. यह तू क्या कर रही हैं...?" स्नेहा भी अपनी सहेली की चूची को पकड़ते पूछी। सरोज की चूची B कप के size के है... और घुँडो भी बेर की बीज जैसे है। स्नेहा उसे उँगलियों में लेकर मसलने लगी।

"स्नेहा बोलना और क्या करते है.. तुम्हारे अंकल..."

"क्या बोलूं यार.. मैं बोलते बोलते थक जावूँगी..." स्नेहा ने भी सरोज की चुदी चूत में अपनी ऊँगली घुसाते बोली।

"अच्छा एक बात बता.. तुम्हरे अंकल का कैसा है...?"

"पूछो मत... एकदम लाजवाब है..."

"अच्छा... कितना बड़ा है...? छह इंच का तो होगा ना..." सरोज अपने पति की याद करते बोली।

"छह इंच.. यह तो अंकल के समने चूहा है.. अंकल का तो पूरा 9 1/2 इंच के ऊपर है.. और मोटापा पूरा 4 इंच का है..."

"तुम्हे कैसा पता.. है कि वह उतना लम्बा और मोटा है...?"

"उसकी लम्बाई देख कर में दंग रह गयी थी... मुझे तुम्हारी बात यद् आयी की तुम्हारा पति का लग भग छह इंच का है... तो मैंने उसे नापी.. तौबा.. पूरा नौ इंच से भी जयदा है उनका.. फिर उनके, उसके गिर्द धागा लपेट कर उसकी नाप ली तो पूरा चार इंच है..."

"हाय.... दय्या... इतना मोटा और लम्बा..." सरोज अपने हाथ अपने सीने पर रख कर कही...

"क्यों.. मन कर रहा है ...?" स्नेहा ने सरोज के गाल को चिकोटी काटी।

"चुप.. साली.. बेहया निगोड़ी कहीं की..." सरोज स्नेहा की चूची टीपते बोली

कुछ देर बाद सरोज फिर से पूछि.. "इतना मोटा अंदर घुसा तो तुझे दर्द नहीं हुअ.. उतना मोटा घुसने से.. मेरा तो मेरा पति का घुसते ही दर्द से जान निकल गयी थी..." वह अपनी सुहाग रात याद करते बोली।

"क्यों नहीं ... मेरी भी जान ही निकल गयी.. मैं अंकल निचे चट पटाने लगी। उनका सिर्फ आगे का हिस्सा ही मेरे अंदर गयी। तभी मेरा यह हाल होगयी.. अगर पूरा एक ही बार में घुसता तो....

"अच्छा..एक बात बता..." स्नेहा पूछी।

"क्या...?"

"तू कितने बार खलास होती है...?"

"कितनी बार क्या.. मुश्किल से एक बार... वह भी कभी कभी। कभी कभी मुझे ऐस लगता है की जब मैं पूरे ताव में अति हूँ तो मेरा पति कुछ देर और करे... या दूसरी बार करे.. लेकिन.. वैसा नहीं होता..." सरोज कुछ उदास स्वर में बोली।

"तुझे मालूम है अंकल कितनि देर करते है... और मैं कितनी बार झड़ती हूँ...?" स्नेहा बोली।

"कितनी बार झड़ती है...?"

कम से कम तीन बार... कभी कभी ज्यादा भी.. और अंकल... पूरा 35 से 40 मिनिट करते है।

"क्या इतनी देर...?"

"हाँ यार.. मेरी कमर टूट जाती है.. लेकिन अंकल है की स्खलित होने का नाम नहीं लेते।" ऐसे ही बात करते जरते दोनों सहेलियां एक दूसरे की अंगों से खिलवाड कर एक एक बार झड़ चुके और और उठ गए। सरोज ने स्नेहा से गंगाराम के बारे में खुरेद खुरेद कर पूछी और स्नेहा जोश में जवब दे रहीथी। शाम पांच बजे तक स्नेहा अपने सहेली के साथ रही और घरचली गयी।

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जाने अनजाने में ही स्नेहा ने सरोज के मन में लंबे मोटे लंड के चुदाने ने का मज़े के किस्से सुनाकर उसमे आग भड़का दी। उस रात जब सरोज को उसका पति चोद रहा तो, वह अपने ऊपर गंगाराम की कल्पना करने लगी। अनजाने में ही सरोज में गंगाराम के प्रति एक चाहत पनपने लगी। जैसे जैसे अह गंगाराम के बारे सोच रहीथी, वैसे वैसे गंगाराम की प्रति उसकी चाहत बढ़ने लगी। एक बार चुदाके देखने में क्या हर्ज़ है... सरोज सोची। स्नेहा से पूछूँगी की वह उसे अंकल से मिलवाये। क्या स्नेहा मिलवाएगी... वह सोच रही थी। पूछ के तो देखते है... देखते है स्नेहा क्या कहती है। वह सोचने लगी।

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स्नेहा की आज कल की व्यवहार (बेहवियर) देख कर उसकी माँ; जिसका नाम है गौरी, को अनुमान हुआ की उसकी बेटी किसि से शारीरक सम्बन्ध बनाये है। 'शायद वह गंगारम बोलने वाला ही होगा' वह सोची। आज कल वह हर रविवार को सहेली से मिलना कहकर चली जाती है... घर में खाना भी बराबर नहीं खाती। गौरी ने, स्नेहा की शरीर में आरहे बदलाव को भी देखि। लेकिन वह उसे डांट नहीं सकती। लड़की जवान है, समझदार भी है। उसी से तो घर चल रहा है; उसका बेवड़ा पति तो पी पी कर अच्छा खासा सरकारी नौकरी ही खो दिया। तब से स्नेहा उस डॉक्टर के पास काम करके घर चला रही है। छोटी बहन और छोटे भाई की फीस भी तो वही भरती है। उसका ढर यही है की कहीं उसकी बेटी इतना बदनाम न हो की उसकी शादी में बाधा न पाडे। 'लेकिन क्या यह लोग उसकी शदी करेंगे...?' यह एक बड़ा सवाल थी।

एक दिन जब घर में कोई नहीं थे तो उसने स्नेह से कही, "बेटी तुमसे कुछ बात करनी थी... तुम्हे पुरसत है क्या...?"

"बोलो न माँ... क्या बात है...?"

बेटी देखो मेरी बातों का बुरा मत मान ना ..." वह बेटी की टोड़ी पकड़ कर बोली।

"अरे इसमें बुरा मान ने कि क्या बात है.. तुम मेरी माँ हो.. कहो क्या कहना चाहती हो...?

"स्नेहा बेटी तुम समझदार हो...तुम जो भी कदम उठारहि हो... सोच समझ कर उठाना... कहीं ऐसा न हो की तुम इतना बदनाम हो की आगे चलकर तुम्हारी शादी में कोई बाधा न पड़े..."

"माँ....." स्नेहा अपनी माँ को आश्चर्य से देखने लगी।

"हाँ.. बेटी... मुझे मालूम है... तुम जवान हो गयी हो.. तम्हारा पीवट पिता तो तेरी शादी करने से न रहे। मैं समझ चुकी हूँ की तुम आज कल तुम कहते हो न वह गंगारम अंकल.. उसके साथ घूम रही हो... जवानी ऐसे ही होती है.. मैं तुम्हे नहीं रोक नहीं रहीं हूँ.. लेकिन संभाल के.. कहीं तुम.... तुम समझ गयी न मेरी बात को..."

"जवानी होती ही ऐसे.. मैं खुद इसका शिकार हो चुकी हूँ...." उसकी माँ फिर कही।

"माँ......!" स्नेहा आश्चर्य से अपने माँ को देखि।

"हाँ बेटी .. मेरा मामा, माँ का छोटा भाई... जब मैं जवान थी तो शादी करने का वादा करके... मेरे से..." वह रुकी और बोली "आज कल तुम नींद में भी बड बडाने लगी हो..."

"क्या..." स्नेहा चकित रह गयी।

"हाँ बेटी..."

"मैं क्या बड़ बड़ा रही थी...." स्नेह अपनी माँ से पूछी।

स्नेहा की माँ 'गौरी' जिसकी उम्र केवल 41 साल की है गालों में लालीमाँ छागयी। माँ के कपोलों पर इस उम्र में आयी लालिमा देख कर सोची 'ऐसे क्या बोलदिया मैंने' सोची और माँ के गालों आयी लालिमा से मोहित होते पूछी..."बोलो ना माँ..."

"छोड़ो बेटी... आगे से संभल के रहना..." माँ बेटी से बोलने हिच किचा रही थी।

"लेकिन माँ.. मैं ऐसे क्या बोली.. मुझे मालूम तो हो..."

बेटी, तुम्हे मालूम है है हम सब एक ही कमरे में सोते है... उस रात तुम्हारी बड़ बड़ाने आवाज सुनकर मेरी नींद खूली। तुम कह रही थी... "ओह अंकल.. जरा धीरेसे पेलिये.. आपका बड़ा है..." माँ के मुहं से यह बात सुनते ही... स्नेहा शर्म से लाल पिली हो गयी। उसे क्या बोलना समझमे नहीं आया। खामोश रह गयी। "बेटी मेरे बातों का बुरा मत समझना... तुम अपने लिए किसी अच्छे लड़के को ढूंढ लो... उस से शादी करलो... और उस अंकल के साथ संभल के ... बस मैं यही कहना चाहती हूँ..." माँ बोली और खाना बनाने चली गयी।

उसके बाद तो स्नेह को खुली छूट मिल गई... अब वह अपने माँ से अंकल के यहाँ जा रही हूँ कहकर जाने लगी। वह समझ गयी की मा उसे रोक नहीं रही है.. केवल सावधान रहने को कही। स्नेहा समझ गयी माँ का ईशारा किधर है.. और अब वह गर्भ निरोधक गोलियां लेने लगी।

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दोनों सहेलियां, सरोज और स्नेहा मिलके एक महीने के ऊपर होगया है। आखिरी बार जब वह मिले थे तो स्नेहा ने अनजाने में ही हो आपनी सहेली सरोज के मन में मोटा और लम्बे लण्ड से चुदाने का मजे के बारे में बताकर उसके मन में एक छोटीसी चिंगारी सी पैदा करदी। उसी रात जब सरोज अपने पति से करवा रही थी तो उसने अपने ऊपर स्नेहा का बॉय फ्रेंड, 55 वर्ष के गंगाराम की कल्पना करी थी।

उस मिलन के दूसरे या तीसरे दिन सरोज सोची की गंगाराम से उसका परिचय कराने के लिए स्नेहा से पूछेगी। लेकिन वह नौबत नहीं आयी। एक महीने के ऊपर होगया इस चिंगारी को सुलग के। उस चिंगारी ने अब आग बनगयी है। इस बीच स्नेहा से उसकी (सरोज) दो तीन बार सिर्फ फ़ोन पे ही बातें हुई थी।

आज फिर रवि वार है। उसका और स्नेहा का भी छुट्टी का दिन। उस दिन उसने स्नेह को फोन करि।

"हाँ बोल सरोज कैसी है..?." स्क्रीन पर सरोज का नाम देख कर उधर से स्नेहा कही।

"मैं तो ठीक हूँ.. तू बोल कैसी है...?" सरोज कही।

"हाँ यार सब चंगा.. बोल कैसे फोन करी..?"

"यार सोचा हम दोनों मिलकर बहुत दिन हो गए, सोचा बैठकर गप्पे लडाते हैं... बस उसिलिये.. तेरा कोई इंगेजमेंट है क्या...?"

"नहिं... वैसा कुछ भी नहीं है.. सोच रही हूँ कि आज घर में ही रेस्ट करने की ..." स्नेहा का जवाब आया।

"स्नेहा एक काम कर..तू तैयार होक मेरे यहाँ आजा.. यहीं रेस्ट करलेना और अपने गप्पे भी हो जाएंगे.. क्या...?" सरोज बोली।

"क्यों तेरा पति नहीं है क्या...?"

"यह तो सवेरे ही चला गया... अब तक अपने यार मित्रों के साथ ताश में बैठा होगा..."

स्नेहा कुछ पूछे ने को सोची और फिर बोली.. ठीक है अति हूँ..." कही और अपने माँ से कह कर वह सरोज के घर चली।

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दोनों सहेलियां गले मिलते है और सरोज स्नेहा को अंदर बुलाई और एक पुरानी सोफे पर बैठे। कुछ देर इधर उधर की के बातें होने का बाद.. सरोज ने स्नेहा को चाय पिलायी।

"सरो... तुमसे एक बात पूछनी थी; पूछूं, बुरा मत मान ना..." स्नेहा अपनी सहेली को देखते पूछी।

"अरे.. इसमें तेरेसे बुरा होना क्या बात है.. पूछ क्या पूछने चाहती है...?" सरोज स्नेहा के हाथ को अपने हाथ में लेकर बोली।

"कुछ नहीं.. सरो.... आज संडे है और तुम्हारा पति का भी छुट्टी है... वह तुम्हे कभी बहार घूमाने नहीं ले चलता... यही एक ही दिन तो तुम्हे मिल झुलकर रहना चाहिए थी।"

"आआआआह्ह्ह्हह्ह" सरोज ने एक लम्बी सी आह भरी बोली... स्नेहा मैं डियर जो तुम कह रही हो वह सच है... लेकिन वह कहता है की वह सारे हप्ते मेरे साथ रहता है तो संडे के दिन उसे दोस्तों से मिलना जरूरी है..."

"सारा हपता तुम्हरे साथ.. कब..?" स्नेहा चकित ठोकर पूछी।

"उसका मतलब रातों से है.. हर रात मेरे साथ रहता है... यह वह कहता है..."

"खैर छोड़ो वह किस्सा... चलो किचन में.. खाना बनाते बातें करते हैं..." सरोज स्नेह का हाथ पकड़ी।

"अब क्या खाना बनाएगी तू... चल आज बाहर से मंगाते है...डोंट वोर्री... पेमेंट मैं करूंगी"

"यार स्नेहा आज कल तू बहुत दरिया दिल वाली बन रही है..."

"ऐसे कोई बात नहीं... बस यही तो दिन है मौज मस्ति करने की..." फिर वह फ़ोन पर एक मटन बिरयानी, मटर पनीर करी, मीट बॉल्स कोफ्ता करी के साथ डबल का मीठा का आर्डर करि।

फिर दोनों सहेलियां बैडरूम में पहुँचते है.. और बातों में लगते है। दोनों अगल बगल में लेटे है और एक दूसरे को देखरहे हैं। स्नेहा का हाथ सरोज के कमर पर तो सरोज का स्नेहा का कमर पर। सडनली (suddenly) सरोज स्नेहा को अपने सामीप खींचती है और " स्नेहा आज तू बहुत आकर्षक (attractive) लग रही है...." कहते उसके होंठों को अपने में लेकर चूसने लगी।

"स्स्स्सस्स्स्स.... सरोज.. यह क्या कर रही है..." स्नेहा जबरदस्ती उस से छुड़ाती बोली।

"सच में यार तू आज बहुत आकर्षक लग रही है..." सरोज ने स्नेहा की छोटी चूची को अपने हाथ के निचे दबाती बोली।

"ममममम... तुम भी तो कुछ काम नहीं हो सरो..." स्नेहा ने अपनी सहेली की चूची थामी। कुछ ही देर में दोनों नंगे होगये... उनके शरीर पर सिर्फ ब्रा और पैंटी ही रह गयी है। सरोज ने स्नेहा के चूची को पूरा अपने मुहं में लकर चूसने लगी... "आअह्ह्ह... सरोज.. ऐसे ही चूसे मेरी सहेली.. मजा आ रहा है... ससस..हह" कही और सरोज के सर को अपने सीने से दबाली।

वह खुद सरोज के चूची के निप्पल को पिंच करते... दूसरे हाथ को उसके बुर पर पैंटी के ऊपर से चलाने लगी। सरोज ने अपने टाँगे पैलादि। स्नेहा की ऊँगली उसके सहेली के बुर में झड़ तक घुस गयी है।

"हाहाहा... ममम.. स्नेहा ऐसे ही कर मेरी बन्नो.. और डाल अपनि ऊँगली... को..." कहते कमर उछाली। फिर दोनों सहेलियां ऐसे ही मस्ती करते एक दूसरे की बुर को चूमते, चाटते उँगलियों से चुदाई करके झड़ जाते है..."

जब तक वह दोनों फ्रेश होजाते है तो उनका आर्डर किया खाना आजाती है, फिर दोनों सहेलियां बातें करते खाने पर बैठ जाते हैं।

खाना खाते.. सरोज पूछी... "बोल स्नेहा तुम्हारा क्या हाल है... इस बीच तुम अपने अंकल से मिली हो क्या....? (उसका इशारा गंगाराम से था)

"हाँ यार.. लास्ट वीक ही मिली हूँ...."

"अच्छा.. अबकी बार क्या किया था तुम्हारे अंकल ने..." सरोज स्नेह कि छोटीसी निप्पल को दबोचती पूछी ।

"यार सरोज मत पूछ... इस बार तो उन्होंने मेरी गांड मारी ..."

"क्या...? तूने गांड मरवाई...?" सरोज आश्चर्य से पूछी।

"हाँ..."

"स्नेहा तुझे दर्द नहीं हुआ...? तुम तो कह रही थी की उनका बहुत बड़ा है..."

"हाँ.. बहुत बड़ा है.. लेकिन अंकल इतना प्यार से करे की मुझे मालूम नहीं हुआ की उनका डंडा मेरे पीछे में चली गयी है..."

"ऐसा कैसे हो सकता है....?"

"है ना मिरकिल.... (miracle) यही हुआ और सच मनो तो मुझे भी मजा आया..."

"हाय राम.. तेरा गांड है की सुरंग..." कहते सरोज ने अपने जांघों के बीच अपने हाथ डालकर खुद अपनी बुर को भींची।

"क्यों.. खुजली हो रही है क्या..? तुम भी अंकल से क कराना चाहती हो...?"

"तुम्हारे अंकल मुझे क्यों करेंगे..? तुम तो कहती हो की वह तुम पर फ़िदा है..."

वह सब छोड़... तुझे कराना हैतो बोल... मैं अंकल से कहूँगी कि वह मेरे अच्छी सहेली का भी जरा ध्यान रखे।

"क्या वह मुझे चोदेंगे? "

"क्यों नहीं चोदेंगे....? क्या कमि है तुम में.. मेरी से गोरी हो... और तेरा शरीर भी मेरे शरीर से भरा है ... और तेरे चूचिया तो देख कितने मस्त है...." उसने सरो की चूची को जोर से मिंझी और बोली "वैसे मैं एक बात बोलना भूल गयी " स्नेहा कही।

"क्या....?" पूछी सरोज.. वैसे उसके मन में स्नेहा की बातों से उछाल खुद करने लगी।

"इस संडे, अंकल ने हमें फॅमिली के साथ दावत में बुलाये है.. कह रहे थे अगर मेरी किसी सहेली को बुलाना चाहती हूँ तो बुला सकती हूँ। तू चलेगी क्या... अंकल से तेरा परिचय भी हो जाएगी..." स्नेहा बोली।

सरोज को तो मानो उसकी इच्छा पूरी है रही है... वह हाँ कहते कहते रुकी... और बोली.. "नहीं यार.. कहीं तुम्हारा अंकल कुछ और न समझे..."

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