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गंगाराम और स्नेहा Ch. 05

Story Info
गंगाराम की बर्थडे पर चुदती स्नेहा को उसकी माँ और सहेली सरोज.
4.6k words
4.9
110
1
0

Part 5 of the 12 part series

Updated 11/29/2023
Created 06/03/2022
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अपने सभी पाठकों को मेरा नव वर्ष की शुभ कामनएं। मैं यही प्रार्थना करूंगी की आपका जीवन इस नव वर्ष पर मंगलमय हो।

आपकी

स्वीटसुद्धा 26

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Story information.

गंगाराम की बर्थडे पर चुदती स्नेहा को उसकी माँ और सहेली सरोज देख रहे थे..

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गंगाराम अपने सामने बौठे तीन तीन जवान लड़कियों को और एक 40 वर्ष की औरत को देखकर अपने आप मे फूले नहीं समा रहा था। उसके सामने स्नेहा जिसकी उम्र 21 वर्ष है बैठी थी। उसके दायें ओर उसकी बहन पूजा, जिसकी उम्र 18 वर्ष है बैठी थी तो स्नेहा के बायें ओर उसकी सहेली सरोज जिसकी उम्र कोई 22 वर्ष की है और शादी शुदा है बैठी है। आखिर में स्नेहा की माँ गौरी जिसकी उम्र 41 वर्ष बैठी है।

इधर की ओर, गंगाराम कि एक ओर सरोज का पति अशोक बैठा है तो दूसरी ओर स्नेहा का छोटा भाई गोपी जो 15 वर्ष का है बैठा। आखिर में स्नेहा का पिता लिंगम बैठा है। वह सब उस समय एक रिसोर्ट की रेस्टॉरेंट में बैठे है और आर्डर आने का वेट कर रहे है। उस दिन गंगाराम का जन्म दिन था और वह उन सबको आमंत्रित कर रिसोर्ट ले आया।

पहले तो स्नेहा की माँ ने कही थी की स्नेहा अपने पिता को वहां न लेआए, क्यों कि उस पीवट; गंगाराम का मुलाकात का दुरुपयोग न करें। गौरी की अनुमान है कि उसका पति बार बार गंगारम से पैसे ऐंठने न जाये । वैसे हि सरोज भी अपने पति को साथ लेने में कतरा रहि थी कि वह शककी मिजाज का है।

यही बात जब स्नेहा ने गंगाराम से कहि तो वह उसे समझाया की वह सबको संभाल लेगा तो सरोज का पति और स्नेहा के पिता भी उस समय वहां है।

खाना परोसा गया और सब खाने लगे। गंगाराम खाना खा रहा था लेकिन उसके नजरें बार बार उस गधरायी हुई औरत; स्नेहा की माँ की ओर जा रहे थे। 'वाह क्या मस्त फिगर है... साली को देखकर ही लंड तन रही है देखो तो उसके उभरे स्तन को... कितना घाटीली है.. वह इतने आराम से दबने वाली नहीं है। इन चूचियों को तो आटे की तरह गूंदना होगा... कैसी रहेगी वह उसके निचे...' गंगाराम सोच रहा था। वैसे वह स्नेहा कि सहेली सरोज और स्नेहा कि बहन पूजा को भी अपने आगोश में imagine करते उभर रहे अपने मस्ताने को शांत कर रहा था।

कुछ देर बाद वह सब अपने कॉटेज में थे। कॉटेज के कुछ दूरी पर स्विंमिंग पूल थी।

पानी देखते ही स्नेहा का भाई स्विमिंग की इच्छा व्यक्त किया।

"चुप कर गोपी तुझे स्विम्मिंग ही नहीं आती पानीमे क्या उतरेगा..." स्नेहा अपने भाई को डाँटि।

"अरे उसे क्यों डांट रहे हो; बच्चा है स्विमिंग करने दो न उसे..." गंगाराम समझाया।

"लेकिन अंकल उसे तैरना नहीं आता,,,"

कोई बात नहीं.. वहां लाइफ जैकेट रहती है फिर मैं हूँ न.. मैं सिखादूँगा...बोलो और कौन कौन स्विमिंग करना चाहते है...?"

"में भी स्विमिंग करना चाहती हूँ... लेकिन मुझे भी स्विम करना नहीं आता" स्नेहा की बहन पूजा बोली।

"अगर तुम्हे आपत्ति नहीं तो मैं सिखा दूंगा..." गंगाराम पूजा की जवानी को ताड़ता बोला ..."

पूजा अपनी मम्मी की ओर देखि। उसने आंखोंसे इशारा करी जाने के लिए।

"आप स्विम नहीं करेंगी...? गंगाराम स्नेहा की माँ गौरी की ओर देखता पुछा..."

"नहीं..." वैसे उसके मन कर रहा है तैरने के लिए।

"क्यों... आप को तो तैरना अति है ना...?"

"आति है लेकिन..." वह रुक गयी। इतने में सब बच्चे 'चलोना मम्मी..प्लीज' करने लगे। स्नेहा कि सहेली सरोज भी चलोना आंटी कही तो गौरी भी तैयार होगयी। सब खिल खिलाते स्विमिंग पूल की ओर चले।

मर्दों के के लिए कोई प्रॉब्लम नहि था लेकिन औरतों के लिए स्विम सूट जरूरत थी। जो उनमें किसिके पास भी नहीं थी। सब निराश हो गये। स्विमिंग पूल के पास रहने वाल एक बच्चा बोला "साब यहाँ स्विम सूट किराये पे मिलते है..."

सब ख़ुशी ख़ुशी वहां जाते हैऔर अपने साइज के स्विंम सूट लेलेते हैं।

स्नेहा, पूजा, और सरोज के लिए उनके साइज के स्विम सूट मिलगये लेकिन गौरी के लिए नहीं मिलि तो वह एक नंबर चोटि साइज की लेली। सब अपने अपने स्विम सूट पहने सबका ठीक था लेकिन गौरी का ही कुछ तंग होगया। जिस के कारण उसका भरा हुआ शरीर का हर अंग, हर कटाव दिख रहे थे। सब खिल खिलाते पानी में खुद पड़े। स्नेहा का भाई गोपी, उसके बहन पूजा ही बाहर रह गए।

"गोपी, तुम इधर मेरे पास आवो" गंगाराम बुलाया।

गोपी आते ही उसे पानी में उतारा और अपनी हथेलियों पर औंधा सुलाकर हाथ पैर चलाने को बोला। गोपी वैसे ही करने लग और अगले पंद्रह मिनिटों मे वह स्वयं ही हाथ पैर चलाने लगा। उसकी शरीर पर लाइफ जैकेट भी थी तो उसे कोई प्रॉब्लम नहीं हुआ। बाकी के दूसरे लोग भी खिल खिलाते, हँसते, एक दूसरे के ऊपर पानी छिड़कते मस्ति से तैरने लगे। गौरी पहले कुछ मिनिट तो पानी से बाहर निकलने को जिझकने लगी, लेकिन जल्दी ही उस माहौल में घुल मिल गयी। जब भी वह पानी से अती थि तो अपने जांघों के बीच अपना हथेली रख लेती थी। लेकिन जल्द ही वह ऐसा करना बंद करदी।

उसके स्विम सूट तंग होने का कारण उसकी जांघों के बीच उभार और दो उभरी फांके स्विम सूट के ऊपर से भी साफ दिखने लगे। उन फांकों को और गौरी की मटकते मोटी गांड को देख गंगाराम को अपने आप को संभलना मुश्किल हो रहा है, उसके बॉक्सर के अंदर उसका मर्दानगी फूल चुकी और उसक उभार दिखने लगा। गंगाराम के साथ ही सरोज का पति अशोक भी गौरी को भूखी नाजरों से देख कर अपने लंड को तन्नाए रखा। गौरी, बच्चो की तरह हँसते बच्चो के साथ खेल रही थी।

पूजा जो बहार ही थी उसे गंगाराम ने बुलाया। वह पानी में उतरने के लिए भी ढर रही थी।

"ढ़रो नहीं, इधर आओ, लाइफ जैकेट पहनो कह गंगाराम ने उसे लाइफ जैकेट पहनाया... पहनाते समय उसने पूजा के बदन को छूकर आनंद उठा रहा था। पूजा को पानी में उतारकर उसे भी अपने हथेलियों पर सुलाकर उसे तैरना सीखा रहा था। कुछ देर उसे दोनों हाथों पर औंधा लिटाकर सिखाने के बाद वह एक हाथ निकाल दिया और उस हाथ को पूजा को सँभालने के बहाने उसके नितम्बों को सहलाने लगा।

अपने नितम्बों पर अंकल के हाथ के टच से पूजा को कुछ गुद गुदी सा हुआ। यह पहली बार है कि किसी और का हाथ उसके नितंबों पर। एक हि बिस्तर पर सोने के बाद भी; आज तक उसकी बहन के हाथ भी उसके पुट्ठों पर नहीं पड़े। अब तो सीधा एक मर्द ही उसे टच कर रहा है... तो उसे गुद गुदी होना स्वभाविक ही था। पूजा को कुछ अनोखा आनंद भी आ अहा है। इतने में गंगाराम ने अपना हाथ पर पूजा को संभालते; दूसरे हाथ से उसके पीठ पर चला रहा था। पूजाके नाजुक बदन की स्पर्श से गंगाराम का लावड़ा अपने पूरे ताव में आगया।

लाइफ जैकेट पहने पूजा को अपने भाई के साथ प्रैक्टिस करने को कहकर वह स्नेहा के पास पहुंचा, जिधर, सरोज, स्नेहा, गौरी और सरोज पति एक दूसरे को पकड़ने का खेल खेकराहे है। गंगाराम भी उन लोगों में शामिल होगया। खेल खेलमें गंगाराम ने स्नेहा को अपना तन्नाया औजार पकड़ा दिया। स्नेहा भी मस्ती में थी तो उसने झट उस चढ़ को पकड कर सहलाने लगी। यह सब पानीके अंदर हो रहा था। किसी को अनुमान नहीं था। दुसरी ओर अशोक भी अपने पत्नी के पास पहंचा और गौरी से बात करते हुए सरोज को इधर उधर टच काने लगा। ऐसे ही मस्ती करते वह लोग शाम चार बजे तक पूलमे रहे। पूजा और गोपी कुछ हद तक तैरना सीख भी लिए। शाम साडे चार बजे सब रिसोर्ट से निकले और गंगाराम के घर पहुंचे। जब तक वह सब गंगाराम के घर पहुंचे साढ़े पांच बज गए।

और जन्म दिन के पार्टी के तैयारियां शुरू हुए।

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सबने मिलकर उस कमरे को जहाँ केक कटने वाली थी सजाने लगे। अब सरोज का पती और गौरी का पति भी कमरा सजाने में शामिल हुए। कोई कलर पेपर कटाई कर रहा है तो कोई उसे बांध रहे है। कोई गुब्बारे में गैस तो कोई उन्हें टांग रहा है... कोई यह लावो, वह लावो,यह दो ये वह दो चिल्ला रहे थे, कुल मिलाकर वहां हंसी मजाक और छेढ़ चाढ़ का माहौल था। सात बजे गंगाराम ने केक काटी, और सब मिलकर, हैप्पी बर्थ डे का गाना गाये और गंगाराम को बधाई देने लगे।

उसके बाद माहौल में हल्ला गुल्ला मच गया। सब एक दूसरे पर केक का क्रीम लगाने और उस से बचने की कोशिश शुरू हुआ। सब चिल्ला रहे थे और जोर जोर से हंस रहे थे। फिर आंख मिचोली शुरू हुआ। आँखों पर पट्टी बांध कर एक दूसरे को पकड़ने का और उसका नाम बोलने का गेम शुरू हुआ। इस खेल का लाभ सबसे ज्यादा सरोज का पति अशोक उठाया। आँखों पर पट्टी बांध कर वह किसी को पकड़ता था पर हमेश गलत नाम बोलता था और वह फिर से पट्टी बांधलेता था। इस बहाने उसने स्नेहा के साथ साथ उसकी बहने पूजा का और उसकी माँ गौरी पर हाथ चलाया। सरोज यह बात समझ चुकी थी लेकिन कुछ बोली नहीं।

इस दौरन हि वहां (snacks) स्नैक्स और ड्रिंक्स सर्वे करे गये। स्नैक्स के नाम पर वहां दो किस्म के चिप्स, चिकन लॉलीपॉप के साथ मटन 65 था; तो ड्रिंक्स के नाम पर व्हिस्की, वाइन, बियर और फांटा, माजा सर्व किये गए। सभी लोग खेल के साथ साथ ड्रिंक़्स और स्नैक्स का एन्जॉय करने लगे।

यह सब हंगामा शुरू होने से पहले गंगाराम ने सबको गिफ्ट्स दिया। सरोज के लिए सलवार सूट और उसके पती के लिए अच्छा सा शर्ट और पैंट का जोड़ा दिया है। गौरी के लिए भी एक अच्छीसी साड़ी और उसके पती के लिए एक जोड़ी कपडे। स्नेहा का बहन पूजा के लिए एक अच्छासा नाहंगी घाघरा चोली और एक कॉस्टली टाइटन वाच दिया। स्नेहा की भाई के लिए उसे भी एक जोड़ा कपडे के साथ उसे एक क्रिकेट bat और gloves भेंट किया। सब लोग इतना खुश थे की उन्हें गंगाराम के बारे में क्या बोले समझ मे नहीं आया। यह सब भेंट करने से पाहले सब को संबोधित करते कहा ...

"दोस्तों;" वह कहना शुरू किया "मुझे परिवार (family) बहुत पसंद है। basically मैं फॅमिली man हूँ। मेरे दो बेटे बहार की देशों में रहते है। मेरी पत्नी की देहान्त हो चुकी है।

यहाँ मैं अकेला रहता हूँ इसी लिए जब में स्नेहा को देखा तो एक अच्छी घर वाली लड़की के रूप में दिखी, इसीलिए मैं उनसे दोस्ती बढ़ायी है। आप सब स्नेहा के बंधु और मित्र हो; इस वजह से आप सब भी मेंरे बंधू और फ्रेंड्स बनगए। मुझे एक फॅमिली मिल गयी है। इसिलए मैं इस वर्ष मेरा जन्मदिन फॅमिली के साथ मानाने का निश्चय कर यह सब किया है। मुझे आशा है की यह बंधन और फ्रेंडशिप हमेशा चले" कह कर वह अपना बोलना समाप्त मिया।

उनकी बातें सुनकर सब ने हर्षोल्लास के साथ तालियां बजाये और बोले 'दोस्ताना ज़िंदाबाद'।

रात के गयारह के ऊपर तक उन लोगों का हंसी मजाक; खेल खुद, नोक झोंक चलता रहा। तब जाके सब खाने बैठे लेकिन स्नैक्स ही इतना खा चुके थे की लिसी को भी खाने में रूचि नहीं थी। खाने के नाम पर थोडासा ही खाये और सब सोने चले गए। स्नेहा और उसके भाई,बहनके लिये एक कमरा, उसके माता पिता के लिए एक कमरा और सारोज दंपत्ति के लिए एक कमरा दिया आया। खुद गंगाराम पहली मंज़िल कि अपने बेड रूम में था। सोने से पहले स्नेहा ने अपनी माँ से कही "माँ... अंकल को bed tea की आदत है; आप प्लीज उन्हें सवेरे चाय दे दीजिये" कही जिसे गौरी ने मान ली।

इधर स्नेहा के पिता और दूसरे कमरे में सरोज का पती खूब पीकर टुन्न थे तो उन्हें होश ही न रही। जबकि पूजा और गोपी थके थे तो जल्दी ही सो गए और खर्राटे भरने लगे।

इधर गौरी के ख्यालों में गंगाराम उसे गिफ्ट देते समय कही बातें जहन में घूम रही है। उसने कहा था ...

"बाप रे गौरीजी.. ओफ्फो आप इतना सुन्दर होंगे मैं सोचा नहीं था। आप तो तीन तीन बच्चोंके की माँ तो बिलकुल ही नहीं दिखते। आज आप को स्विम सूट में देख कर तो मेरा दिल कुछ सेकंडों के लिए थम गया"।

वही सरोज के कमरे में सरोज भी नहीं सो रही थी। स्विमिंग पूल में गंगाराम के टच, और यहाँ शामको किसी बहाने अपने बदन पर उनके हाथ फेरना उसे बार बार यद् आ रही है। उतना ही नहीं एक बार मौका देख कर गंगाराम ने उसके गाल भी चूमा था। 'उफ़ कितना गर्म है उनके सांसे' सरोज सोचने लगी। लगता है उनका दिल मुझ पर आयी है... शायद मौका देख कर यह कभी उन्हें भी... अंकल का बहुत बड़ा है... क्या में उसे संभल पावुंगी... उसका पति का तो छह इंची ही है.. और पतला भी... सरोज में मन में तरह तरह के आलोचनायें घूम रही है।

एक और कमरेमे स्नेहा अंकल का अपना बर्थडे गिफ्ट देने को आतुर थी। वह, उसके बहन पूजा और भाई गोपी सोजाये तो वह अंकल के यहाँ जा सकती है।

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स्नेहा ने टाइम देखि; बारह बजने में दस मिनिट कम थे। वह बगल में सोंये अपने बहन और भाई की ओर देखि। दोनों ही गरे नींद में है। वह उठी और इधर उधर देखती बिल्लीकी क़दमों से कमरे से बहार निकली और आजू बाजू देखि। हर ओर सन्नाटा था। हॉल में सिर्फ नाईट बल्ब की मद्दिम रौशनी थी। वह निःशब्द सीढियाँ चढ़ने लगी। वह ऊपर गंगाराम के कमरे में पहुंची। गंगाराम अभी सोया नहीं था। चित लेटकर कुछ सोच रहा था। दरवाजा बिदकने की आवाज सुनकर उसने सिर घुमाया और स्नेहा को दरवजा बंद करते देखा। वह उठ बैठा और मुस्कराहट के साथ स्नेहा को देख रहा था।

स्नेहा समीप आकर पलंग पर बैठी तो पुछा "पार्टी कैसी थी डियर...?"

"बहुत ही उम्दा अंकल; सब लोग बहुत खुश हैं..." बोली एक क्षण रुकी और फिर बोली "अंकल हैप्पी बर्थडे। यह कलीजिये पका गिफ्ट.." कही और अपने हाथ में थामे एक बडा सा लिफाफे को गंगाराम के हाथ में रखी।

"यह क्या है..." कवर हाथ में पकड़कर पुछा।

"खुद देखिये..." स्नेहा मुस्कुराई।

गंगाराम ने कवर खोला और अंदर से एक फाइल निकला और खोलकर देखा। अंदर के पेपर्स देख कर "यह....यह..." हकलाया और स्नेहा की ओर देखा।

"गिफ्ट पसंद आया अंकल...? वह मुस्कुराते पूछी।

"तुम..तुम.. समीर खान से मिली हो...?" गंगाराम स्नेहा से कह रहा था।

स्नेहा केवल मुस्क़ुरती उन्हें देख रहे थी।

गंगाराम स्नेह कि मासूम चेहरा देखा और जोरसे उसे अपने सेने में दबोचा "स्नेहा तुमने बहुत बड़ा त्याग किया... सच मनो अब तक तुम्हारे लिए मेरे मन में जो भावनाएं थी; वह सब अब तुम्हारे प्रति अथाह प्रेम में बदल गया। I Love you darling .. तुमने इस बूढ़े अंकल के लिए इतना बड़ा कदम उठाया..."

"अंकल अपने आप को कभी भी बुड्ढा मत कहिये... मैं आपसे बहुत प्रेम करती हूँ... वास्तवमें मैं अपने शारीरक सुख के खातिर आपसे मुलाकात बढाई.. लेकिन जैसे जैसे हमारी मिलन होते गयी और मेर प्रति आपका प्रेम, प्यार, अफेक्शन और अपनापन देख कर में आपसे प्रेम करने लगी; सच्चा प्रेम... ऐसे में आपको प्रॉफिट दिलानी वाली इस काम को मैं करने का निश्चय किया और समीर से मिली। मुझे ख़ुशी है की आपका काम मेरे से पूरा हुआ। समीर खान, मेरे से बहुत खुश और बोले आगेसे आपका कोई भी फाइल वह आँख बन्द करके दस्तखत करदेगा"।

"थैंक यू स्नेहा.." कहा और एक बार फिर उसे अपने आगोश में खींचा।

"थैंक्यू बहुत होगया अंकल, मुझे मेरा गिफ्ट चाहिए..."

"पूछो.... क्या चाहिए तुम्हे.. जो मांगोगे मिल जायेगा..."

"ममममम.. मुझे यह चाहिए" कही और गंगाराम की लुंगी और बनियान खीँच फेंकी और बोली "हाँ अब पूरा बर्थडे बॉय दिख रहे हो..." कहते वह खुद अपने कपडे उतार फेंकी और खुद बर्थडे बेबी बन गयी।

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गौरी को नींद नहीं आ रही थी। उस शाम गंगाराम द्वारा बोले गये बातें उनके जहन में घूम रहे थे। गंगाराम ने कहा था " गौरी जी आप तो बहुत सुन्दर और जवान लग रही है... आप तीन तीन तीन बच्चों की माँ हो यह बात कोई भी विश्वास नहीं करते .... वैसी है आपकी फिगर ... मुझे आपके पती से ईर्ष्या हो रही है कि वह आपका पति हैं " यह बातें उसके दिमाग में बार बार घूम रहे है। उसका पति तो उस से कभी भी इतना प्रेम से बात नही करा; सुंदरता के बारे में तो कभी भी नहीं। उसके बातें याद आते ही गौरी के शरीर में गुद गुदी सी होने लगी। इतने मे उसे अपनी बेटी नींद में बड बडाने की बात याद आयी। 'अंकल जरा धीरे पेलिए, आपका बहुत मोटा है' स्नेहा नींद में बड बडा रही थी।

यह बात याद आते ही उसकी गुद गुदी और बढ़ गयी। जांघों के बीच सन सनी सी होने लगी। उसका पती उसे चोद कर सालों गुजर गए। अब तो वह बंजर जमीन बन गयी... सोंचते, गौरी का नींद हराम हो गयी। तभी उसे 'खट' की आवाज सुनाई दी। वह आवाज इतनी धीमी थी की अगर वह रात की ख़ामोशी न होती तो उसे सुन पाना असंभव था। वह धीरे से उठी और बहार आकर देखि।

उसने अपनी बेटी स्नेहा को ख़ामोशी से इधर उधर देखते सीढियाँ चढ़ते पायी। वह समझ गयी की, स्नेहा क्यों ऊपर जा रहे है। अनजाने में ही उसके दिल में एक कुतूहल जाग उठी की देखे उसकी बेटी कैसे चुदवाती है उस मोटे लंड से.... वह चार, पांच मिनिट वेट करि और धीरे से ऊपर चढ़ने लगी।

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इधर सरोज को भी नींद गायब थी। स्विमिंग पूल में गगराम द्वारा उसे छूना और शाम में कहे गए बातें; किसी बहाने अपने शरीर पर उनके हाथ फेरना उसे बार बार याद आ रही है। उतना ही नहीं एक बार मौका देख कर गंगाराम ने उसके गाल भी चूमा था। उसके सारे शरीर में सन सनी सी होने लगी। उसके हाथ अपने आप ही जांघों के बीच पहुंचि। 'सरोज तुम अंकल का देखना चाहती थी न.. रात के बारह बजे मैं अंकल के पास जा रही हूँ... अगर देखना चाहती हो तो ऊपर आ जाओ" स्नेहा ने उससे कहा था। और उसने उसे बताई कि ऊपर के कमरे के दो बॉलकनियाँ है और दोनों बॉलकनी में खिड़की है वह किसी भी खिड़की के पास आ सकती है। वह ख़ामोशी से उठके बहार आयी तो....

उसने देखा की स्नेहा की माँ सीढियाँ चढ़ रही है। वह अपने आप को छिपते छिपाते गौरी को फॉलो करने लगी गौरी को एक खिड़की की ओर जाते देख वह दूसरी खिड़की तरफ मुड़ी।

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"आअह्ह्ह... अंकल..मममम.." स्नेहा ने एक मदभरी सिसकारी ली। स्नेहा की मदभरी आवाज सुनकर दोनों तरफ ठहरे दोनों औरतें अपने अपने खिड़की से अंदर झांके। अंदर स्नेहा अपने पीट के बल चित लेटी थी और उसके जाँघों के बीच गंगाराम अपने घुटनों पर बैठ कर उसकी जवानी का रसपान कर ते देखे। दोनों आदमजात नंगे थे। स्नेहा है तो दुबली पर उसकी चूत खूब उभार ले चुकि है और उस उभार पर गंगाराम की जीभ निचे से ऊपर तक चल रही थी।

"ममम..अंकल उफ़...और अंदर डालिये आपका जीभ.. कुरेदो मेरी खुजला रहि चूत को..आह..." कहते कमर उछाल रही थी।

"चाट तो रहाँ हूँ न डार्लिंग.. जरा इस शहद का स्वाद तो चखने दो.. मममम...आअह्ह्ह.. क्या स्वादिष्ट शहद...." गंगाराम स्नेहा कि रिसते बुर को लपालप चाट रहा था। जैसे जैसे वह स्नेहा को चाट रहा था; बाहर एक और खड़ी गौरी और दूसरी खिड़की के पास ठहरी सरोज को ऐसा लग रहा था जैसे गंगाराम उन्ही के चुतों को चाट रहा है।

कुछ देर चाटने के बाद "स्नेहा डिअर अब रहा नही जाता... अब जल्दी से अपना दे दो.. देखो यह कैसा अकड़ रहा है...." कहते गंगाराम स्नेहा के जाँघों के बीच से सर उठाया और सीधा हुआ। उसका तन्नाया लैंड रह रहकर तुनक रही है। उसे देखते ही बहार एक ओर कड़ी गौरी चकित रहा गयी। 'बापरे.. इतना बडा....' सोचते गौरी के हाथ अपने आप अपने छाती पर रखली। 'अंकल आपका बड़ा है' कहते अपने बेटी को बढ़ बढ़ाते सुनी थी लेकिन इतना बड़ा होगा वह नहीं सोची थी। दूसरी ओर सरोज ने 'ओह गॉड .. यह तो सचमे ही बड़ा है... यह तो लग भग दस इंच का होगा... सरोज सोच रही थी। इतने में अंदर से...

"चोदिये न अंकल; मैं मना कहाँ कर रही हूँ.. मैं तो चोदने को ही कही थी; आप ही मेरी शहद चखने की तमन्ना रखते थे। लो मेरी ओखली तैयार है कूटो अपनी मुस्सल से..." स्नेहा कही और गंगाराम की लवडे को मुट्ठी में बांध कर अपनी ओर खींची।

गंगाराम स्नेहा की जाँघों के बीच आया और अपने यार को मुट्ठी में पकड़ा। स्नेहा भी अपनी टांगें और पैलादि; जिस से उसकी बुर की फांके कुछ और खुल गयी। गंगाराम अपना लंड की सुपाड़ी को उसके खुले फांकों के बीच रगड़ा... और हलका सा दबाव दिया।

'हाय.... मेरी फूल जैसी बच्छी मरी...' बाहर खड़ी स्नेहा की माँ सोच रही थी...

लंड का हलब्बी सूपाड़ा एक ही झटके में अंदर चली गयी।

"आअह..." स्नेहा की मुहं से एक सीत्कार निकली। गंगाराम अपने कमर उठाया और एक ठोकर और दिया...

"mmmmmaaaaaa...." स्नेहा की गले से निकला... और गंगाराम की पूरा साडे नौ इंच स्नेहा कि तंग बुर में। अब वह धना धन अपना कमर ऊपर निचे करने लगा और उसका मुस्सल स्नेह के बुर के अंदर बाहर होने लगी। सिर्फ दो ही मिनिट में स्नेहा जोश में आयी "आआह आआह ज़ोर से और ज़ोर से करो सीईईई सीईईई आआह हाँ ऐसे ही अंदर तक झटके मारो आआह' कहते अपनी कूल्हे उछलने लगी।

स्नेहा गंगराम के नीचे दबी पड़ी अपनी चूत को अंकल के लंबे लंड से कुचलवाती हुई किलकारिया मार रही थी।                           

"आआह मेरी स्नेहा रानी आज तो तुम मूड में हो; ले ले और अंदर ले मेरी राँड आज तो काफी गीली हो रही है तेरी बुर" एक दक्का और देते कहा।                                          

"जब 12, 15 दिन बाद आआह सीईईई चोदोगे आआह तो ऐसे ही गीली चूत मिलेगी अंकल...हाय क्या लंड है आपका मैं स्वीट अंकल..."।             

बहार खड़े दोनों औरतों ने देखा अब गंगाराम ने स्नेहा की दोनों जांघो को विपरीत दिशा में फैला रखा था और अपने घुटनों पर बैठकर अपने मिसाइल को स्नेहा की रसीली और फुली हुई चूत में डालकर दनादन रॉकेट दाग रहा था।             

स्नेहा के मुख से निकलती सिसकारियां और उसके मस्ती से मूंदते आंखें और अध् खुले हुए होंठ दर्शा रहे थे कि वो इस समय कितने मज़े में है।

"आआह अंकल... रगड़ दो मेरी चूत की दीवारों को अपने मूसल से आआह हाय हाय सीईईई ऐसे ही गहरे गहरे धक्के मारो रआआआजा" स्नेहा के मुँह से निकलती ये किलकारियाँ कमरे के बाहर दोनों ओर की खिड़कीयों के पास खड़ी नवयौवना और प्रौढ़ा के जिस्म में भी तरंगों का संचार बढ़ा रही थी।             

वो अंदर खेले जा रहे खेल को देखकर अपने अपने आमों से खेल रहे है। वेह अपने पके आमोंको दबाने की कोशिश करती वो उतना ही ज़्यादा फ़ूलते जाते और उसके कड़क होते निप्पलों को वो जितना अपने अंगूठे और उंगली के बीच लेकर दबा रहे थे वेह और नोकिली और उतनी कड़क होती जा रही थी।             

अंदर सिस्कारियों और किलकरियों की आवाज़ लगातार बढ़ती जा रही थी। उसी के साथ स्नेहा की पतली चूत में गंगाराम के लंड का अंदर बाहर भी तेज़ होता जा रहा था। गंगाराम स्नेहा की दोंनो जांघो को पकड़कर अपने जवान को सरपट स्नेहा के मैदान में मार्चपास कराने लगा। गंगाराम के हर करारे दकके के साथ स्नेहा के छोटे छोटे उरोज़, हलके से हिल रहे थे जिनको देखकर गंगाराम और जोश में अगला धक्का और तेज़ गति से लगा रहा था।             

"आआह अंकल सीईईई आआह आअज फाड़ दोगे क्या उईईईई माँ जी आआह अंकल आराम से आआह"।

अंदर की सिस्कारियों ने बाहर के दोनों औरतों को भी आग लगा दी थी।

अंदर चलते कामुक समागम को देखते देखते बाहर खड़े दोनों के शरीर में गर्मी बढ़ने लगी। सरोज तो उस गर्मी को सहन न कर सकी और, उस गर्मी ने उसे बॉलकनी में ही नंगा होने पर मजबूर कर दिया था। उसने अपनी नाइटी निकाल दी और वह एकदम नंगी होगयी। अपने जिस्म को कपड़ो से आज़ाद करने के बाद उसे बड़ी सुखद अनुभूति हो रही थी बॉलकनी में चलती ठंडी हवा ने उसके जिस्म की गर्मी को और भड़का दिया था। उसकी चुचियों ने ठंडी हवा में और अकड़ना शुरू कर दिया। बरामदे में चलती ठंडी हवा में उसकी चुचियों में अकड़न शुरू हो गई थी।              

"उईईईई अंकल ...आआआज मार डाला हाय मम्मी" चूत पर करारा चोट पड़ते ही स्नेहा एक फुट ऊपर को सरकी।

इधर स्नेहा की माँ गौरी मे भी अपनी बेटी की चुदाई देखते देखते गर्मी बढ़ गयी। वह सरोज जैसा पूरा नग्न तो न हुई पर अपने ब्लाउज के सारे हुक्स खोल डाली। अंदर ब्रा नहीं थी। वह एक हाथ से स्तन को दबाती दूसरी को जांघों के बीच घुसेड़ का साड़ी के ऊपर से ही अपनी खूब चुदी चूत को जकड़ी।

"आआह हाय सीईईई उईईईई आआह" अंदर कमरे से आती ठप ठप की मधुर ध्वनि उस गरमा चुके औरतों के कानों में शहद घोल रही थी। और उनके आंखें लगातार चूत में अंदर जाकर गायब होते हुए लंड पर टिकी थी।

"ओह अंकल... चोदिये प्लीज... रगड़ो.. मेरी चूत को... साली निगोड़ी आजकल बहुत ओहदाक रही है.. आअह्ह्ह्हह। ..वैसे ही.. अंकल.. क्या दक्का मार रहे हो... और अंदर तक पेलो...." स्नेहा जोश में कमर उछालने लगी।

"स्नेहा डार्लिंग लगता है आज कल तुम बहुत चुड़क्कड़ हो गयी हो..." गंगाराम दकके पर दक्का देरहा था और एक ओर उसकी छोटी मम्मे को दबा रहा था।

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