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गंगाराम और स्नेहा Ch. 06

Story Info
गंगाराम और गौरी की चुदाई की मुलाखात का वादा.
3.5k words
4.56
128
1

Part 6 of the 12 part series

Updated 11/29/2023
Created 06/03/2022
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Story infn.

गंगाराम और गौरी की चुदाई की मुलाखात का वादा

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जब तक गंगाराम और स्नेहा की चुदाई समाप्त हुयी रात के ढाई बजे थे। कमरे के दोनों ओर खड़ी दोनों औरतें इतना गरमा चुके है कि, जब तक वह किसीसे चुदवाती नहीं उन्हें चैन नहीं आनेवाली थी। सरोज ने तो बदनमे तपती गर्मी के वजह से अपना नाईट गौन ही उखाड़ फेंकी और अपनी पानी छोड़ते चूत में ऊँगली करने लगी। जब की दुसरो ओर खड़ी गौरी ने अपना साड़ी तो नहीं खोली पर, ब्लाउज के पूरे हुक्स खोलकर अपनी बड़े बड़े उरोजों पर हाथ फेरते चुचुक को मसलने लगी। 'बापरे मेरी बेटी क्या चुड़क्कड़ निकली..' गौरी यह सोचते, सीढियाँ उतरने लगी।

एक ओर सरोज ने, अपनी सहेली और गंगाराम की चुदाई देखते देखते, अपनी बुर में पहले एक ऊँगली फिर दो... और बाद में तीन उंगलियां डाल कर ऊँगली करते एक बार झड़ भी चुकी थी, फिर भी उसकी तृष्णा कम नहीं हुयी। अपनी सहेली का रासलीला समाप्त होते ही वह अपनी गाउन पहनी और धीरे से इधर उधर देखते गौरी के पीछे पीछे ही सीढ़ियां उतरी। अपने कमरे मे जाते ही वह अपनी पति के ऊपर गिर पड़ी और उसके लंड को ऐंठने लगी। सरोज का पति अशोक अच्छे नोंद में था फिर भी उसका मस्ताना खड़ा हो गया था। उसके छह इंच लवडे को देख, सरोज में एकबार मुहं बिचकायी पर अपने गाउन उठाकर अशोक के ऊपर चढ़ी, और उसके डंडे को अपनी योनि में घुसेड़कर ऊपर निचे होने लगी। कोई छह, आठ मिनिट बाद उसका डंडा सरो की बुर में अपना रस छोड़ दिया। वह थक कर अशोक के ऊपर से उतरी और उसके बाजु में पड गयी।

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इधर अपने कमरे में आने के बाद गौरी ने भी अपने पति को उठाने लगी। वह इतना गरमा गयी की वह किसि हांल चुदवाना चाहती थी। गौरी का पति पुखट में आयी शराब खूब पीकर घोड़े बेच कर सो रहा था। जब वह नहीं उठा तो गौरी ने उसकी लूँगी उखाड फेकि और उसके मुरझाये औजार से खेलने लगी। उसे सहला रही थी, ऐंठ रही थी, तब भी उसमे कोई हरकत नहीं हुयी तो गौरी उसे अपने मुहं में भी लिया; लेकिन उसमे कोई हरकत ही नहीं हुयी। "हूँ..." कहकर गौरी अपनी साड़ी खींच डाली और खूब चुदी चूत में उंगली करते करते सो गयी।

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गौरी ने जब आंख खोली तो सुबह के छह बज चूका था। उसे अपनी बेटी गंगाराम को बेड टी (Bed tea) देने को कही बात याद आयी और वह उठी और किचन की ओर चली। उसने फ्रिज में से दूध का पैकेट निकली और दूध गर्म करने लगी। दूसरे बर्नर पर उसने चाय का पानी चढ़ाई। पांच मिनिट बाद वह चाय लेकर गंगाराम के कमरे में गयी। उसने जब हाथ में चाय की ट्रे लेकर गंगाराम के कमरे में प्रवेश करि तो सामने का नजारा देख कर उसके दिल धक् धक् करने लगा। लगता है गंगाराम ने रात की चुदाई के बाद वैसे ही नंगा सोगया और सिर्फ शरीर पर एक चादर ओढली है। वह चादर भी अब उस के शरीर से किसक गयी और गंगाराम का नंगापन गौरी के सामने थी।

गंगाराम कि औजार मॉर्निंग इरेक्टन से फुल कड़क हो कर छत की ओर देख रही है। वह इतना कड़क था की उसके नसे भी दिख रहे थे। आगे का चमड़ा फिसलकर उनका बैंगनी सुपाड़ा चमक रहा था। उसे देखते ही गौरी के मुहं के साथ साथ उसकी खूब चुदी बुर में भी पानी आगया। जो चीज रात में अपनी बेटी के अंदर होते देखि थी वह अब उसके आँखों के सामने सिर्फ एक फुट की दूरी पर। वह धड़कते दिल से आगे बढ़ी और बिस्तर के पास जाकर, झुकी और उसे निहारने लगी। जैसे जैसे वह उसे निहार रही थी वैसे वैसे उसकी योनि में खुजली बढ़ती गयी। वह कई वर्षोंसे चुदी नहींथी तो कल रात और अब उस मुश्टन्ड को देख मन में जिग्नासा जगी की जो उसके सामने टुनक रही है वह अपने उसमे घुसी तो कैसा रहेगी।

उसने ट्रे को बयां हाथ से पकड़ी और दायां हाथ से गंगाराम की मर्दानगी को हलके से छूली। वह ढर भी रहीथी की कहीं गंगाराम उठ न जाये। फिर भी हिम्मत करके उसे छूली। "आआआहहहहह..." उसके मुहं से एक मीठी सीत्कार निकली। एक मिनिट तक उसे वैसे ही देखते रहने के बाद कहीं होश आयी। वह झट अपने आपको संभाली और गंगाराम के ऊपर चादर खींच, उसके कंधे को हिलाती बुलाई... "भाई साब.. उठिये.. आपकी चाय ठंडी हो रही है" तीसरी बार जब उसे जोर से हिलायी तो गंगाराम उठा और उसे देख कर कहा "गौरी जी आप...?"

"भाई साब आप के लिए बेड टी लायी हूँ..."

"अरे अपने क्यों तहलीफ किया..."

"तकलीफ की कोई बात नहीं... आपको चाय देने के लिए स्नेहा ने कही थी... तो... चाय पीलीजिए ठंडी हो रही है..."

गंगाराम चाय मग लेकर सिप करने लगा। गौरी वहीँ ठहर कर उसे ही देख रहे थी। उसके आँखों के सामने रात का दृश्य घूम रहा था। वह बार बार गंगारम की जांघों में देख रही थी। चाय पिते ही वह मग लेकर निचे आयी और स्नान करने चाली गयी। उसके पति या उनके बच्चे अभी नहीं उठे। 'लगता है सरोज और उसका पति भी नहीं उठे' सोचते वह नहाने चली गयी और नहाकर आगयी। उस समय सवेरे के सात ही बजे थे। वह अपने लिए चाय बनाकर सोफे पर बैठकर पिने लगी।

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सवेरे नौ बजे का समय था। गौरी किचन में नाश्ता बना रह थी। पहले उसने अपन बेटी से पूछी थी की नाश्ता क्या बनाये तो स्नेह ने उनींदी आवाज में कहीं की वह आलू के पराठे बनाये; तो वह आलू के पराठे बना ने लगी। वह बना ही रही थी की गंगारम किचेन में आगया और पुछा "गौरीजी.. क्या कर रहे है आप...?"

"जी पराठे बना रही हूँ.... स्नेहा ने कही थी की आपको बहुत पसंद है..."

गंगारम जो कल से उसे स्विम सूट में देखा है; और उसके भग का उभार और फांकों को देख कर अपने आप खो बैठा था और मौके की तलाश में था.. आगे आकर गौरी के पीछे उसे लगकर खड़ा हो गया।

गंगारम जब उसे से लग कर खड़ा हो गया तो गौरी का दिल धड़क ने लगी, और गभराहट भी। वह कुछ बोली नहीं धड़कते दिलसे खड़ी रही।

गंगारम उसके भुजाओं पर अपने हाथ रख कर उसे हलके से दबाते "मुझे पराठे तो पसंद तो है पर यह वाला नहीं..." बोला।

गंगाराम इतना करीब रहने से उसकी गभराहट और बढ़ गयी। उसी गभराहट में वह बोली "तो...."

"मुहे स्पेशल पराठा चाहिए..." कह उसने गौरी के कन्धों पर अपने दबाव बढ़ाया।

तब तक उसने महसूस किया की पीछे उसके नितम्बोँ की दरार में कच चुभ रही ...उसे समझ मे आयी की वह चुभने वाली क्या है...अनजाने में ही उसने अपने नितम्बों को पीछे धकेली और पूछी "स्पेसल पराठा.. वह क्या है?"

"वही जो आपके जांघों के बीच मे है.." गंगाराम आगे झुक कर उसके कानो में फुस फुसाया और अपने दोनों हाथों में गौरीके स्तन पकड कर दबा दिया।

"सससससस....ससस... भाई साब आप यह क्या कर रहे हैं.. छोड़िये मुझे..." वह उसके पकड़ से छुड़ाने की कोशिश करती बोली।

लेकिन गंगाराम की बलिष्ट पकड़ से वह अपने आपको छुड़ा न पायी। भाई साब छोड़िये मुझे... वह फिर से बोल पड़ी।

"गारी जी कसम आपकी फिगर की... कल जबसे आपको मैं देखा है.. मेरा दिल खोगया है.... कसम आपकी...." गंगाराम और जोर से उसके सख्त स्तनों को टीपता बोला।

"भाई साब यह गलत है..." वह बोलने को बोली लेकिन उस सख्त भुजाओं के पकड़ से निजात नहीं चाहती थी।

गंगाराम उसे ताबड़ तोड़ चूमता रहा उसके चूचियों को दबाता रहा और तो और अपना यार को उसके गांड के दरार में भी चुभाने लगा। गौरी एक ओर उसके गर्माहट से बेकाबू हो रही थी... फिर भी बोली "छोड़िये मुझे..अरे बच्चे उठ जाएँगे..." अनजाने में ही उसने अपनी इच्छा जाहिर की। सच मानो तो जब से वह अपनी बेटी की बड़बड़ाहट सुनी थी, तबसे ही उसके मन चटपटा रहा था...कल रात और आज सवेरे जो कुछ उसने देखा उसकी धधकते आग में घी डालने जैसा हो गया।

"पहले वादा करोकी जब बच्चे या और कोई नहीं है तो आप मुझे अपनी पराठा खिलाओगे..."

"ओफ़्फ़्फ़ो... पहले छोडिये.. अरे कोई आजायेंगे,..." वह चटपटाते बोली।

"पहले वादा करो... तभी छोडूंगा..." गंगाराम कहा और अब उसके साड़ी के फ्रिल्स (Frills) में हाथ डालने लगा....

"अच्छा.. देखूँगी...अब छोड़िये..." वह फिर से अपने कूल्हों को पीछे धकेलते बोली।

"देखूंगी नहीं.. खिलावूँगी.. कहो. तभी तो आप को छोड़ता हूँ..." वह अभी भी गौरी को आप कहकर ही सम्बोदित कर रहा था।

"अच्छी बात है खिलादूंगी..." वह हथियार डालते हुए बोली।

"क्या खिलाओगे....?"

"वही.. जो आपने पुछा है..."

"क्या.. क्या पुछा है मैंने ...?"

"स्पेशल पराठा.. और क्या...?

"किसका...?"

अब तो गौरी एक नवयवना की तरह शरमाते कही... "मेरी..." उसके गाल लाल हो गए। उसके सारे शरीर में गरम खून बहनेके साथ साथ हजारों चींटिया रेंगने जैसा लगने लगा।

"कब...? गंगाराम फिर से सवाल किया।

"जल्दी ही जब मौका मिले तब ..." अब वह खुद बेचैन थी गंगाराम की बड़ा लंड अपने मे लेने के लिए। बिचारि सालों से जो चूदी नहीं थी।

"तब तक के लिए..." कहते गंगाराम ने अपनी गाल को उसके सामने ले आया और उसकी उरोजों को जोर से टीपा। गौरी ने शर्म से लाल होती झट अपने होंठ गंगाराम की गालों पर रखी और एक चुम्मा लेकर पीछे हटी।

"नही... ऐसे नही है... एक जोर का चुम्मा दो" कहा और गौरी को अपनी ओर घुमाया, अपने होंठ आगे करा।

"अरे भाई साब, बच्चे उठ जायेंगे ..." वह लजाते बोली।

"इतनी जल्दी कोई उठने वाला नहीं... सब घोड़े बेचके सो रहें हैं..."

पहले से ही शर्म से मरी जा रही गौरी और लाल होगई और ऑंखें बंद करके उसके होंठों पर अपने होंठ रखकर जोर का चुम्मा लेकर जीभ को गंगाराम की मुहं में डालदी।

गंगाराम उसकी जीभ को चूसते उसे जोर से दबोचा। इतना जोरसे की उसके घाटीले चूचियां गंगाराम सीने में रगड़ लेने लगी। गौरी ने महसूस किया की उसके टांगों के बीच मे गंगारम की मर्दानगी ठोकर मार रही है। वह मुश्किल से अपने आप को छुडाली और वहां से भागी। गौरी के थिरकते नितम्बों को देखते वह अपने यार को सहलाने लगा।

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गंगाराम का जन्मदिन के फंक्शन के बाद पंद्रह दिन गुजर गए। उस दिन रविवार था। दोनों सहेलियां, स्नेहा और सरोज का मुलाकात एक बार फिर हुयी। दोनों ही सरोज के घर में मिल रहे है। सरोज; स्नेहा को गले मिली अंदर लेगई और चाय पिलाई। दोनों सहेलियों में कुछ देर इधर उधर की बाते होने का बाद, स्नेहा पूछी "अंकल ने क्या गिफ्ट दिए थे तुझे...?"

"ठहर बताती हूँ..." कह सरोज अंदर गयी और उसे दिए गए सलवार सूट, और उसके पति के लिए दिए गए pant and shirt बताई। फिर वह बोली अंकल ने बहुत कॉस्टली गिफ्ट्स दिए है सबको; मैने मालूम किया जो सूट उन्होंने दिए हैं उसका दाम 2500 के ऊपर ही है..."

"हाँ.." स्नेहा बोली अंकल ने सबके लिए महंगे दाम वाले गिफ्ट्स दिए हैं। फिर वह दोनों कुछ बाते करने का बाद स्नेहा पूछी... 'सरोज.. तू देखि है ना अंकल का.. कैसा लगा तुम्हे ..."

"संच में यार जब तुम बोल रही थी तो मैंने विश्वस ही नहीं किया लेकिन उस रात देखने का बाद मुझे मानना पड़ा की तुम ने सही कहा है.. बापरे.. कितना मोटा और लम्बा है उनका..." एक क्षण रुकी और फिर बोली "वैसे साली.. स्नेहा तू भी कुछ कम नहीं है... ऐसे गांड उछाल उछाल के चुद रही थी तू"।

"हाँ यार अंकल को दखते ही मैं अपने आप को भूल जाती हूँ..." स्नेहा बोली।

"और चुदाई भी क्या कर रहे थे.. बापरे बाप.. देखकर तो मैं इतना गरमा गयी थी, मैंने तो अपना नाईट गाउन ही निकल फेंकी..."

"क्या सच में..?." स्नेहा आश्चर्य चकित होकर पूछी।

"हाँ यार... तुम लोगों कि चुदाई देखते मैं पूरी तरह नंगी होगयी और एक हाथ से मेरी मस्तियों को दबाते दुसरी मेरी मुनिया को सहलाते सहलाते दो बार झड़ी।"

"हमारी चुदाई देख कर तुझे क्या लगा...?"

"लगना कया.. बस सोच रही थी की उस मुस्सल से कब अपने ओखली में लूंगी.. वैसे स्नेहा तूने अंकल से ऐसा क्यों कहा की मैं वैसी लड़की नहीं हूँ..वगैरा वगैरा..क्या मेरा तुम्हारी अंकल से चुदवाना तुझे पसंद नहीं...?"

"मैंने ऐसा कब कहा...?"

"फिर तुम अंकल से ऐसा क्यों कहीं की सरोज वैसी लड़की नहीं है..वह नहीं मानेगी... "

"अरे पगली.. मैंने तेरा मान रखने के लिए ही ऐसा कही है.. अगर मैं उससे कहूं की तैयार होसकती है तो तू उसकी नजरों में चीप (cheap) हो जायेगी, इसी लिए....अब देख अंकल को तुझे चोदने के लिए कितना तड़पेंगे... तू भी थोडासा नखरा करना...ठीक"

"हँ यार समझ गयी.. Thank you, वैसे तुम कब करा रही हो अंकल से मेरी चुदाई..."

"डोंट वर्री डियर जल्दी ही.." स्नेहा सरोज के गाल को पिंच करते बोली।

"वैसे यार स्नेहा.. तुम मेरी एक सहायता करनी है..." सरोज बोली।

"अरी बोलना क्या हेल्प चाहिए.."

प्रॉमिस कर की तुम यह हेल्प करेगी और मुझ पर नाराज नहीं होगी..."

"चल किया प्रॉमिस..."

"देख स्नेहा.. प्रॉमिस से फिर नजाना..."

"क्या सरोज; तू भी,,,, तुझे मुझ पर विस्वास नहीं..."

"ऐसी बात नहीं हैं..:

"तो बोलना क्या हेल्प चाहिए...? कुछ पैसे चाहिए क्या...?"

"नो.. नॉट मनी..." (Money)

"तो फिर..."

"यार बुरा मत मानना .. अशोक तुझ पर फ़िदा है... बस एकबार उसकी ख्वाईश पूरा करदो ..."

"Kyyaaaaaaa...." स्नेहा चिल्लायी। "सरोज तुम्हे मालूम भी है की तम क्या पूछ रही हो...?" बोली।

"हाँ...यार.. उस दिन अशोक ने तुझे स्विम सूट में देखलिया है तब से वह पागल होगया है। हमेशा 'स्नेहा..स्नेहा..' का नाम जप ने लगा है.. यहाँ तक की रात में मुझे लेते समय भी वह तेरा नाम से झड़ने लगा है ..." सरोज बोल रही थी और स्नेहा उसे विस्फारित नेत्रों से देख रही थी।

"प्लीज स्नेहा.. मेरी अच्छी सहेली.. मेरे खातिर एक बार... मानले..."

"सरोज यह तुम क्या बोल रहि हो... ऐसे कैसे हो सकता है...?"

"स्नेहा क्या मतलब है तुम्हारा; मैं समझि नहीं...?"

"अरे.. वह तुहारा पति है.. मेरा सहेली का पति... तू चाहती है कि मैं मेरी सहेली को धोका दूँ.."

"इसमें धोके की बात कहाँ से आगयी.. मैं खुद ही तो पूछ रहि हूँ... धोके की बात तब अति है.. जब तू मेरे पीछे मेरे पति से सम्बन्ध बनाये तब; यहाँ तो मैं खुद ही बोल रहि हू.."

"लेकिन.. लेकिन..." स्नेहा रुक गयी...

सरोज उसे ही देख रही थी...

"लेकिन सरो.. उन्हें मैं अशोक भैया बुलाती हूँ..."

"वह तेरा कौनसा सगा भाई है...और तुझे तो मालूम हि है की आज कल सगे भाई बहन ही ऐसे सम्बन्ध बना रहे है..."

स्नेहा कुछ बोलती नहीं है।

"स्नेहा, तुम्हे कहीं गंगाराम को धोका देने की बात तो सता नहीं रही..." सरोज पूछी।

"नहीं.. वह कौनसा मेरे से ब्याहा पति है..."

"तो क्या सोच रही है...?" सरो बोली और कुछ क्षण बाद फिर बोली.. "अगर तुम मान गयी तो मुझे कुछ फ्रीडम मिलेगी...?"

स्नेहा ने अपनों सहेली की ओर सवालीया नजरिया से देखि।

"हाँ.. मुझे कुछ स्वतंत्रता मिलेगी... नहीं तो हर बातपर पाबन्दी.. कही जावूं तो पूछके जाया करो... क्यों जारहि हो..? जाना जरूरी है क्या..." सैकड़ों सवाल..मैं अपनी मर्जी से कहीं जा नहीं सकती, खरीद नहीं सकती.. छी ..छी.. हर बात पर पाबन्दी.. अगर तुम मान गयी तो; उस पर मेरा भी पकड़ होगा..अब मैं उसे अपने कण्ट्रोल में रख सकती हूँ.. दबा सकती हूँ..."

"सरो...क्या तुम पर इतने पाबंदियां है... कभी बोली नहीं..."

"क्या बोलूं यार...यह तो रोज रोज का किस्सा है...उसे तो बस उसका घरका काम करने के लये नौकरानी चाहिए.. रात में चोदने के लिए चूत चाहिए.. बस.. मैं उसी तक सिमित हूँ..."कहते सरोज के आँखों में आंसू आगये।

"सरो.. अगर यह बात है तो; मैं तुम्हारी बात मानती हूँ... तुम्हारे लिए.. सिर्फ तुम्हारे लिए.. तुम्हारे पति के साथ बिस्तर गर्म करूंगी..." स्नेहा ने भावुक होकर कही।

"थैंक्यू स्नेहा।। थैंक्यू वैरी मच... तुम जो कहो वह मैं करूंगी...प्रॉमिस.."

"ठीक है.. फिर कब..." पूछी स्नेहा।

"मैं तुम्हें बाता दूँगी..." सरोज बोली और दोनों सहेलियाँ एक बार फिर एक दूसरे को गले लगाकर अलग हुये। स्नेहा अपने घर के लिए निकल पड़ी।

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सवेरे के दस बज चुके हैं। गौरी किचेन अपने लिए चाय बना रहिथी। उसी समय उसका मोबाइल बजा; उसने देखि की वाह काल गंगाराम की है तो उसके होंठो पर हलकि सी मुस्कान आयी है। गंगाराम के घर में जब से उसने गौरी के मुम्मे दबाते चूमा है; और साड़ी के ऊपर से ही उसकी उभार को जकड़ा है, गौरी की चुदाने की इच्छा दुगनी होगयी है। वहां से आने से पहले गंगाराम ने गौरी के मोबाइल नंबर लिया था। एक हप्ते से वह हर रोज इस समय यानि की दस, साढे दस के बीच फ़ोन पर बातें करने लगा।

गौरी को पहले एक दो दिन तो चिढ चिढ हुयी, लेकिन तीसरे चौथे दिन से उसे बात करने में रूचि होने लगी। अब वह उसका फ़ोन की इंतजार करने लगी। पहले एक दो दिन तो उसने आठ बजे फ़ोन करने लगा।

"भाईसाब इतना सवेरे फ़ोन मत कीजिये... इस समय सब बच्चे घर में रहते हैं; आपका फ़ोन कोई और उठा सकते हैं..." वह बोली।

गंगाराम के लिए यह पॉजिटिव पॉइन्ट थी, तो उसने पुछा... "तो गौरी जी कब फ़ोन करूँ.." पूछा।

"दस के बाद कभी भी...." कही उसके दिल में लड्डू फूट रहे थे।

आपको मेरा फ़ोन आना पसंद हैं न...?"

"हम्म..."

"अरे गौरीजी मुहं से बोलिये.. क्या आपको मेरा फ़ोन आना पसंद है...?"

"हाँ.. सच मानों तो मैं आपके फ़ोन का इंतजार करती हूँ.." और फिर से बोली "भाई साब, आप मुझे गौरीजी मत कहिये... मुझे अजीब सा लगता है... आप मेरे से बहुत बड़े है...प्लीज..."

"तो कैसे बुलावूं ...?

"सिर्फ गौरी कहिये बस..."

"ठीक है गौरी मान गया तुम्हारी बात... प्छ प्छ प्छ एक के पीछे एक तीन किस करने की आवाज आये।

"क्या.. सचमे..."

"हूँम..."

"थैंक यू डार्लिंग..."

डार्लिंग का शब्द सुनते ही गौरी के जांघों की गहरायी में चुदाई के कीडे रेंगने लगे।

जब से वह फ़ोन करने लगा और फ़ोन उठाते ही पहला उसके कान में ' प्छ प्छ प्छ..पपच' के आवाजें आने लगे। उस चुम्बन की शब्द सुनते ही वह और गर्म होने लगती। आज भी वही हुआ। फ़ोन उठाते ही उसकी कानों में चूमने की आवाजें आने लगी।

"अरे..अरे.. रुको जरा .. इतना भि क्या चूमना .." वह खिल खिलाते कही।

"क्या करूँ डार्लिंग... अब मेरे से सहा नहीं जाता। बोलो कब होगा हमारी मिलन और कब खिला रहीहो अपने पराठा।

"मौका नहीं मिल रहा है... मै क्या करूं... आपको पराठा खिलने के साथ, मुझे भी आपकी मूली को चखना है... मै भी तड़प रही हूँ...आपकी मूली के लिए..." बोलने को बोली लेकिन बाद में सोचने लगी की वह ऐसे कैसे बोलदी है।

वास्तव मे गौरी में भी अब सहना मुश्किल हो रहा है। इतने दिन, दिन क्या सालों गुजर गए उसे चुदाई करके .. 'साला हरामी पीकर दिन भर सोये पड़ा रहता है..' वह अपनी पति के बारे में सोची... लेकिन जब से वह अपनी बेटी की नींद में 'अंकल आपका बहुत बड़ा है.. और मोटा भी जरा धीरे से पेलिए..' कहकर बड़ बढ़ाते सुनी है; तबसे ही उसके चूत में खुजली होने लगी। और जब वह गंगाराम की जन्मदिन पर उसकी बेटी कि गंगाराम की हलब्बी लंड से चुदवाती; और दूसरे दिन मॉर्निंग गंगाराम की मूली को पूरी नग्नता में देखि है ... उसकी चूत की खुजलि बढ़ ही रही थी। अभी भी वह गंगाराम से बातें कर रही थी और साथ मे अपनी साड़ी उठके उसमे ऊँगली करने लगी।

"डार्लिंग मैं कुछ जुगाड़ करता हूँ..." वह उधर से बोला।

"क्यों....?"

"अरे क्यों क्या... तम्हारी पराठा जो खानि है मुझे और तुम्हे मेरी मूली को चखाना जो है.. ठीक है अब रखता हूँ जल्दी ही तुम्हे मेरे यहाँ आने कि जुगाड़ करता हूँ...तब तक के लिए..."उम्मम्मममआ" एक लाम्बा किस किया और फ़ोन काट दिया।

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रात के साढ़े दस बजे हैं। स्नेहा अपनी नौकरी से घर आयी। तब तक स्नेहा का भाई और बहन सोचुके हैं। माँ गौरी उसकी इंतजार में जागी है और खाना भी नहीं खायी। दोनों माँ बेटी खाना खाने लगे। "माँ, तम मेरे लये वेट मत करो..तुम खाना खालो ..." स्नेहा निवाला मुहं में रखते माँ को देख कर कही।

"स्नेहा बेटी मझे अकेले में खाना अच्छा नहीं लगता... वैसे भी मैं तुम्हारे लिये वेट कर सकती हूँ.. तुम मेरी चिंता मत करो..." कुछ देर की खमोशि के बाद ....

"वैसे माँ तुमने गंगाराम अंकल के यहाँ कौनसा पराठा बनायीं थी...?"

"आलू पराठे क्यों क्या हुआ...?" गौरी बेटी से पूछी।

"कुछ नहीं माँ... अंकल कह रहे थे की तुमने पराठे बहुत ही जायकेदार और सॉफ्ट बनायीं है...। वह तो तुम्हारे पराठे का तारीफ करते थकते नहीं... वैसे वह कह रहे थे की परसो उनके यहाँ कुछ दोस्त आने वाले हैं.. और वह चाहते हैं कि परसों भी तुम वैसे ही पराठे बनाओ... अंकल मुझसे कह रहे हे की मैं तुम्हे वहां भेजूं.. तुम जाओगी क्या..?" स्नेहा पूछी।

यह बात सुनते ही गौरी की जांघों में बीच दरार में कुछ नमी सी आगयी। उसके छातिया कुछ वजनी होगये है... 'तो यह जुगाड़ किये हैं उन्होंने..' वह सोची। वह अपने चूत को दबाने की इच्छा को दबाते वह बोली

"बेटी.. उस दिन भाईसाब क्या कह रहे थे... वह कह रहे थे की हमारे में उन्हें एक परिवार (Famly) मिल गई.. तुम देखि हो की उन्होंने हमारे लिए कितने कॉस्टली गिफ्ट्स दिए हैं... और तो और वह तुम्हारे बहुत ख्याल रखते है.." गौरी उस दिन स्नेहा की चुदाई को याद करते बोली..." ऐसे में मैं न जावूं तो.. वह कुछ समझ बैठे तो..."

ठीक है माँ.. परसों तुम 11 या 11.30 तक जाओ... पूजा और गोपि तो कालेज और स्कूल जाते है... बाबा तो बस पङे पडे सोए रहते हैं.. तुम चली जाओ..." स्नेहा बोली।

दोस्तों; एपिसोड जरा लम्बा होगया... इसीसलिए मैंने इस एपिसोड को दो भागों में बनायीं है। पाठकगण कृपया मुझे क्षमा कीजिये।

तो कैसी रही गंगाराम और गौरी की चुदाई का मुलाखात मेरा उम्मीद है की आपको पसंद आया होगा। आपकी राय जो भी हो कमेंट करके बताना न भूले।

आपकी चहेती

स्वीटसुधा 26

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