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पूजा की कहानी पूजा की जुबानी Ch. 04

Story Info
पूजा कैसे अपनी कुंवारापन बाजु घर वाले अंकल को समर्पित करती...
4.2k words
4.4
78
1
0

Part 4 of the 11 part series

Updated 03/13/2024
Created 11/26/2022
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पूजा की कहानी पूजा की जुबानी -4               (मैं और बाजु घर वाले अंकल)                                                                                                 

पूजा मस्तानी

Story infn.

पूजा कैसे अपनी कुंवारापन बाजु घर वाले अंकल को समर्पित करती है

-x-x-x-x-x-x-x-x-

दोस्तों मैं हूँ पूजा, जो दास्ताँ मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ वह तब घटी थी जब मैं अट्ठारह वर्ष की थी और इंटर फर्स्ट ईयर की छात्रा थी। मार्च का महीना था। मेरे वार्षिक परीक्षा के समय सारिणी (time table) आ चुकी है। और मैं अपनी तैयारी करने लगी। इसी समय हमारे एक नजदीकी रिस्तेदार की बेटी की शादी तय हो गयी है और वह लोग हम सब को आने का निमन्त्रण भेजे है। वह इंदौर में रहते है। मम्मी पापा ने वहां चलने की तैयारी कर रहे है। रेल गाड़ी में रिजर्वेशन भी हो गया है।

ठीक उन्ही दिनों मेरी एक्जाम्स की शेड्यूल आया है। सब असमंजस (confusion) में थे की क्या करें। शादी में चले या फिर कैंसिल करें।

"पापा आप लोग चले जाइये.. में अकेली रह लूंगी, अब मैं बच्ची नहीं रही" मैं पापा मम्मी से बोली।

वह लोग असमंजस में थे मुझे अकेले छोड़ के जानेके लिए। उस दोपहर को हमारे घर के बाजु घर वाली आंटी मम्मी से बात करने आयी है। वाह कभी कभी माँ से गप्पे मारने या माँ को शॉपिंग करने लेजाने आया करती है। हम दो घरों के बीच एक अच्छा सम्बन्ध है। उन्होंने माँ को परेशान देख कर समस्या पूछी तो माँ ने उसे शादी और मेरे परीक्षाएं के बारे में बोली।

"अरे भाभीजी..." वह बोली; माँ और उस आंटी एक दूसरे को भाभीजी कहकर ही बुलातें है। "आखिर हम आजू बाजू घर वाले किस काम लिए है? आप बेफिक्र होकर जाईये हम है न बच्ची (बच्ची यानि मैं) की देखभाल के लिए। उस रात मम्मी ने पापा से यह बात कही तो बहुत डिसकशंस के बाद मान गए की मुझे आंटी की देख रेख में छोड़ कर वह लोग शादी अटेंड करेंगे।

तब तक मेरी परीक्षाएं शुरू हुयी। अब सिर्फ दो परीक्षायें रह गयी। और मम्मी पपा और घर के दुसरे सदस्स्य उस रात गाड़ी पे चढ़े। उन्हें गाडी में बिठाकर मैं और आंटी घर वापिस आये। जब हम वापस आये तो रात के 8.30 हो रहा है।

"पूजा बेटी तुम खाना खालो। मैं और अंकल नौ साढ़े नौ बजे तक आ जाएंगे। आज हम यही सो जाते है" आंटी बोली तो मैं "ठीक है आंटी" कहकर घर में चली गयी और वह अपनी घर। जैसे की उन्होंने कहा ठीक 9.30 बजे तक वह लोग (आंटी और उनके पति) आ गये। आब सिर्फ कल का एग्जाम बच गया है तो में पढ़ने बैठ गयी और यह लोग हमारे घर के स्पेयर कमरे में सोने चले गए। मैं कोई 11 बजे तक पढ़ाई की और सोने की तैयारी कर टॉयलेट जाने के लिए बाथरूम की तरफ़ बढ़ी। हमारे यहाँ मम्मी पापा के कमरे मे अटैच बाथ है। जिसे सिर्फ माँ और पिताजी ही यूज़ करते हैं।

मैं कॉमन बाथरूम में पिशाब करि और वापिस लौट रही थी तो देखि की आंटी के कमरे में लाइट जल रही थी। 'शायद नयी जगह होने की वजह से उन्हें नींद नहीं आयी होगी' ये समझ कर आगे चली तो मुझे कुछ फूस फुसाते आवाजें सुनी आयी।

मैं चकित होकर उधर कदम बढ़ाई तो मुझे "अरे.. यह क्या कर रहे हो.. हम किसी और के घर में हैं.. छोड़ो.." आंटी के आवाजे सुनी आयी।

आंटी यह क्या बोल रही है समझ मे नहीं आया, लेकिन उतने में ही मुझे अंकल के आवाजे सुनाई दी। "डार्लिंग देखो यह कैसा खड़ा है" थोड़ा इसका ख्याल रखो"

"अरे नहीं.... यह हमरा घर नहीं है.. पूजा अभी पढ़ रही होगी.. उन्होंने देख लिया तो गजब हो जायेगा" आंटी की आवाज।

"वह तो पढ़ाई में बिजी होगी...प्लीज डार्लिंग..." अंकल की आवाज।

"ओफ्फो... तुम मानोगे नहीं.. अच्छा जो करना है जल्दी करो..." आंटी की आवाज आयी।

यह सब बातें सुनते ही अन्दर क्या हो रहा है मै समझ गयी। आखिर मैं अट्ठारह साल की जवान लड़की हूँ। सक्स के बारे में कुछ कुछ जानती हूँ। मुझमे उत्सुकता जगी और मैं इधर उधर देखि तो मुझे वरांडे में खिड़की की याद आयी और में उस तरफ बढ़ी।

लक अच्छा था कि वहां की किङकी खुली है। मैं धीरेसे उधर बढ़ी और धीरे से अंदर झांकी। अंदर का नजारा देख ते ही मेरा सारा शरीर झन झना उठा। अंकल कोई 40 साल के है तो आंटी 35 की। उन के दो बच्चे भी है एक बेटा १२ साल का तो एक बेटी ९ साल की।

अंदर आंटी की साडी उसके कमर पर पड़ी है और उनके बलिष्ट कूल्हों को अंकल मसल रह है.. अंकल सिर्फ कमीज में है, नीचे कुछ भी नहीं है। आंटी के ब्लाउज के सारे हुक्स खुले है और उनके बड़े बड़े चूचियां हलके से हिल रहे है। अंकल एक ओर से उनके कूल्हों को दबाते एक ओर आंटीके चूची को चूस रहे है।

"उफ़... यह क्या कर रहे हो.. जल्दी करो..." आंटी अपनी कमर उछालते बोली।

"ठहरो डीयर तुम्हे मालूम है जब तक मैं इस संतरो का रस पी नलू मुझे चुदाई का मजा नहीं आता है" अंकल बेहिचक गन्दी भाषा बोल रहे है।

"हाँ हाँ तुम्हे क्या.... तुम वैसे ही कहते हो.. मेरी तो खुजली से जान निकल जाति है।"             

"तो क्या हुआ डार्लिंग मैं हूँ न तुम्हरी खुजली मिटाने के लिए..."

हाँ... बहुत आये मिटा ने वाले.. पहले संतरो की बात करते हो और फिर अमृत पीने का बात करते हो .. तबतक में मर जावूँगी..." आंटी अंकल के लंड को मुट्ठी में जकड़ते बोली। मैंने देखा है की अंकल की कोई ७ इंच लम्बी और अच्छा खासा मोटा भी है। 'बापरे इतना बड़ा और मोटा...' मैं सोच ही रही थी की अंकल ने आंटी की चूची को चूसते फिर निप्पल को हल्का काटने लगे। "अरे.. तुम सुनोगे नहीं..निप्पल क्यों काट रहे हो... मुझे खुजली होती है..." आंटी अंकल के मर्दानगी को ऊपर नीचे करते बोली।

"पद्मा" अंकल बुलाये। आंटी का नाम पद्मा है मुझे तभी मालूम हुआ। हमे नाम से क्या लेना देना है, हम तो सिर्फ आंटी करके बुलाते है।

"बोलो क्या बात है...?" आंटी अंकल के सुपाडे पर ऊँगली से रगड़ ते पूछी।

"एक बार मेरा भी चूसो न डीयर"

"तुम मानोगे नहीं.." बोली और उठके अंकल के उस लम्बे से चढ़ को अपने मुहं में लेकर चूसने लगे।

"हहहहहहहहहह...ससससस...." अंकल सीत्कार कर उठे। आंटी अंकल को चूसते उनके ग्लोइयों से खिलवाड़ करने लगी। फिर कुछ देर बाद बोली "क्यों जी अब जल्दी करो.. और ज्यादा मत तडपाओ.. चोदो; डालो अपनी लंड मेरी सुलगती चूत में" आंटी बोली और उठ कर अपने पीठ के बल लेटी और टांगों को पैलाई। आंटी का मोटे फांके थोडा सा खुल गए है और आंटी उस पर अंकल डंडा रगडने लगी। अंकल भी अब देरी न करते आंटी के जांघों के बीच आये और अपना तम्बू का डंडा आंटी के बिल में घुसाने लगे।

जैसे ही अंकल का अंदर घुसा "सससस...ऊम्मम.." कर आंटी सीत्कार करते अपनी कूल्हों को ऊपर उछाली।

"क्या हुआ मेरी रानी.." अंकल एक दक्का देते पूछे।

"कुछ मत पूछो.. डालो.... और अंदर डालो अपने डंडे को... मममम...और अंदर.. पेलो.." आंटी अपनी गांड उठाते चिल्लाने लगी।

"आरी... ऐसा क्यों चिल्ला रही हो.. चोद तो रहा हूँ.. थोड़ा इत्मीनान रखो.. साली लगता है आज कल तू बहुत ही चुदक्कड़ बन गयी है.." अंकल गपा गप चोदते बोले। अंकल का लंड आंटी के गीली चूत में डूब कर चिकना होकर लाइट की रौशनी में चमक रही है।

"हाँ.. बोलो... तुम नहीं बोलेगे तो और कौन बोलेगा.. मैं हूँ ही चुदक्कड़.. लेकिन मुझे चुदक्कड़ किसने बनाया.. तुम्ही न.. साले दिन रात बुर पे मरते हो... अब भी बच्चे बारह तेरह साल के होगये है फिर भी दिन रात चाहिए... आज ही देखो.. मैं कह रही हूँ की हम अपने घर में नहीं है.. फिर भी तुमने माने क्या.... मुझे गर्म कर और लगे पेलने.. अब पेलो भी.. खुजली बढ़ रही है..आआ...और अंदर.." आंटी अपनी गांड जोर जोरसे उठा रही है।

जैसे जैसे आंटी अपनी कमर उछाल रही है उतनी ही तेजी से अंकल अंदर बहार होने लगे।

मैं यह सब सुनते तन्मयता से देख ने लगी। यह सब सुनकर और देख कर मेरे शरीर में आग लगने लगी। मुझे ऐसा व्यतीत हुआ की मेरी दोनों मस्तानियों में (boobs) भरी पन आया है और मेरे चुचुक तन गए है। अनजाने में ही मेरे हाथ मेरे चूचियों पर गए और उसे सहलाने लगी, कभी कभी घुंडियों को भी मसल रही थी। मेरा दूसरा हाथ मेरे जांघों में घुसी और में कपडे के उपरसे ही मेरी मुनिया को रगड़ने लगी।

"आआह्ह्ह्ह..." मेरे मुहं से सिसकारी निकल रही है जिसे मैं रोक रही थी।

पूरा पंद्रह मिनिट तक मैं आंटी और अंकल की Live ब्लू फिल्म देखि। मेरा सारा शरीर मस्ती मे झूमने लगी। मैं सोच रही थी की मुझे भी कोई ऐसे ही चोदे..." आखिर पंद्रह मिनिट के बाद उनकी लव गेम ख़तम हुआ तो मैं अपने कमरे में गयी और सोने की कोशिश की। लेकिन नींद मेरी आंखों से कोसो दूर थी। मेरि उभरी चूत को रगड़ते और सहलाते मेरे फांकों पर ऊँगली चलाते रगड़ते न जाने मुझे कब नींद लग गयी।

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दुसरे दिन सवरे आंटी ने पुछा "पूजा रात अच्छी तैयारी करली है क्या? आज आखरी परीक्षा है ना..?"

"हाँ आंटी..."

"तुम्हारी आंखे इतनी लाल क्यों है...?" आंटी पूछी।

"जी आंटी वो क्या है की पढ़ रही थी न..."

उसके बाद नास्ता करके मैं परीक्षा लिखने चली गयी और वापिस एक बजे आयी। आंटी ने मेरे लिए खाना बनाकर रखि खायी और मेरे कमरे में चली गयी। आंटी भी शाम को आने को कहकर अपने घर चली गयी। उस शाम आंटी 7 बजे आयी और नौ बजे अंकल आये। हम सब मिलकर खाना खाये और अपने अपने कमरे में चले गए। उस रात आंटी मेरे पास ही सोई कह रही थी कल तुम्हारे एक्साम्स थे उसी लिए इधर नहीं सोई। आंटी मेरे बगल में मेरे ही बिस्तर पर लेटी। एक्साम्स का (Exams) टेंशन नहीं थी तो नींद जल्दी लग गयी।

टाइम कितना हुआ मालूम नहीं लेकिन मेरे पेट पर कुछ रेंगता सा महसूस कर मेरी नींद उड़ गयी। आंखे बिना खोले ही में लेटी पडी थी। तब महसूस किया की मेरे पेट पर आंटी की तर्जनी ऊँगली सर्कल्स घुमा रही है। मेरे शरीर में गुद गुदि सि होने लगी। आंटी ऐसा क्यों कर रही है मैं सोचने लगी। उतने में आंटी की ऊँगली मेरी गहरी नाभि में घुसी और वहां घूमने लगी। मेरे शरीर में सुर सूरी और बढ़ गयी। फिर आंटी के हाथ मेरे शर्ट के अंदर घुसी और ऊपर की ओर रेंगने लगी।

रात को मैं स्कर्ट और शर्ट पहन क्रर सोती हूँ ब्रा नहीं पहनती। स्कर्ट के नीचे पैंटी के बदले एक ढ़ीलि सी चड्डी (nikker) पहनती हूँ ताकि हवा अंदर तक मिले। आंटी के हाथ ऊपर रेंगते मेरी 18 वर्षीय चूची पर आयी और धीरे से दबाने लगी। मुझे एक अजीब सी आनंद मिल रही थी। आज तक किसी ने मुझसे ऐसा नहीं किये थे। मैं उस आनंद को एन्जॉय कर यही थी। अब आंटी मेरी निप्पल को पकड़ कर पिंच की। "ममममम...." मेरे मुहं से एक घुटी हुयी सीत्कार निकली।

"पूजा..." आंटी बुलाई पर मैं जवाब नहीं दी। आंटी ने कुछ देर रुकी और फिर से शुरू होगयी। वह एक के बाद एक मेरी नंगी चूचियों से खेलने लगी। उसे मसलते, प्रेस करते, चुचुक को मसलने लगी। फिर आंटी ने मेरी शर्ट के बटन खोलने लगे। में सोची उन्हें रोकूं पर न जाने क्यों रोक नहीं पायी और उन्होने मेरे शर्ट के पूरे घुंडियां खोलदी।

जैसे शर्ट मेरे स्तनों से हटी, आंटी मेरे ऊपर झुक कर मेरे एक निप्पल को अपने मुहं में ली और चुभलाने लगी।

अब मुझसे बर्दास्त नहीं हो रहा था । "आआह्ह्ह...ऑन..टी ... क्या कर रहे है आप...?" मैं पूछी।

"पूजा उठ गयी...?" आंटी पूछी।

"आप क्या कर रहे है आंटी...?" मैं फिर से पूछी।

"तुम्हे लव कर रहा हूँ... अच्छा है क्या..?" अब मेरे गलों को चूमती पूछी।

"ऊम्मम..." मैं बोली और आंटी के सर को मेरे स्तनों पर दबायी। आंटी फिर से अपना काम शुरू करदी। मेरे चूचियों को चूसते चुबलाते वह नीछे की फिसली और मेरे पेट को चूमते चूमते; मेरे नाभि पर आयी और अपना जीभ मेरे नाभि में घुमाने लगी। "

"मममम...ससस...हां..." आंटी मैं तिलमिलायी।

वैसे ही मेरे पेट और नाभि को चूसते आंटी ने मेरे स्कर्ट खोलने लगी।

"आंटी... नहीं.. यह क्या कर रही हो...?" मैं पूछी।

"अरे खोलने दे ना.."

"क्यों...?"

"मुझे देखना है..."

"क्या...?"

"तेरी चूत ...."

"छी आंटी आप कितने गंदे है.. नहीं मुझे शरम आ रही है.." मैं आंटी के हाथों को रोकते बोली।

"आरी पगली देखने तो दे अपनी नगीना को. "

"देखना क्या है..? आपके पास भी तो है न..." मैं बोली।

"है.. अच्छा एक काम करते है.. तू मेरा देख और मुझे तुम्हारी दिखादे" यह कहते उन्हने पहले अपनी साड़ी और फिर से पेटीकोट निकल फेंकी। अब आंटी सिर्फ ब्लाउज में है जब की मैं सर्फ स्कर्ट में हूँ और शर्ट के पूरे घुड़ियां खुले है।

आंटी की ब्लाउज सफ़ेद थी और पतला भी थी और उन्होंने अंदर ब्रा नहीं पहनी थी। जिस से आंटी का चूचियों का काले दब्बे और मोटे निप्पल साफ दिख रहे है। आंटी ने जब अपनी कपडे उतार फेंकी तो मैं कुछ कह न सकी और उन्होंने मेरे स्कर्ट के साथ मेरी शर्ट भी उतर दी। अब मैं सिर्फ पैंटी में हूँ।

"पूजा Vaaaahhhh... सच में ही तुम बहुत सुन्दर हो ..." कहते उसने फिर से मेरी चूची को अपने मुहं में लिए और दुसरे को मींजने लगी। आंटी के जांघों के बीच उभरी हुयी उनकी खूब चुदी चूत एकदम साफ चिकना है। शायद आज ही बालों को साफ की होगी। आंटी की फुले फांके थोड़ा सा खुल कर अंदर की लालिमा दिख रही है।

कुछ देर मेरे अंगों के साथ खेलने के बाद आंटी ने मेरी चड्डी भी खींच फेंकी। मेरे जांघों के बीच मेरी अनचुदी बुर 10 दिनों के बालों के साथ आंटी के दर्शन में आयी।

"वह... क्या मस्त है तुम्हारी चूत ..." कहती उन्होंने मेरे जांघों में अपना मुहं रख दी और लगी मेरि बूर को चाटने।

"आंटी..... मममम... उफ्फ्फ.." अनजाने में ही मैं उनके सर को मेरे बुर पर दबायी।

आंटी अपने खुरदरे जीभ से मेरी बुर को खुरेदने लगी। उनकी जीभ मेरी उभरे फांकों पर नीचे से ऊपर तक रेंग रही है। उनकी ऐसे हरकत से मेरे में गर्मी बढ़ने लगी। मेरे स्तनों में भारी पन आगया और मेरे निप्पल्स कड़क होगये...

आंटी मेरे एक निप्पल को अपने होंठों में ली और होंठों से दबाने लगी। मेरी आनंद की कोई सीमा नहीं थी। "मममम.. आंटी.. uufffuufff . मजा आ रहा .. और मुझे कुछ कुछ हो रहा है... mmmmmmm.... aammmmmaaaaaaa...." कहते में निढाल पड़ी. मुझे ऐसा महसूस हुआ की मेरी चूत में से ढेर सारा चिकना पानी बह निकली जिसे आंटी ने slurp... slurp करते चाट गयी।

मैंने भी अपने हाथ आंटी के उभारों पर रखी और दबाने लगी। उनके मेरे से कहीं ज्यादा बड़े है।

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ऐसे ही बहुत देर पड़े रहने के बाद आंटी उठी और किचन में जाकर बूस्ट तैयार करके लायी और हम दोनों गर्म गर्म बूस्ट पीकर कुछ एनर्जी हासिल किये। आंटी एक बार फिर से मेरे गालों को चूम ते पूछि "पूजा अच्छी लगी...?"

"हाँ आंटी बहुत अच्छी लगी खास कर जब आप मेरी..." मैं रुक गयी।

"चूत चाटी थी ... यही न ..." आंटी मेरे निप्पल को पिंच करती पूछी।

मैं 'हाँ..' में सर हिलायी। "और मजा लेना चाहो गी ...?" आंटी पूछी। मैं फिर से हाँ में सर हिलायी।

"पूजा ऐसे काम औरतों से बेहतर कोई मर्द करे तो औरत या लड़की तो स्वर्ग में विचरती ही..." आंटी मेरी एक चुचुक को पीते और दूसरे को मसलते बोली।

"क्या सच में...?" मैं चकित होकर पूछी।

"हाँ.... तुम वह माजा लेना चाहोगी...?" अब आंटी की एक ऊँगली मेरी बुर को खुरेदने लगी।

"कैसे...?" मैं अपनी कूल्हों को आंटी के ऊँगली पर दबाते पूछी।

"तुम्हारे अंकल से..." आंटी हँसते बोली।

"अंकल से.. बाप रे नहीं.. किसी को पता चले तो..."

"किसी को पता नहीं चलेगा... देखो यही मौका है.. तुम्हरे घर वाले नहीं है.. ऐसा चांस फिर नहीं मिलने वाली .. सोच लो.." आंटी बोली और मेर बुर के अंदर तक ऊँगली डालकर मुझे फिंगर फुक करते पूछी।

मेरे में कामोत्तेजना इतनी बढ़ी की क्या अच्छा और क्या बुरा सोचना बंद होगया.. और मेरे में उस मजा पाने की चाहत बढ़ी फिर भी बोली "आंटी मम्मी को पता चला तो वह मुझे जान से मार डालेगी .." मैं बोली।

"हमारे यहाँ से किसी को पता नहीं चलेगा.. इसका मैं guarantee करती हूँ.. अगर तुम्हारे से किसी को पता चले तो चले.."

"छी.... छी .. ऐसी बातों का दंडोरा पीटते है क्या..?"

"फिर किस बात का ढर... मौका अच्छा है फायदा उठालो.. " आंटी मुझे उकसा रही थी। मैं ने भी झिझकते 'हाँ' कह दी। मेरी 'हाँ' बोलने की देरी थी की आंटी अंकल के कमरे में गयी और उन्हें बुला लायी। अंकल को देखते ही मैं मेरी नंगापन छुपाने की कोशिश की। मैं एक हाथ से अपनी बुर को ढकी तो दुसरे से अपनी उभरती छातियों को।

"आरी पगली..ऐसे शरमाओगी तो क्या मजा लूटेगी तू.. चल दिखा अंकल को..." आंटी मेरे समीप आकर मेरी हाथों को निकल दी। मैं शर्म से लाल होती अंकल के सामने नंगी थी।

"पूजा... इधर देखो मेरी ओर.." अंकल मेरे पास आकर बैठे और मेरे कंधे पर हाथ रख कर बोले। मैं लज्जा से मेरे सर को और नीचे करली।

"वह तो वैसे ही शरमाते ही रहेगी.. अभी नयी नयी है ना.. तुम शुरू होजाओ.. उसकी शर्म अपने आप दूर हो जाएगी..." कहती आंटी ने अंकल की लुंगी निकाल फेंकी। अब कमर के निचे अंकल नंगे होगये और उनका लंड जिसे मैं कल आंटी को चोदते देखा था वह अब मेरे सामने अपना सर उछाल रही है। मैं पहली बार किसी के लंड को इतनी नज्दीक से देख रही हूँ।

"पूजा पकड़ो इसे..." अंकल मेरे गालों को चूमते बोले।

मेरा दिल कह रहा था की उसे अपनी मुट्ठी में जकड़ूँ लेकिन शर्म के मारे मैं वैसा नहीं करि।

"अरी लड़की शर्मा रही है.. जो करना है तुम करो.." आंटी अपने पति से बोली और मुझे चित लिटाई और मेरे ऊपर झुक कर मेरी एक दुद्दू को अपने मुहं में लेकर चूसने लगी।

"सससससस...ममममम..." मेरी मुहं से एक मीठी सीत्कार निकली। तब तक अंकल भी मेरे जांघो को चौड़ा कर बीच मे आये और मेरी बुर की उभर पर अपने हाथों से सहलाने लगे। अंकल के खुरदरे हाथ और उन हाथों की गर्मी मुझे नशा करने लगी। मैं अपनि कमर उठायी।

अंकल कुछ देर मेरे बुर पर हाथ फेरकर मेरे जांघों में झुके "वाह क्या माल है...?" कहते मेरे बुर के फांकों को अपने मुहं में लिए और चूसने लगे।

"आह..." में बोली; अब मुझ पर डबल अटैक हो रहा है। एक ओर आंटी मेरे चूचियों पर हमला बोल रही है तो दूसरी ओर अंकल मेरी रिसते बुर पर। मैं मेरा ध्यान किधर दूँ समझ में नहीं आया। अंकल की तरफ या आंटी की तरफ। दोनों हि मुझे मजा दे रहे है।

"आआह्ह्ह...आंटी.. अंकल... उह.. ये...ह क्या कर रहे है आप.... मममम.. मुझे कुछ हो रहा है रोको..." मैं बाड बडा रहि थी और अपना गांड उछल भी रही थी।

"पूजा.. मजा आ रहा है ना...? आंटी मेरी चूची के ऊपर से सर उठकर मुझे देख ती पूछी।

"ओह पूज मैं और अंकल तुम्हे मजा दे रहे है .. अच्छा लगा की नहीं...?" आंटी फिर से पूछी...

"बहुत अच्छा लग रहा है आंटी......उफ्फ्फ... मुझे कुछ हो रहा है..." मैं एक ओर अंकल की चुसाई का मजा लेती बोली।

"अंदर खुजली हो रही है क्या...?"

"vooon...." मैं बोली।

"किधर खुजली हो रही है..?" मेरे गाल को चिकोटी काटते पूछी। आंटी के ऐसा पूछने से में शर्म से लाल हो गयी.. मुझे ऐसा लगा की गरम खून मेरे गलों में बह रही है।

"जाओ.. आंटी आप भी न..." मैं लजाते बोली।

"अरे पगली...जब तक मालूम नहीं की खुजली कहाँ हो रही है.. तो मरहम पट्टी कैसे लगाएंगे.. बोलो कहा खुजली ह रही है.. ""

"ओ ... ओ.... में..री... चू .....त में.." में धीरेसे उनके कान में फूस फुसाई, ताकि अंकल न सुन सके।

"अच्छा तो पूजा रानी की चूत में खुजली हो रही है... सुना आपने.. पूजा की चूत में खुजली हो रही है... इसका कोई उपाय ढूंढो.." वह अंकल को सम्बोदित बोली।

"डार्लिंग इसका तो एक हि उपाय है... चूत में लंड डालो और चोदो...." अंकल अपना सर मेरी चूत पर से उठा कर बोले।

"सुना पूजा अंकल क्या कह रहे है.. चूत को चोदना होगा.. तभी तुम्हारी खजूजी मिटती है.. चोदे..?" वह अब मेरे गलों को चाटते और मेरे मस्तियों को मींजते पूछी।

मैं तो वैसे ही मदहोश हो रही हूँ.. मेरे गीली बुर में खुजली और तेज होगयी.. "कुछ भी करो.. चोदो या चाटो .. पहले मेरी खुजिली मिटाओ... मैं मर रही हूँ इस न मुराद इचिंग (itching) से." मैं बोली...

मैं ऐसा बोलने की देरी थी की अंकल अपना मुस्टंड हाथ में पकड़ कर हिलाते.. जरा इसे चूमो पूजा..." बोले।

मैं.... झट उनके चढ़ को पकड़ कर एक दोबार ऊपर निचे हिलायी और फिर उसे सुपडे को मेरे मुहं में ली। मेरे नथुनों में एक अजीब सा गंध महसूस हुआ। मैं चूसने लगी.. जैस जैसा में उसे चूस रही थी अंकल अपना पावड़ा मेरे मुहं में घुसते चले जा रहे है... अखिर अंकल का मेरे हलक तक पहुंची और मेरा सास लेना दूभर होगया...

"अरे... यह क्या क्रर रहे हो.. बिचारे की बुर में इचिंग हो रही है.. और तुम उस से अपना चुसवा रहे ह.." आंटी अंकल से बोली।

"मेरी प्यारी पत्नी जी.. में वही तो कर रहा हूँ.. मैं लंड इस लिए चुसवा रहा हूँ की वह थोड़ा चिकना हो जाये तो आसानी से बुर के अंदर घुसेगी.... क्यों डियर है ना..." अंकल मुझ से पूछे। मैं मेरे मुहं से लवडे को निकले बिना ही 'हाँ' में सर हिलायी।

सच मानो तो मुझे भी अंकल का चूसने में मजा आ रहा था। में और जोर से मेरे सर को आगे पीछे हिलाने लगी। उधर आंटी मेरे बुर में अपनी उंगली डालकर मुझे फिंगर फ़क कर रही है।

वैसे ही पांच मिनिट तक चूसने के बाद अंकल ने अपना मेरे मुहं से निकले और मेरे टाँगों के बीच आये। आंटी भी उठके मेरे जांघों को खूब चौड़ा करि। अंकल अपना मोटा सा सूपाड़ा मेरे चूत के होंठो पर रगड़े

"आअह्ह्ह..." मैं सीत्कार करि और मेरे कमर उछाली। मैं

अंकल एक हल्का सा दबाव दिए... "आअह .. अंकल..." मैं दर्द से कुन मुनाई।

"बस थोडासा बर्दास्त करो.. फिर मजा ही मजा है.." आंटी कह रही थी की अंकल एक जोर का दबाव मेरी उस पर दिए। 'थप' की sound के साथ अंकल का डिक हेड (सूपाड़ा) मेरी बुर में समां आयी। "आअह्ह्ह.." मैं एक बार फिर से दर्द से कराहि।

तब तक आंटी मेरे सर के पास अकर मेरे ऊपर झुकी और अपना एक स्तन को मेरे मुहं पर रखी.. मैं उसे मुहं में लेकर चूस रही थी.. और आंटी का एक हाथ मेरे एक मस्ती को दबा रही है। मैंने देखा की आंटी ने अंकल को आँखों ही आँखोंमे कुछ इशारा किया। वह इशारा पाते ही अंकल अपना थोडा सा बाहर खींच फिर एक झटके में जोर का दक्का मेरे बुर में दिए... "aaaaaaaaaa.....mmm..sss...mmmaaa a....rrreeeeeee...." में मरे दर्द के चिल्लाई.. लेकीन मेरे आवाज मेरे गले में ही दब कर रह गयी.. क्यों की आंटी का चूची मेरे मुहं में थी.. लेकिन मैंने आंटी के निप्पल को जोर से काटी ..."

"आह्ह...." अब की बार आंटी चिल्लाई। "पूजा क्या कर रही है...?" आंटी बोली, मैं जवाब नहीं दी।

तब तक अंकल मेरे अंदर बहार होना शुर हो गए। कुछ मिनिट तो मुझे दर्द और जलन महसूस हुआ लेकिन जब मेरी बुर रिसने लगी और अंकल का लंड, मेरे मदन रस से चिपड़ने लगी और अब अंकल का डंडा आराम से मेरे अंदर बाहर होने लगी।

अंकल के मूवमेंट की मुताबिक मैं अपना कमर उछाल रही थी। अब मुझे मजा मिलने लगी तो में बोली..."आह.. अंकल चोदो .. मुझे बहुत अच्छा लग रहा है.. बस चोदते जाओ... अपने डंडे से.. मारो मुझे.. और जोर से..म्मम्मा" कहते मेरी गांड उछलने लगी.. एक ओर अंकल मुझे पेल रहे थे और दूसरी ओर आंटी अपना चूची मुझसे चुसवा रही थी। मैं भो खामोश नहीं थी। मैं ने मेरे हाथ बढ़ाकर आंटी के कूल्हों के पीछे से उनकी खूब चूदी चूत को ऊँगली करने लगी। अब तीनों को एक दुसरे से मजा मिलने लगी। सारा कमरा हमरी आवाजों से सीताकरों से और हमरो गर्म श्वासों से भरी है। यह खेल पूरा आधा घंटे तक चली...

अंकल गप गप चोदते रहे थे। "अंकल... हहहआ.. कुछ रिस रहा है,, मेरी बुर से..फ्फु..."में बोली और मैं झड़ने लगी। जिंदगी में पहली बार झड़ना क्या है मालूम हुआ..' झड़ने के बाद मैं शिथिल पड़ गयी।

अंकल भी पंच छह दकके मारे और मुझसे पूछे.. "पूजा.. तुम्हारी माहवारी कब खतम हुई।

में बोली..

"ठीक है.. में अंदर ही छोड़ रहा हूँ.. देखो कितना मजा मिलता है जब गर्म गर्म अंदर गिरती है तो.." कहते मेरे अंदर ही झड़ने लगे। सचमे बहुत सुकून मिला जब अंकल गर्म गर्म लावा जैसे मेरे अंदर गिरने लगी तो..."

फिर क्या था उस रत अंकल एक बार मुझे और एक बार आंटी को खूब चोदे। खूब मजा आया... मेरी पहली चुदाई में ही मुझे थ्री सम (three some) का अनुभव मिली।

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