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नानाजी के साथ पुनर्मिलन Ch. 01

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चार वर्ष बाद हेमा का अपने नाना से फिरसे चुदाई...
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नानाजी के साथ पुनर्मिलन -1               हेमा नंदिनी

Story infn

चार वर्ष बाद हेमा का अपने नाना से फिरसे चुदाई...

सुबह के ग्यारह बजे हैं। घर का काम पूरा करके मैं बेड रूम में आराम कर रही थी। इतने में दरवाजे की घंटी बजी। 'अब कौन होगा.. कोई आनेवाले तो नहीं...' सोचते मैं दरवाजा खोली। सामने एक लग भाग 50 वर्ष का आदमी ठहरा था और मुझे देख कर मुस्कुरा रहा था। उन्हें देख कर लगा की यह तो पहचानी चेहरा है.. कौन है...?' मैं सोचहि रही थी की "क्यों हेमा पहचानी नहीं..." पूछते हंस रहे हे।

उनकी आवाज और उनकी हंसी देख कर मुझे याद आगया है वह कौन है। "अरे नानाजी आप... सॉरी तुरंत पहचान नहीं पायी ...आईये अंदर आईये प्लीज..." मैं कही और दरवाजे से हटी।

में उन्हें अंदर बुलाई और वह अंदर आगये। मैं उन्हें सोफे पर बिठाई, कोल्ड ड्रिंक पिलाई.. और पूछी "नानाजी कैसे है..वैसे आपको मेरा पता कैसे मिला ...?"

मैं ठीक हूँ हेमा.. और बाकि के घरवाले भी ठीक है, वैसे तुम कैसी हो..? तुम्हारी शादी मैं नहीं आसका; तुम्हारे पति कैसे हैं?."

मैं ठीक हं नानाजी... वह भी ठीक हैं.. मुझे बहुत प्यार करते हैं... आपसे मिलकर बहुत साल गुजर गए हैं...." मैं बोली।

हाँ हेमा.. हमारी पहली मुलाकात के बाद फिर अभी मिल रहे हैं... लगभग पांच साल गुजर गए हैं..." नानाजी मुझे गौर से दखते बोले। मेरे मानस पटल पर उन तीन दिन घूमने लगे, जब वह हमरे घर रहे।

दोस्तों मैं अपको बता दूँ की नानाजी मेरे दूसरे चोदु हें। जब में सिर्फ 19 साल की थी। मुझे पहले चोदकर, मेरी कुंवारा पन लेने वाले मेरे बड़ी माँ का बेटा शशंक भैया ही हैं। भैय्या से चुदने के बाद चार या पांच महीने बीते होंगे, अगस्त का महीना था नानाजी हमारे घर आये और उस रात अपनी हलब्बी लंड से मुझे चोदे। (उस पूरा एपिसोड के लिए पढ़िए "शशांक भैय्या और माँ " यहाँ गलतीसे इस एपिसोड का टाइटल चेंज होगयी है)

---

"नानाजी आप को मेरा पता किसने दी, और आप यहाँ इस शहर में कैसे? और कब आये?" मैं पूछी।

मैं यहाँ शहर में एक व्यक्ति को तीन लाख रुपये उधार दिया था, डेड साल होगया साला ब्याज भी नहीं दे रहा है और न ही असल। वही वसूलने आया हूँ मैं आकर तीन दिन होगये"

"क्या...? तीन दिन... कहाँ रहे...?"

"उसीके यहाँ.. पूरा पैसा वसूल कर के ही निकला हूँ।"

"ओह... आपको मेरा पता किसने दी?"

"यहाँ आने से पहले मैं प्रभा के पास गया था, उन्होंने ही तुम्हारा पता दी है।" (प्रभा मेरि माँ है)

"आपको देख कर बहूत साल गुजर गये ..."

कुछ देर हमारे बीच ख़ामोशी छायी रही।

"हेमा तम्हारे पति कब आयेंगे?" नानाजी पूछे।

"उनके आते आते शाम के छह बज जाते हैं नानाजी।"

"ओह..."

"क्या बात है नानाजी.. उनसे कुछ काम था क्या...?"

"नहीं हेमा... शाम 4 बजे मेरि गाड़ी है...जाने से पहले तुम दोनों को देखकर आशीर्वाद देना चाहता था बस..."

"आज ही जायेंगे... एक दो दिन रुक जाना था नानाजी...." मैं बोली।

"नहीं हेमा.. गांवमे काम रुक जायेगा.. अबतो तुम्हारा पता माँलूम होगया है, अबकी बार आवुंगा तो रुकूंगा.." मैं कुछ बोली नहीं, खामोश रही।

इतने में मेरी मोबाइल बजी, देखा तो मोहन, मेरा पति का था... "हेलो..." मैं बोली।

"हेमा मैं अभी आधे घंटे में घर आ रहा हूँ..." वह बोले।

"क्यों...?"

"आ रहा हूँ ना...आकर बतावुंगा..."

"जल्दी आईये.. एक मेहमान से मिलना है ..."

"कौन....?"

"आ रहे हैं ना, आकर पता चलेगा.." मैं भी उन्ही की अंदाज़ में बोली

-x-x-x-x-x-x-x-x-

आधे घंटे बाद मोहन घर आ गए। मैं उन दनोंका परिचय करादी। "मोहन... यह है मेरे नाना जी... और नानाजी येह है मेरे पतिदेव मोहन" में नाटकीय अंदाज़ में बोली। फिर मोहन फ्रेश होने चले गए। "नानाजी..आप भी फ़्रेश हो जाईये लंच टाइम हो गया है, खाना परोसती हूँ" कह कर नानाजी को स्पेयर बेड रूम दिखाई, और वह वहां चले गए।

हम सब मिलकर ख़ाना ख़ाने लगे। नानाजी और मोहन एक ओर तो उनके सामने मैं बैठीथी। नानाजी और मोहन कुछ बातें करने लगे।

"हेमा तुम तो इन्हे नानाजी कह रहे हो, इनकी उम्र तो..." मोहन रुक गए।

"बात यह है बेटा ..." नानाजी कहने लगे, असल में हेमा के नानाजी और मैं cousins है; प्रभा के पिता और मुझमे बीस साल का अंतर है। मेरे में और हेमा के माँ, प्रभा में चार वर्ष का अंतर है। हेमा की माँ मुझसे चार साल छोटी है लेकिन वह हमेशा मुझे चाचाजी कहती थी, वैसे मैं हेमा का नानाजी बन गया।"

"देखिये ना; नानाजी आज ही आये है और कह रहे है की आज ही चले जायेंगे..." मैं मोहन को देखते बोली।

"अरे ऐसा कैसा हो सकता है' आप रुकिए...,"

"नहीं बेटा..."

अंकल आप रुकेंगे... अरे हेमा मैं बोलना भूल गया.. आज से तीन दिन मैं ऑफिस के काम से बाहर जा रहा हूँ... कपडे पैक करने ही मैं जल्दी आया हूँ... अंकल मैं टूर पर हूँ और हेमा घर पर अकेली रहेगी.. प्लीज आप रुकिए..." मोहन जबरदस्ती करे।

"ठीक है फिर आप इतना कह रहे है तो..." फिर कहे "लेकिन बेटा मेरा गाड़ी का रिजर्वेशन है"

"कोई परवाह नहीं.. आप टिकट दे दीजिये में कैंसिल करा देता हूँ..."उसके बाद हम इधर उधर की बातें करते रहे और मोहन पैकिंग मे लग गए।

शाम के छह बजे मोहन चला गए। मैं और नानाजी TV के सामने बैठकर बतिया रहे थे। आठ बजे हमने खाना खाये और मैं अपने कमरे में और नानाजी अपने कमरे में चले गए।

-x-x-x-x-x-x-x-x-x-x-

मैं बिस्तर पर थी लेकिन मेरी मानस पटल पर उसदिन, जब मैं नानाजी से पहली बार चुदी थी की घटनाएं घूमने लगी। उस दिन घर में हम दोनों ही थे। मम्मी और मेरी दो छोटी बहनें बहने बड़ी माँ के पास गए हुए हैं। वैसे उनके साथ मुझे भी जाना था लेकिन, नानाजी आने की वजह से मैं रुक गयी। उस रात मेरा कालेज का असाइनमेंट पूरा होने तक रात के ग्यारह बजे थे। मैं हॉल मै आकर एक बार पहली मंज़िल की ओर देखि जहाँ नानाजी का कमरा था, 'नानाजी सोगये होंगे' सोचते मैं TV में आनेवाली मिडनाइट मूवी चालू करि और उस एडल्ट मूवी देखने लगी। देखते देखते मैं गर्मागई और मैं अपने एक हाथ से मेरी चूची को तो दुसरी हाथसे मेरी मुनिया को सहलाने लगी। मेरी बुर मदनरस छोड़ने लगी, इतने मे सीढ़ियों पर पदचाप सुनाई दी और मैं झट अपनी आंखे बंद करली। उसके वाद...

-x-x-x-x-x-x-

उस दिन का घटना याद आते ही मेरा बदन फिर से गरमा गई है। मेरी चाचियों में भरी पन आगया और मेरे चुचुक कड़क हो चुके हैं। अनजानेमें ही मेरा दाहिना हाथ मेरी जाँघों के बीच चाली गयी और वहां सहलाने लगी। सिर्फ दो ही मिनिट में मेरि बूर से मदन रस टपकने लगी।

'नानाजी क्या कर रहे होंगे... क्या उन्हें उस दिन की घटनाएं याद आ रही है या नहीं...' मैं सोचने लगी। मेरी चूत में इतनी खुजली होने लगी की किसी खुरदरे वस्तु से वहां रगड़ने को दिल कर रहा था। "आआअह्ह्ह्ह... मैं क्या करूँ....

अब बर्दास्त नहीं होती, मैं तो सोच रही थी की नानाजी बुलाएँगे... लेकिन ऐसा नहीं हुआ... हाय... आखिर मैं एक निर्णय ली और घडी देखि। रात के दस बजे थे। किचेन में जाकर दो कप में होर्लिक्स मिलायी और नानाजी के कमरे के पास जाकर "नानाजी..." उन्हें बुलाते दरवाजे को भी नॉक करि।

शायद वह अभी सोये नहीं थे अंदर से आवाज आयी "अंदर आजावो हेमा डोर खुला है".. मैं दरवाजा खोलकर अंदर प्रवेश करि, सामने पलंग पर नानाजी चित लेटे दिखे। मैं उन्हें देखती बोली "नानाजी होर्लिक्स,..." आगे बढ़कर उन्हें एक कप थमादि।

में कुर्सी पर बैठ रही थी की वह बोले "यहाँ बैठो हेमा..." और अपने बिस्तर पर थप थपाये। में जाकर उनके पास बैठ गयी। दोनों खामोशी से हॉर्लिक्स पिये।

खली कप साइड में रखने बाद नानाजी मेरे हाथोंको अपने में लेकर, हल्का हल्का स सहला रहे थे और मेरी मुहं देख रहे थे।

"नानाजी ऐसे क्या देख रहे हैं औ...?" मैं मंदमंद मुस्कुराती पूछी।

"हेमा शादी के बाद तुम्हारी सुंदरता में चार चाँद लग गए है..." मेरे हाथों को वैसे ही दबाते बोले।

"जाईये नानाजी...आप भी ना.. हद कर रहे है..." मैं बोली, मेरे हाथ उनसे पीछे लेने की कोशिश नहीं की और न ही उन्हें टोका।

"सच कह रहा हूँ हेमा तुम पूरा अपने माँ पे गयी हो... बिलकुल तुम तुम्हारि माँ जैसे ही हो..."

"अच्छा... ऐसा क्या है मुझमे जो माँ से मिलती हो..." उनकी बातें सुनके मेरे सारे शरीर में झूरझूरी होने लागि।

आजके तुम्हारे एक फोटो लेकर उसे किसी तुम्हारे माँ के दोस्तों को को दिखाओ ... वह उसे देखते ही 'अरे यह तो प्रभा है' कहेंगे। वहि काले लम्बे घने बाल, गहरी आंखे, मक्कन जैसी त्वचा, पतले गुलाबी होंठ, मुलायम गाल और..." नानाजी रुक गए।

उनके बातें सुनकर मुझे बहुत ही मजा आ रही थी।

"और...." मैं मुस्कुराते पूछी।

"और...और.. यह बड़ी बड़ी और सख्त छाती, सपाट पेट, पतली कमर, और निचे विशाल और गद्देदार नितम्ब..." कहते कहते उन्हीने झट मुझे बिसतर पर पीछे धकेले और मेरे ऊपर झुक कर मेरे गलों को चूमते हल्का सा काटने भी लगे।

"अहहह ...ममम... ससूसू...ओह नानाजी यह क्या कर रहे है आप...? मैं उनसे छुड़ाने की नाटक करती पूछी।

"अब मत रोको हेमा.. मेरेसे नही होगा... सवेरे तम्हे देखने के बाद से मैं अपने आप को कैसे रोका, यह मुझ ही मालूम..." फिर से मेरे सारे मुहं को चुम्बनों से जमाते अबकी बार मेरा एक वक्ष को भी पकड़ कर जोर से दबाये।

"ssssssmmmmaaaआ...... क्या कर रहे है आप..छोड़ो मुझे.. अब मेरी शादी हो चुकी है.. यह गलत है..." मैं झूट मूट का गुस्सा दिखाती बोली।

"प्लीज.. हेमा.. इसी अधेड़बून मे मैं अपने आप को सवेरे से रोक के रखा हूँ... लेकिन अब नहीं..." मेरी स्तन को जोर से टीपते बोले।

"लेकिन नानाजी यह गलत है..."

"तुम चाहो तो गलत नहीं है... हाँ अगर तुम्हे पसंद नहीं तो यह लो मैं छोड़ देता हूँ..." कहे मेरे ऊपर से उठ गए।

जैसे ही नानाजी मेरे ऊपर से उठे मैं भी उठकर बैठ गयी। मैं उन्हें कुछ देर देखती रही फिर पूछी "नानाजी, क्या सच में मैं इतनी सुन्दर हूँ...?"

"हाँ.. शादी के बाद के तम्हारी सुंदरता पर मैं फ़िदा हूँ..." बोले

उस समय मैं स्ट्राइप्स (Stripes) वाली night पजामा सूट पहनी थी। मैं एकेक करके मेरे शर्ट के घुंडीया खोली और मेरे छातियों को आगे कर बोली... "नानाजी जब आप मुझे इतना चाहते है तो यह लो तुम्हारे नाती के दुद्दू .. यह अब आपके है..." कही।

"ओह हेमा मै डियर.. थैंक्यू .. आअह्ह्ह.." कहे और मेरे ऊपर पहाड़ जैसे टूट पड़े। मुझे फिर से पीछे धकेल कर एक मम्मे को मुहं में लेकर चुंबकने लगे। वह इतनि जोर से चूसे की मेरे मुहं से एक 'आअह्ह्ह' निकल गई और मैं उनके सर को मेरे बूब पर दबायी। वह एक के बाद एक मेरे चूची को मुहं में लेकर चूसते, चुभलाते, कभी कभी दाँतोंसे से काटने भी लगे।

में अब अपने आप को भूल गयी "ओह... नानाजी.. चूसो..मम्मा आह.. अच्छा है... वैसे ही चूसो.. ओफ्फो..." में बड़ बड़ा रही थी। फिर उन्होंने मेरी शर्ट पूरा मेरे बदन से अलग कर और सारा शरीर को चूमने, चाटने लगे। उनकी हरकतों से मैं पानी से निकाले गए मछली की तरह तड़प रही थी।

चूमते, चाटते मेरे पेट और फिर मेरी नाभि में अपनी जीभ डालकर कुरेदने लाए।

मैं कुछ खानोश नहीं थी। में भी उनको जिधर चाहे उधर चूम ही थी और उनके शरीर पर हाथ फेर रही थी। जोसे उन्होंने मेरि नाभि में जीभ चलायी.... "ससस....नानाजी..नहीं... वहां मत कुरेदो...हहहाय..." में तिलमिला उठी।

"क्यों... क्या हुआ...?" नानाजी मेरे आँखों में देखते पूछे।

"हाय...नहिं... खुजली होती है...." मैं बोली।

"कहाँ...?" उनके आंखों मे हंसी के साथ शरारत भी थी। वह फिर झुक कर मेरे नाभि को कूरेदने लगे।

"नहीं.. नानाजी प्लीज..."

"तो बोलो खुजली कहाँ हो रही है...."अब उन्होंने मेरी निप्पल को टविस्ट करे।

"सससससस.... मे ...री ..बू...र..मे..."

"दिखावो.. देखे तो.. कैसी होती है खुजली..."

"ना बाबा..मुझे लज आती है... आप ही देखलो..." कही और मेरी दोनों हाथों में अपना चेहरा छुपाली।

जैसे ही मैं यह बात बोली, नानाजी बिस्तरे से निचे उतरे और पहले उन्होंने अपने सारे कपडे उतार फेंके। मैं चेहरा छुपाये उँगलियों के झिरी से उन्हें देखि 'बापरे उनका डंडा फुल तनकर एकदम सख्त इस्पात की चढ़ जैसी थी। इन बुड्ढों का इतना सख्त कैसे होती है... क्या खाते है यह लोग जो उनका डंडा इतना सख्त और हमेशा तैयार रहती है' मैं सोची। मेरे ससुरजीका भी वैसे ही। उनका खड़े लंड का लाल टोपा का कुछ हिस्सा लाइट की रौशनी में चमक रही है।

नानाजी फिर मेरी नाईट पजामा को पकड़ निचे खींचने लगे। इलास्टिक कमरबंद मेरी कमर से नीचे को खिसकने लगी। उनकी सहूलियत के मैं अपनी कमर उठायी। 'सररररर' की हल्कीसी आवाज के साथ पजामा मेरे नितम्बोंके नीचे और फिर मेरे शरीर से अलग। शर्म के मारे मैं अपने टाँगे बंद करली।

"नहीं.. हेमा नहीं.. ऐसा जुल्म मत करो..प्लीज टाँगे खोलो" कहते नानाजी मेरे पास आये और दोनों टांगों को पकड कर पैलाये। मेरी उभरी चिकनी चूत अब नाना के आंखों के सामने। "प्रभा.. आअह्ह क्या मस्त है तुम्हारी.." (प्रभा मेरी माँ का नाम है) कहे और झट मेरी जांघों में सर रख कर वहां चूमने लगे। उनकी जीभ मेरी फांकों पर निचेसे ऊपर तक चाटने लगी।

"नानाजी....ममममममम" मैं एक मीठी सिसकार लेकर उनके मुहं को मेरी रिसती बुर पर दबायी।

नानाजी मेरी चिकनी बुर को भूखी बिल्ली के सामने दूध रखे तो कैसे चाटजाती है, वैसे चाटने लगे। मेरी बुर एक नाले की तरह बहने लगी। मैं उनके सर को मेरे बुर पर दबाते उनके चाटने का एन्जॉय कर रही थी।

मैं आआह्ह...ओह्ह्ह.. सस्समम्मा...कहती मदभरी सिसकारियाँ ले रही थी। कोई तीन चार मिनिट मुझे चाटने और खाने के बाद नानाजी ने जब अपना सर उठाये तो, उनका मुहं देख कर मेरि हंसी छूट गयी। उनका सारा मुहं होंठ, नाक के इधर उधर मेरि रस से चिपुड़ा है।

"हेमा oohhhh...गॉड क्या स्वाद है...जैसे तुम्हारी सुंदरता शादी के बाद बढ़ी है वैसे ही तुम्हारी चूत की स्वाद भी बढ़ गयी है....आओ मेरे महँ पर अपना बुर रखो.." बोले और मेरी बगल में चित लेट गए।

में उठी और उनके दोनों तरफ पैर रख कर उनके मुहं पर बैठी। अब मेरी मस्तानी उनके होंठों पर। जैसे मैं "बैठि, नानाजी का जीभ मेरे फांकों के बीच अपनी करतब दिखने लगी। नानाजी "ओह... प्रभा...प्रभा...मममम.." कहते मेरि बूर को लपा लप चाटने लगे। नानाजी बार बार मेरी माँ का नाम ले रहे हे। 'क्या वह उन्हें इतना चाहते थे' मैं सोचते मेरी चूत को उनके होंठों पर रगड़ रही थी।

मेरे में मस्ती बढ़रही थी। मेरी चूत के अंदर अजीब सी सर सराहट होने लगी। "नानाजी... आआह्ह्ह.. मम्मा अब सहा नहीं जाता.. मेरे अंदर खुजली बढ़ रही है... सारा बदन आग में तप रही है.. जल्दी कुछ करो..ममममायआ" कहते में अपनी बर को दाबा रही थी। नानाजी के हरकतों से मैं अब तक दो बार झड़ चुकी थी।

मेरे बुरसे बहने वाली कामरस को नानाजी अमृत समझ गले के नीचे उतारते जा रहे थे।

मेरी कोई परवाह न करते उन्होंने अपने हथेलिया मेरे नितम्बों पर रख सहलाते अपना काम कर रहे थे। मेरे नितम्बों को सहलाते, सहलाते कभी कभी मेरी गांड कि दरार में ऊंगली भी करने लगे। एक बार तो वह दरार में ऊंगली करते उसे मेरी गाँड के छेद पर भी दबाते ऊंगली गांड के अंदर देने की कोशिश करने लगे।

"हेय! यह क्या कर रहे है आप...वहां ऊँगली क्यों कर रहे है आआआह ... ऊँगली निकालिये वहां से..." मैं मस्ती में चटप टाती बोली।

"क्यों? क्या हो रही है...? ऊँगली पर और जोर देते पूछे।

'आआअह्ह्ह्ह.. naheeeen .... मेरी गाँड..." में बोली।

"बोल.. क्या हुआ,,,?"

'खुजली.. मेरी चूतमे इचिंग (itching) हो रही यही..."

"तो....."

'चोदो मुझे.. हाय मेरी बुर ... चोदो... देदो अपना मुस्सल मेरी ओखली में.. मारो..." मैं पगलों के तरह बडबडा रही थी।

"साली कितनी मस्ती भरी पड़ी है रे तेरेमे, और ऐसे नखरे कर रही थी..." अब नानाजी मेरे स्तनों को जोर से टीपते बोले।

में उनकी आँखों में देखते बेशर्मी से हंसी और एक आंख दबायी।

"नानाजी.. बस; बहूत हो गया... अब चोदो मुझे मेरी सुलग रही है..." में अपनी गांड उठाते बोली।

"चल तू भी याद करेगी.. अजा..अब देता हूँ तेरे नानाजी का डंडा..." कहे मुझे चित लिटाके मेरे टांगों के बीच आये, मेरे दोनों पैरों को घुटनों के पास मोड़कर अपने कोहनियों में लिए। मेरी चूत खूब फूलकर कुप्पा बन चुकी है। मैं बेसब्री से उनके डंडे की वॉर की इंतज़ार में हूँ। नानाजी अपना मोटा सुपाड़ा मेरी मोटि फांकों पर रगड़े।

"ahahahahahahahah" मेरे मुहाँसे निकल ही रहीथी कि उनका लंड का दबाव मेरी सँकरी छेद में घुसी।

"मममममममम..." मैं दर्द से करहि। नानाजी का आधे से ज्यादा मेरी उसमे समां गयी। "हेमा मैं बोल रहाथा न कि तुम अपने माँ पर गयी है... देख कितना तंग है तेरी बुर..." अपना थोड़ा बहार खींच कर एक शॉट और दिए..."

"अहहहहह... नानाजी... मार ही डालोगे क्या...?" में अपनी कमर उछलती बोली।

"देखो तो लौंडिया...कैसे गांड उठा रही है... और चिल्लाती है दर्द.. दर्द..." मेरि चूत के अंदर एक मार और पड़ी।

"अम्म्माआआआ....: मेरे मुहं से एक कराह निकली और नानाजी का पूरा 7 इंच लम्बा मेरी गीली बुर के अंदर चली गयी। वह ऊपर निचे होने लगे। उनका डंडा मेरे चूत के दीवारों को रगड़ता आगे पीछे हो रही थी।

मेरी बुर रिसने की वजह से गीली होगयी और उनके औजार के लिये खूब ऑइलिंग हो चुकी थी।

"आए...ससससस... नानाजी.. अब अच्छा लग रहा है .. अब शुरू हो जाईये..." मैं अपनी कमार उछलते बोली।

"यह लेना मेरी प्यारी रंडी.. अपना यार नाना का.. साली सवेरे मटक मटक कर चलकर..कितना तडपायी... ले आ रहा है..." और धना धन मुझे चोदने लगे।

मैं भी उनके स्पीड के मुताबिक अपनी कमर उठा उठाकर चुदवाने ने लगी।

पूरा 15 -18 मिनिट तक नानाजी मुझे रौंदते रहे।

"चोदो हाँ.. और अंदर तक डालो अपने लंड को..यस... यस.. ओह गॉड... चुदाई भि क्या खेल है.. जितना खेलो उतना मन करता है...ममम... नानाजी...मेरे चूचीको भी तो देखो.. देखो सालियां कैसे उभर रहे है..." मैं कहति नानाजी के हाथों को मेरी चूचियों पर रखी।

नानाजी उन्हें आटे की तरह गूंदने लगे.. लेकिन वह है की दबनेकी बात ही नहीं लेरहे है..और और उभार ले रहे है...।

नानाजी इस उम्र में भी कुछ कम नहीं थे... दन दना दन मेरी चूत को अपने लैंड से तबला बजा रहे है... हाहाहा.. में खलास.. नानाजी...मेरी हो गयी...सससस..." मैं कही और झड़ने लगी। मेरा अमृत नानाजी लिंग को अभिषेक करने लगी।

इधर नानाजी ने भी आठ दस चोट और दिए... "हाहाहा..हेमा..मेरा भी हो गया है.. देखो मैं पिचकारि कर रहा हूँ...." कहने के साथ साथ मेरे में अपने पिचकारी से फौव्वारा छोड़ने लगे।

अब दोनों का पुनर्मिलन हो चुकी है... तीन चार मिनिट बाद उनका मुरझा गया और मेरे अंदर से बहार निकली। हम दोनों अगल बगल में बेसुध होकर पड़े रहे।

-x-x-x--x-x-x-

तो दोस्तों किसी है यह मेरा नया अनुभव... अपना कमेंट जरूर दें... नानाजी के साथही एक और अनुभव के साथ जल्द ही मिलूंगी... तब तक के लिये अनुमति दीजिये...

आपकी चहेती

हेमा नन्दिनी

-x-x-x-x-x-x-

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