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औलाद की चाह 049

Story Info
कुंवारी लड़की- दोष अन्वेषण और निवारण.
1.4k words
4
218
00

Part 50 of the 283 part series

Updated 05/04/2024
Created 04/17/2021
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औलाद की चाह

CHAPTER 5 - चौथा दिन -कुंवारी लड़की

Update-8

दोष अन्वेषण और निवारण

गुरुजी--अब दूसरा भाग शुरू होगा। रश्मि, मेरे बैग से पवित्र धागा ले आओ.

मैं गुरुजी के बैग के पास चली गयी।

गुरुजी--काजल बेटी, यज्ञ के दूसरे भाग के लिए भक्त को माध्यम के वस्त्र पहनने होते हैं।

ये सुनकर मैं हक्की बक्की रह गयी। मैंने पीछे मुड़कर देखा, काजल उलझन भरा चेहरा बनाकर गुरुजी को देख रही थी। स्वाभाविक था। मैं भी हैरान थी।

गुरुजी--काजल बेटी, माध्यम के रूप में मैंने तुम्हारी प्रार्थना को लिंगा महाराज तक पहुँचा दिया है। अब तुम्हें मेरे वस्त्र पहनकर अपनी प्रार्थना को प्रमाणित करना है और यज्ञ के शेष भाग को हमने साथ-साथ करना है, यानी की अब माध्यम और भक्त दोनों एक ही हैं। जय लिंगा महाराज।

काजल और मैंने भी जय लिंगा महाराज का जाप किया। लेकिन मैंने साफ़ महसूस किया की काजल की आवाज़ में आत्मविश्वास की कमी है, क्यूंकी उसे मालूम था कि अब उसे अपनी सलवार कमीज उतारनी पड़ेगी। गुरुजी ने काजल को सोचने का ज़्यादा वक़्त नहीं दिया और अपने ऊपरी बदन से भगवा वस्त्र उतार कर काजल की ओर बढ़ाया। गुरुजी अब सिर्फ़ धोती पहने हुए थे। उनका बालों से भरा हुआ लंबा चौड़ा ऊपरी बदन नंगा था। उनको इस हालत में देखकर कोई भी लड़की डर जाती।

गुरुजी--काजल बेटी, समय बर्बाद मत करो। शुभ घड़ी निकली जा रही है।

काजल हक्की बक्की होकर खड़ी थी। एक मर्द के सामने कपड़े उतारने की बात से वह स्तब्ध रह गयी थी और उसकी आवाज़ ही बंद हो गयी। कुछ पल बाद उसकी आवाज़ लौटी l

काजल--लेकिन गुरुजी, मेरा मतलब......मैं इसको कैसे पहन सकती हूँ? ये तो सिर्फ़ एक शॉल जैसा कपड़ा है।

गुरुजी--काजल बेटी, तुम कोई पार्टी में नहीं जा रही हो जिसके लिए तुम सज धज के ड्रेस पहनो। ये यज्ञ है। तुम्हें इसके नियमों का पालन करना ही होगा। जानती हो बहुत से यज्ञ ऐसे होते हैं जिनमें भक्त को पूर्ण नग्न होकर भाग लेना होता है। पूरे मन से ही भक्ति होती है। लिंगा महाराज के सामने शरम के लिए कोई स्थान नहीं है। बेवकूफ़ लड़की।

गुरुजी का स्वर लोहे की तरह कठोर था। उसके बाद काजल की एक भी शब्द बोलने की हिम्मत नहीं हुईl

गुरुजी--रश्मि, इसको अपने अंतर्वस्त्र उतारने की ज़रूरत नहीं। तुम इसकी कमर में इसे लुँगी की तरह लपेट दो।

मैंने काजल को देखा और उसकी आँखें कहानी को बयान कर रही थीं। अपना सर झुकाए वह पूजा घर के कोने में चली गयी और हमारी तरफ़ पीठ करके कमीज उतारने लगी। अपने हाथ सर के ऊपर उठाकर उसने कमीज उतार दी । उसके बाद वह सलवार का नाड़ा खोलने लगी और उसको उतारने के लिए नीचे झुकी तो उसकी छोटी-सी सफेद पैंटी से ढकी हुई गोरी गांड पीछे को उभर कर इतनी उत्तेजक लग रही थी कि एक पल के लिए मुझे लगा की गुरुजी ने अपने लंड को हाथ लगाया।

काजल ने जल्दी से भगवा वस्त्र लपेटने की कोशिश की लेकिन कुछ पल के लिए सिर्फ़ ब्रा पैंटी में उसका बदन गुरुजी को दिख गया... मैं उसके पास गयी और गुरुजी के भगवा वस्त्र को उसकी कमर में नाभि से घुटनों तक लुँगी जैसे लपेट दिया और नाभि के नीचे कपड़े में गाँठ लगा दी। सच कहूँ तो मुझे लगा की अगर वह ब्रा पैंटी में रहती तो कम अश्लील लगती पर अब इस पारदर्शी कपड़े को कमर में लपेटकर वह बहुत मादक लग रही थी और उसके सफेद अंतर्वस्त्र और भी ज़्यादा चमक रहे थे।

शरम से नजरें झुकाए वह गुरुजी के सामने आ खड़ी हुई. उसकी जवान चूचियाँ ब्रा के अंदर हिल डुल रही थीं और ब्रा कप से बाहर आने को मचल रही थीं। उसको एक मर्द के सामने ऐसे अधनंगी देखकर ख़ुद मैं असहज महसूस कर रही थी। उसका जवान खूबसूरत बदन इतना मनमोहक लग रहा था कि मुझे भी ईर्ष्या हो रही थी। पतली-सी ब्रा में उसकी तनी हुई चूचियाँ, सपाट गोरा पेट, पतली कमर और फिर बाहर को फैलती हुई गोल घुमावदार गांड बहुत लुभावनी लग रही थी।

मैंने गुरुजी को धागा लाकर दे दिया और वह झुककर काजल की कमर में पवित्र धागा बाँधने लगे। काजल इतना शरमा रही थी की गुरुजी के अपनी नंगी कमर को छूने से वह भी आगे को झुक जा रही थी। धागा बाँधकर जब गुरुजी सीधे खड़े होने लगे तो उनका सर काजल की ब्रा में क़ैद चूचियों से जा टकराया क्यूंकी वह भी आगे को झुकी हुई थी। गुरुजी ने आँखें ऊपर को उठाकर देखा और काजल की अनार जैसी चूचियाँ ठीक उनकी हवसभरी आँखों के सामने थीं । काजल बहुत शरमा गयी और गुरुजी ने सॉरी बोल दिया लेकिन मुझे उनकी आँखों में कुछ और ही दिखा।

गुरुजी--रश्मि, चंदन की थाली मुझे दो।

मैंने चंदन की थाली गुरुजी को दे दी । उन्होंने अपनी आँखें बंद कर लीं और मंत्र पढ़ने लगे। काजल सर झुकाए फ़र्श को देख रही थी, वह एक मर्द के सामने सिर्फ़ ब्रा पैंटी में खड़े होकर बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रही होगी। कहने को तो उसकी कमर में भगवा वस्त्र लिपटा हुआ था पर उसका कुछ फायदा नहीं था क्यूंकी पारदर्शी कपड़ा होने से उसकी छोटी-सी सफेद पैंटी साफ़ दिख रही थी। अब गुरुजी ने आँखें खोली और काजल के माथे में चंदन का टीका लगाया।

गुरुजी--अब मेरी तरह ज़ोर से मंत्र पढ़ो।

मंत्र पढ़ते हुए गुरुजी झुके और काजल की नाभि में चंदन का टीका लगाया और फिर पंजों पर बैठकर काजल की टाँगों से कपड़ा हटाकर उसकी चिकनी जांघों पर भी टीका लगा दिया।

गुरुजी--काजल बेटी अब हम साथ-साथ हवन करेंगे। हवन हमारे शरीर के अंदर के दोषों को दूर करने की प्रक्रिया है। अगर तुमने इसे ठीक से पूरा कर लिया तो तुम अपनी पढ़ाई में आने वाली बाधाओं को सफलतापूर्वक पार कर सकोगीl

गुरुजी--मेरे पास आओ बेटीl

काजल गुरुजी के पास चली गयी और हाथ जोड़कर अग्निकुण्ड के पास खड़ी हो गयी। उसका करीब-करीब नंगा बदन अग्नि की लपटों से लाल लग रहा था।

गुरुजी--लिंगा महाराज के सामने कुछ भी मत छिपाओ. माध्यम के रूप में मैं भी उसका ही एक भाग हूँ। मुझे बताओ क्या तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड है?

काजल शरमा गयी और कुछ देर तक चुप रही। गुरुजी ने धैर्यपूर्वक उसके जवाब देने का इंतज़ार किया।

काजल--हाँ गुरुजीl

गुरुजी--हम्म्म ।मेरा अंदाज़ा है कि जबसे तुम उससे मिली हो ज़्यादातर तब से ही अपनी पढ़ाई से तुम्हारा ध्यान भटका है।

काजल ने हाँ में सर हिला दिया।

गुरुजी--तुम दोनों कब-कब मिलते हो? वह कॉलेज में है क्या?

काजल--हाँ गुरुजी, वह कॉलेज में है। हम हफ्ते में दो तीन बार मिलते हैं।

गुरुजी--तुम उसे कब से जानती हो?

काजल--जी, तीन चार महीने से।

गुरुजी--तुम दोनों का सम्बंध कितनी दूर तक गया है?

काजल ने आँखें झुका ली और फ़र्श को देखने लगी। ये देखकर मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था कि कैसे गुरुजी बड़ी चालाकी से काजल की पर्सनल बातों को उगलवा रहे हैं।

गुरुजी--काजल बेटी, तुमने कोई पाप नहीं किया है जो तुम गिल्टी फील कर रही हो। मुझे बताओ कितनी दूर तक गये हो?

एक लड़की के लिए ये एक मुश्किल सवाल था क्यूंकी उसको बताना था कि उसने अपने बॉयफ्रेंड को अपने साथ क्या-क्या करने दिया है।

काजल--गुरुजी, हमने साथ-साथ समय बिताया है, मेरा मतलब! बस इतना ही, इससे ज़्यादा कुछ नहीं।

गुरुजी--क्या उसने तुम्हारा चुम्बन लिया है?

गुरुजी ने अब सीधे-सीधे पूछना शुरू कर दिया । कुछ पल तक चुप रहने के बाद काजल ने जवाब दिया।

काजल--मैंने इन चीज़ों से अपने को बचाने की कोशिश की । लेकिन गुरुजी मेरा विश्वास कीजिए, परिस्थितियों ने मुझे इतना कमज़ोर बना दिया की...!

गुरुजी--हम्म्म ।तुम लोग अक्सर कहाँ समय बिताते हो?

काजल--जी, वाटरवर्ल्ड या लुंबिनी पार्क में।

मैं तो बाहर से आई थी इसलिए मुझे इन जगहों के बारे में नहीं पता था। लेकिन लगता था कि गुरुजी इन जगहों को जानते थे।

गुरुजी--लुंबिनी पार्क! वह तो खराब जगह है। ख़ासकर शाम को तो वहाँ आवारा लोगों का जमावड़ा रहता है।

काजल--लेकिन गुरुजी हम वहाँ शाम को कभी नहीं गये। हम स्कूल के बाद 3-4 बजे वहाँ जाते थे।

गुरुजी--अच्छा अब ये बताओ की परिस्थितियों ने तुम्हें कमज़ोर कैसे बना दिया? बेटी, कुछ भी मत छिपाना। लिंगा महाराज के सामने दिल खोलकर सब कुछ सच बताना।

काजल को अब पसीना आने लगा था और वह कुछ गहरी साँसें लेने लगी थी जिससे उसकी सफेद ब्रा में चूचियाँ कुछ ज़्यादा ही उठ रही थीं।

काजल--गुरुजी, शुरू में तो सिर्फ़ ये होता था कि पार्क बेंच में बैठकर हम बातें करते थे और घूमते समय एक दूसरे का हाथ पकड़ लेते थे बस इतना ही। लेकिन जैसे-जैसे दिन गुज़रते गये मुझे उसके छूने से अच्छा लगने लगा और मेरी भी इच्छा होने लगी की वह मुझे छुए. एक दिन हल्की बूंदाबादी हो रही थी और हम दोनों एक छाता के नीचे चल रहे थे। पार्क में जिस बेंच में हम अक्सर बैठते थे उस दिन उसमें एक जोड़ा बैठा हुआ था। हम भी उनके बगल में बैठ गये। उस दिन मैं अपने बॉयफ्रेंड को रोक नहीं पाई लेकिन ये पूरी तरह से मेरी ग़लती नहीं थी।

गुरुजी--काजल बेटी, जो हुआ सब कुछ बताओ. ये भी तुम्हारे 'दोष निवारण' की एक प्रक्रिया है।

कहानी जारी रहेगी

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