Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.
You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.
Click hereऔलाद की चाह
CHAPTER 7-पांचवी रात
योनि पूजा
अपडेट-24
लिंग पूजा-6- ' लिंगा जागरण क्रिया"
मैं अब लिंगा से द्रव्य को चूस रही थी। अब ऐसा लग रहा था कि गुरुजी भी अपनी भाव भंगिमाओं पर थोड़ा नियंत्रण खो बैठे हैं। मेरे सुंदर बदन के हर हिस्से से छेड़छाड़ करने के बाद ऐसा लगता था कि उनकी साँसे तेज हो गयी थी और वह खुद भी गहरी साँसें लेने लगे थे और जब वह मेरे पास हुए तो उनका खड़ा लंड मेरे से छू गया जिससे मुझे लगा उनका लंड धोती में खड़ा हो गया था। मंत्र पढ़ते हुए अब उनकी आवाज भी कुछ धीमी हो गयी थी।
अब गुरुजी ने मेरी चूचियों पर लिंगा को घुमाना शुरू किया। मेरी आँखें बंद थीं शायद इसलिए गुरुजी को ज़्यादा जोश आ गया। उन्होंने अपनी चार शिष्यों की मौजूदगी को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए लिंगा से अपना दायाँ हाथ हटा लिया और मेरी बायीं चूची को पकड़ लिया।
मैं--उम्म्म्मम......
उत्तेजना की वजह से। मेरे मुँह से सिसकारी निकल गयी। मैं लिंगा प्रतिरूप को चूस रही थी और साथ में कस के आँखें बंद की हुई थी, मुझे लगा अब गुरुजी हद पार कर रहे हैं, खुलेआम वह जिसे बेटी कहकर बुला रहे थे उस महिला की (यानी मेरी) चूची दबा रहे हैं। वह अपनी हथेली से मेरी चूची की गोलाई और सुडौलता को महसूस कर रहे थे और खुलेआम ऐसा करना मुझे बहुत इतना अश्लील महसूस हो रहा था। गुरुजी इस परिस्थिति का अनुचित और पूरा लाभ उठा रहे थे और मेरे कोमल बदन को महसूस कर रहे थे। लेकिन जल्दी ही गुरुजी ने अपनी भावनाओं पर काबू पा लिया और फिर ज़ोर से मंत्र पढ़ते हुए दोनों हाथों से लिंगा पकड़कर मेरी चूचियों पर घुमाने लगे। अंत में गुरुजी ने मेरी चूचियों को लिंगा के आधार से ऐसे दबाया जैसे उनपर अपनी मोहर लगा रहे हों।
गुरुजी--रश्मि बेटी, अपनी आँखें खोलो। तुम्हारी 'जागरण क्रिया का ये भाग' पूरा हो चुका है। अपने मुँह से लिंगा निकाल लो।
मैं: जी गुरूजी!
मैंने लिंगा प्रतिरूप मुँह से निकाल लिया ।
गुरु-जी ने मेरे से वह लिंग प्रतिकृति ली जिसे मैं चूस रही थी और उसे मेरे सिर, होंठ, स्तन, कमर और मेरी जाँघों पर छुआ और उसे फूलों से सजाए गए सिंहासन जैसी संरचना पर रखा। उन्होंने कुछ संस्कृत मंत्रों के उच्चारण की शुरुआत की और इसे वहाँ रखने के लिए एक छोटी पूजा की। लिंग स्थापना की पूजा के दौरान हम सब प्रार्थना के रूप में हाथ जोड़कर प्रतीक्षा कर रहे थे।
गुरुजी--रश्मि बेटी, अब तुम्हे साक्षात लिंग पूजा करनी है । ठीक है, अब मैं शुरू करता हूँ। " लिंगम पूजा की रस्म शुरू करने के लिए तैयार होते ही गुरूजी स्टूल पर बैठ गए।
ये सुनकर मैं हक्की बक्की रह गयी और उलझन भरा चेहरा बनाकर गुरुजी को देख रही थी। स्वाभाविक था। मैं हैरान थी।
गुरूजी: रश्मि अब तुम बैठ जाओ और जिस प्रकार तुमने लिंगा के प्रतिरूप की पूजा की थी उसी प्रकार अब साक्षात लिंग की पूजा करनी होगी और फिर लिंग को वैसे ही जागृत करना होगा जैसे मैंने योनि को जागृत किया है और साथ-साथ इस पुस्तक से मन्त्र पढ़ कर राजकमल बोलता रहेगा तुम उन्ही दोहराती रहना ।
मैंने अपनी आँखें फर्श की ओर गिरा दी और गुरु-जी के अगले निर्देश की प्रतीक्षा करने लगी।
गुरु-जी: रश्मि! अब आप लिंग पूजा करेंगे। आप मन में ॐ नमः लिंग देव मन्त्र का जाप करते रहना
तब गुरुजी ने मुझे लिंग पूजा की पूजा संक्षेप में विधि समझाई । मैंने देखा गुरूजी की धोती में उनका लंड खड़ा हो गया था । पूजा विधि के अनुसार, सबसे पहले गुरुजू के लिंग का अभिषेक विभिन्न सामग्रियों से करना है अभिषेक के लिए दूध, गुलाब जल, चंदन का पेस्ट, दही, शहद, घी, चीनी और पानी का आमतौर पर उपयोग किया जाता है।
अब गुरुजी ने अपनी धोती उतार कर फ़र्श पर फेंक दी जो मेरे पास आकर गिरी। उस नारंगी रंग की धोती में मुझे कुछ गीले धब्बे दिखे जो की गुरुजी के प्री-कम के थे। उन्होंने नीचे कोई लंगोट या कच्चा भी नहीं पहना हुआ था उनके तने हुए मूसल लंड की मोटाई देखकर मेरी सांस रुक गयी।
हे भगवान! कितना मोटा है! ये तो लंड नहीं मूसल है मूसल! मैंने मन ही मन कहा। मैं बेहोश होने से बची क्योंकि मुझे एहसास था कि गुरूजी का लंड बड़ा है। मैं सोचने लगी की गुरुजी की कोई पत्नी नहीं है वरना वह हर रात को इस मस्त लंड से मज़े लेती। मैं गुरुजी के लंड से नज़रें नहीं हटा पा रही थी, इतना बड़ा और मोटा था, कम से कम 8--9 इंच लंबा होगा। आश्रम आने से पहले मैंने सिर्फ़ अपने पति का तना हुआ लंड देखा था और यहाँ आने के बाद मैंने दो तीन लंड देखे और महसूस किए थे लेकिन उन सबमें गुरुजी का लिंग ही सबसे बढ़िया था। शादीशुदा औरत जो की कई बार लंड ले चुकी है, वह ही ये जान सकती है इस मूसल जैसे लंड के क्या मायने हैं। गुरुजी के लंड को देखकर मैं स्वतः ही अपने सूख चुके होठों में जीभ फिराने लगी, लेकिन जब मुझे ध्यान आया की मैं कहाँ हूँ तो मुझे अपनी बेशर्मी पर मुझे बहुत शरम आई. मुझे डर लगा कि गुरूजी का ऐसा तगड़ा और बड़ा लिंग तो योनि फाड़ ही डालेगा।
अब गुरुजी ने अपनी टाँगे फैला दीं । मेरे साथ-साथ गुरूजी के शिष्य भी गुरूजी का लंड देख चकित थे ।
उनके लिंग के नीचे एक कटोरा रखा था ।
गुरुजी--देर मत करो। यज्ञ का शुभ समय निकल ना जाए. राजकमल मन्त्र बोलो!
राजकमल मन्त्र बोलता रहा और मैं वैसे-वैसे करती रही
पहले पूजा में मैंने जल अभिषेक, फिर गुलाब जल अभिषेक, फिर दूध अभिषेक के बाद दही अभिषेक, फिर घी अभिषेक और शहद अभिषेक अन्य सामग्री के अलावा अंतिम अभिषेक मिश्रित पदार्थ से किया।
सभी सामग्री, पदार्थ गुरूजी के लिंग से बह कर उस कटोरे में एकत्रित हो गए ।
अभिषेक की रस्म के बाद, गुरूजी के लिंग को बिल्वपत्र की माला से सजाया गया। ऐसा माना जाता है कि बिल्वपत्र लिंग महाराज को ठंडा करता है।
उसके बाद लिंग पर चंदन या कुमकुम लगाया तो मैंने लिंग पर हाथ लगाया । गुरूजी का लिंग मेरे हाथ की उंगलियों में पूरा नहीं आ रहा था।
जिसके बाद दीपक और धूप जलाई। लिंग को सुशोभित करने के लिए उपयोग की जाने वाली अन्य वस्तुओं में मदार का फूल चढ़ाया गया जो बहुत नशीला होता है और फिर, विभूति लगायी गयी विभूति जिसे भस्म भी कहा जाता है। विभूति पवित्र राख है जिसे सूखे गाय के गोबर से बनायीं गयी थी।
पूजा काल में गुरु जी और उनके शिष्य अन्य मंत्रो के साथ ॐ नमः लिंग देव मंत्र का जाप करते रहे।
गुरु-जी: ग्रेट बेटी! अब हम मुख्य पूजा शुरू करेंगे। प्रार्थना के लिए हाथ जोड़ो। ध्यान केंद्रित करना।
फिर जैसे ही उदय ने आग में कुछ फेंका, मैंने सिर हिलाया और आग और तेज होने लगी। पिन ड्रॉप साइलेंस था। उच्च रोशनी के साथ यज्ञ अग्नि अब पूरे कमरे में और प्रत्येक के चेहरे पर एक अजीब चमक प्रदान कर रही थी।
संजीव: हे लिंग महाराज, कृपया इस अंतिम प्रार्थना को स्वीकार करें और इस महिला को वह दें जो वह चाहती है! जय लिंग महाराज! बेटी, अब से वही दोहराना जो मैं कह रहा हूँ।
कुछ क्षण के लिए फिर सन्नाटा छा गया। मैं थोड़ा कांप रही थी और गुरूजी के बड़े लिंग के आकार के कारण मुझे एक अनजाना डर महसूस हो रहा था।
संजीव: हे लिंग महाराज!
मैं: हे लिंग महाराज!
संजीव: मैं स्वयं को आपको अर्पित करता हूँ...
मैं: मैं खुद को आपको पेश करती हूँ...
संजीव: मेरा मन, मेरा शरीर, मेरी योनि...तुम्हें सब कुछ।समर्पित करता हूँ ।
मैं: मेरा मन, मेरा शरीर, मेरी यो... योनि... आपको सब कुछ...समर्पित करती हूँ ।
संजीव: हे लिंग महाराज! कृपया इस योनि पूजा को स्वीकार करें और मुझे उर्वर बनाएँ और मेरे गर्भ को एक बच्चे के रूप में आशीर्वाद दें...
मैं: हे लिंग महाराज कृपया इस योनि पूजा को स्वीकार करें और मुझे उपजाऊ बनाएँ और मेरे गर्भ को एक बच्चे के रूप में आशीर्वाद दें...
संजीव: मैं, रश्मि सिंह पत्नी अनिल सिंह, इस प्रकार आपके पवित्र आशीर्वाद के लिए आपके सामने आत्मसमर्पण कर रहा हूँ। कृपया मुझे निराश न करें। जय लिंग महाराज!
मैं: मैं, रश्मि सिंह, अनिल सिंह की पत्नी-इस प्रकार आपके पवित्र आशीर्वाद के लिए खुद को आपके सामने आत्मसमर्पण कर रही हूँ। कृपया मुझे निराश न करें। जय लिंग महाराज!
उदय: मैडम अब आप लिंग को जागृत करो ।
मैं अभी भी फर्श पर घुटनों के बल थी, मैं समझ गयी और तब तक आगे बढ़ी जब तक कि मेरे घुटने लगभग स्टूल को छू नहीं गए। यह एक अविश्वसनीय अहसास था, गुरूजी की टांगो के बीच वहाँ बैठे हुए मैं उनके बीच बैठी थी, मेरा मुँह गुरूजी के बड़े कठोर लंड से मात्र इंच भर दूर था। उदय ने मुझे गर्म दूध का गिलास दिया और मैंने उसमें अपनी उँगलियाँ डुबोईं, फिर उन्हें गुरूजी के स्तंभित लिंग की नोक के ठीक ऊपर रखा। गुरूजी के बैंगनी लंडमुंड पर टपकने देने से पहले मैंने ने दूध की धाराओं को निर्देशित करने के लिए अपनी उंगलियों को मोड़ा। फिर मैंने इसे कुछ बार दोहराया, अपनी सांसों के नीचे अश्रव्य प्रार्थनाओं को फुसफुसाते हुए।
मैंने पांच बार ऐसा किया और फिर हाथों को नीचे किया और उन्हें लंड की लम्बाई के चारों ओर लपेट दिया और आगे हो होकर लिंग को चूमा और फिर आगे होकर लिंग पर अपने स्तनों और चुचकों को चुमाया, उसके बाद लिंग पर अपनी नाभि लगाई और उसके बाद अपनी घुटनो पर खड़ी हो योनि और फिर जांघो को लिंग पर लगाया और फिर घूम कर लिंग अपनी नितम्बो और फिर गांड को लिंग पर लगाया और गुरूजी के गोद में पीठ कर बैठ गयी । मेरी इस हरकत से गुरूजी का लिंग जो अभीतक आधा खड़ा था अब पूरा कठोर हो गया ।
ये बिलकुल लैप डांस जैसा था । जिसमे नाचने वाली अपने बदन की लिंग से धीरे-धीरे छुआ कर उत्तेजित करती है । मैं वैसे ही अपनी गांड और पूरा बदन हिला कर अलट कर पलट कर गुरूजी के साथ चिपक रही थी । अपने बदन अपने स्तन, अपनी गांड, अपनी योनि को उनके बदन, लिंग पर मसल और रगड़ रही थी। रंडीपैन की कोई सीमा ऐसी नहीं थी जिसे मैंने पार नहीं किया था । मुझे शर्म तो बहुत आ रही थी परन्तु मेरी स्थिति ऐसी थीऔर मैं इसमें इतना आगे आ चुकी थी की मेरे पास अब कोई विकल्प नहीं था ।
मेरी योनि पूरी गीली हो गयी थी और मेरे चूचक तन गए थे । स्वाभिक तौर पर मैं भी अब उत्तेजित थी ।और फिर जब मुझे लगा गुरूजी का लिंग पूरी तरह से कठोर है मैं घूमी एक तेज़ गति में मैंने अपना सिर
उनके लिंग पर गिरा दिया और मेरा गर्म मुँह गुरूजी के लंड के धड़कते लंडमुंड को ढँक रहा है।
गुरु जी भी अपना नियंत्रण खो बैठे थे और जोर से हांफने लगे क्योंकि गुरूजी के लिंग के चारों ओर उन्हें मेरे कोमल मखमली होंठों की रमणीय अनुभूति हुई। मैंने कई बार बेकाबू होकर सफलतापूर्वक उनके पूरे लिंग को अपने मुँह में दबा लिया। धीरे से उनके लिंग को चूसना शुरू कर दिया। राजकमल के मन्त्र उच्चारण समाप्त हो गया ।
गुरूजी: जय लिंगा महाराज!
मैं समझ गयी अब मेरे पास एक मिनट का समय और है और अपनी एक हाथ की उंगलियों के साथ लंड के शाफ्ट के चारों लपेट लिया और मुँह ऊपर और नीचे पंप करने लगी, जबकि उसके दूसरे हाथ ने गुरूजी के नडकोषो को सहलाया और उनकी मालिश की। मैंने अपने मुँह का गुरूजी के लंड पर कुशलता से इस्तेमाल किया, सिर को निगल लिया और लयबद्ध गतियों में उसे मुँह से अंदर और बाहर पंप किया।
मुझे लगता है कि गुरूजी उस समय सातवें आसमान पर थे और मैं खुश थी की आखिरकार मैंने गुरूजी के लिंग को जागृत कर दिया है और उसे चूस लिया है, यह एक अद्भुत अनुभव था।
गुरूजी: जय लिंगा महाराज!
गुरूजी: "लिंगम जीवन के बीज पैदा करता है, सभी जीवन शक्ति का स्रोत।" उसने मेरी ओर देखे बिना कहा, गुरूजी अभी भी अपने लंड को सहला रहे थे। गुरूजी के लंड पर लगे पदार्थ का स्वाद मेरे मुँह में था जो द्रव्य से मिलता जुलता था और मुझे अच्छा लग रहा था । और मेरी आँखे शर्म और आननद से बंद हो गयी थी ।
गुरुजी--रश्मि तुम्हे बहुत बढ़िया किया केवल बढ़िया नहीं बल्कि आजतक यहाँ जितनी भी महिलाये आयी हैं उनसे बेहतर किया, अपनी आँखें खोलो। 'जागरण क्रिया' पूरी हो चुकी है। अपने मुँह से लिंगा निकाल लो।
मैं वहीं हांफते हुए बैठ गयी और लिंग को मुँह से निकला लिया । मैंने देखा गुरूजी अब अपने लिंग पर हाथ फिरा रहे थे। मैंने एक बार ऊपर देखा, एक चुटीली मुस्कराहट गुरूजी की चेहरे पर थी ।
कहानी जारी रहेगी