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Click hereमहारानी देवरानी
अपडेट 38
प्यार की सुबह
आज का सवेरा बलदेव और देवरानी के लिए एक नई आस ले कर आया था और खास कर के ये सवेरा देवरानी के जीवन को जो हमेशा से अँधेरे में रही और प्यार को तरसती रही, उसका हक दिलाने के लिए आया था।
रात भर बलदेव इतना खुश था कि उस रात इसे ठीक से नींद नहीं आयी। वह हर घंटे उठ कर बैठ जाता था। उसका दिल करता है कि वह देवरानी से अभी जा कर मिले। वह कभी उठ जाता था, तो कभी बैठता, कभी लेटता, कभी टहलने लगता है। रात करवाते बदलते कैसे भी निकलती है और सुबह होते ही वह खुशी के मारे जल्दी-जल्दी स्नान कर लेता है।
उधर देवरानी जिसका भी हाल कुछ बलदेव-सा वह था वह अपने बिस्तर पर रात भर इधर से उधर पलटती रही और जब भी आखे बंद करती उसे बलदेव हे दिखाई पड़ता है। (मन र वह इस बात को अपने दिल से मान लेती है कि बलदेव ही उसका पहला और आखिरी प्यार है।
देवरानी: (मन मे) मुझे ऐसा एहसास हुआ है कि भगवान में पहली बार मेरे दिल में प्यार डाला है और आज 35 साल की उम्र में मुझे प्यार हुआ भी तो अपने पुत्र से हुआ है ।
वैसे मेरे दिल को शेर सिंह ने भी छू लिया था जिसे मैं पहला प्यार समझ रही थी पर बलदेव ने अपनी वफ़ादारी और मेरे प्रति सम्मान और स्नेह दिखा कर मेरे दिल को मरोड़ दिया है। "
देवरानी यही सब सोच कर उठती है और नहाने चली जाती है।
देवरानी: (मन मे)"अब इस 35 साल के अधेड़ उमर की के एक बच्चे की माँ से 18 साल का जवान लड़का प्यार करता है। मैं और क्या मांग सकती हूँ भगवान से!"
नहा धो कर आ कर अपने माथे पर सिन्दूर और फिर गले में मंगलसूत्र पहन लेती है और खूब अच्छे से तैयार हो कर पहले अपने कक्ष के मंदिर में पूजा करने लगती है।
"भगवान मुझे याद है। मैंने अपने 10 दिन के व्रत की मन्नत मांगी थी और गरीबों को जिंदगी भर खिलाने का संकल्प किया था ।"
"भगवान मैंने बलदेव को अपने दिल से अपना लिया है।, कुछ ऐसा करो की वह गुस्सा छोड़ कर मेरे पत्र पढ़ कर मेरे पास भागा चला आए और मेरे और बलदेव के प्रेम के कारण से कुछ गलत ना हो। भगवान, अगर प्रेम करना गलत है और आपको मेरी ख़ुशी की परवाह नहीं ।तो ये तो गलत होगा मेरे साथ । अगर आपको लगता है कि मुझे खुश रहने का अधिकार है, तो मेरे साथ या बलदेव के साथ कुछ भी गलत नहीं होगा, अगर गलत हुआ कुछ तो मैं तेरे बनाये सब नियम भूल जाउंगी और धर्म पर से, मेरा विश्वास उठ जाएगा।"
"अगर सब कुछ सही रहा मेरा और बलदेव का जीवन अच्छा कटा तो भगवान् मैं भी अपना वादा नहीं तोड़ूंगी । पूरे 10 दिन का व्रत रखूंगी और जीवन भर गरीबों के लिए अच्छा करती रहूंगी ।"
देवरानी फिर घंटी बजा के प्रसाद ले कर घर में बांटने लगती है। फ़िर कमला को प्रसाद दे कर कहती है कि बाकी का प्रसाद राज दरबार और गाओ में बटवा दे।
बलदेव भी स्नान कर तैयाए हो कर सबसे पहले अपनी कलम उठाता है और एक कागज़ के टुकड़े पर गुलाब का पानी छिड़क देता है और उससे वह कागज़ गुलाबी रंग का हो जाता है और वह कुछ देर उस कागज़ को सुखाने के पश्चात उस पर बलदेव धड़ा धड़ लिखना शुरू करता है और अपने पत्र को छुपा कर कमला को देने के लिए रख देता है।
जैसा वह बाहर निकलता है और देखता है कि देवरानी अपने कक्ष के द्वार पर खड़ी अपने बाल सुखा रही थी, बलदेव उसे देखता रह जाता है।
उसकी साडी अस्त व्यस्त थी और उसके दूध का ऊपर हिसा और नाभि की गहरी घाटी साफ दिख रही थी । तभी सामने से राजपाल आ जाता है। और वह बलदेव को देख बोलता है ।
राजपाल: अरे तुम उठ गये बेटा, आओ बैठो यहाँ।
वही बीच आंगन में कुर्सी पर राजपाल उसे बैठा देता है। और देवरानी ने इस बात को भाप लीया था कि बलदेव उसे खा जाने वाली नजरों से देख रहा था और उसके देवरानी के करीब आने से पहले ही उसका बाप उससे राष्ट्र की सुरक्षा की बात करने लगता है। पर राजपाल की पीठ की ओर खड़ी देवरानी बलदेव को साफ दिख रही थी।
बलदेव सिर्फ अपने पिता की हर बात में हाँ मिल रहा था और उसकी नजर अपनी माँ पर थी।
देवरानी: (मन मैं) बेशरम लड़का बाप के सामने माँ से मिलने के लिए तड़प रहा है। बलदेरव की नजरे उसके दूध और नाभि पर टिकी हुई थी।
देवरानी अब अपने हाथों से बालो को झाड़ते हुए थोड़ा ज़्यादा हिलती है। जिस से उसके स्तन भी हिलते है और उसका पूरा पल्लू नीचे गिर जाता है।
अब बलदेव को देवरानी के बड़े वक्ष और सुंदर पेट और नाभि साफ दिख रहे थे ।
देवरानी: (मन मे) ये कैसे मुझे देख रहा हूँ। जैसा खा ही जायेगा। " "देखे भी क्यू ना बेचारा! इतनी सजी सवरी भी तो हूँ उसके लिए. और आज ऐसे कपडे भी तो उसके लिए ही पहने हैं की वह देख सके" और मुस्कुरा देती है।
बलदेव के इस तरह देखने से देवरानी भी गरम हो रही थी और वह बलदेव को भड़काने के लिए दिवाल से चिपक कर खड़ी हो जाती है और अपने दूध को ऊपर उठा लेती है और बलदेव को एक कातिल अंदाज़ से देखती है।
एक हाथ उठाने से उसके लाल ब्लाउज और कस जाता हैं और उसके ब्लाउज के नीचे कुछ जगह बन जाती है।, उसके पेट पर एक धारी बन जाती है और उसका पेट किसी रसगुल्ले की तरह चिकना था।
बलदेव: जी पिता जी आप सही कह रहे हैं।
बलदेव अपनी धुन में अपनी प्रेमिका माँ को ताड़ रहा था और उसका बाप उसे सेना और युद्ध की बात समझा रहा था
एक दुसरे को ऐसे देख के देवरानी और बलदेव दोनों गरम हो रहे थे और तभी देवरानी अपना सर के लंबे बालो को अपने दोनों हाथ में उठा कर बाँधने लगती है और अपने बड़े वक्ष को बलदेव की तरफ निकाल लेती है और बड़े मादक अंदाज से उसकी आँखों में देखती है।
देवरानी: (मन में) आ कर पी लो दूर से क्या मिलेगा।
बलदेव: (मन में) हाय क्या माल हो तुम माँ कसम से! दिन रात पेलूँगा एक बार हाँ कर दो!
देवरानी: (मन में) बदमाश! जरूर मुझे चोदने के सपने देख रहा है।, हाय राम! मेरा बेटा मेरे बारे में ये कैसा सोच रहा है? उई! और वह सीधी खड़ी हो जाती है।
बलदेव: (मन में) कैसे सीधी हो गई जैसे उसने कुछ किया ही ना हो।
देवरानी: (मन में ) अगर इसका बाप ना होता तो इसने अब तक तो मुझे नंगी कर दिया होता।
उसके अंदर कहीं ना कहीं, शर्म अब भी थीऔर वह वहाँ से पलट कर जाने लगती है। कुछ चार कदम चलने पर वह पीछे मुड़कर देखती है। देवरानी को पूरा यकीन था कि बलदेव की हवस भारी आखे उसके नितम्बो को जरूर घूर रही होंगी ।
वो मुड़ती है। तो बलदेव अपनी जुबान से अपने होठ चाट रहा था और उसका दूसरा हाथ अब उसकी धोती के ऊपर से उसके लौड़े पर था, देवरानी ने कनखियों से सब देख लीया था । वह बस मुस्कुराती है अपनी कक्षाकी ओर जाने लगती है।
कुछ देर बाद वहा कुर्सी पर बैठ कर बात करने के बाद बलदेव के पिता राजा राजपाल चले जाते हैं। पर अपने खड़े लंड को छुपाने के लिए बलदेव थोड़ी देर वहीं बैठा रहा तभी वहाँ आ रही कमला को आता देख।
बलदेव: आओ कमला!
कमला: जी युवराज
बलदेव चुपके से उसके हाथ में वह प्रेम पत्र दे देता है और मुस्कुराता है।
कमला: मैं सब कुछ कर तो रही हूँ पर इसका इनाम क्या मिलेगा मुझे! युवराज?
बलदेव: तुम्हें इसका इनाम हम जरूर देंगे और कमला के कानों के पास जा कर बोला "जिस दिन तुम्हारी महारानी के महाराजा बन गए तब"
बलदेव: पानी पिलाना कमला!
कमला रसोई के तरफ जाते हुए खिड़की से देवरानी के कक्ष में आवाज देती है। "महारानी दरवाजा खोलिये और बाहर आओ. अब आपके भागने से काम नहीं चलेगा।"
वो देवरानी को छेड़ते हुए कहती है। देवरानी सोचती है कि ये कमला उसे डरपोक समझ रही है।
देवरानी: (मन में) उसे बताना पड़ेगा में पारस की रानी हूँ।
देवरानी कक्ष से बाहर निकलती है तो सामने बलदेव को वही अपने लंड पर हाथ रखे बैठा पाती है।
देवरानी: (मन मैं) इसे तो शांति ही नहीं है । 24 घंटे खड़ा ही रहता है।
तभी अचानक से बाहर से राजपाल वापस आ जाता है।
राजपाल: अरे बेटा मैं तुम्हें एक बात तो बताना भूल गया कि अगर सैनिक कम हो और शत्रु ज्यादा हो तो क्या करना चाहिए!
देवरानी भी चल कर अपने बेटे के पास आ रही थी वह हल्का रुक जाती है।
पर इन सब से बेपरवाह कमला ग्लास और जग में पानी लिए रसोई के बाहर आती है और राजा राजपाल और बलदेव के पास झुक कर जग से गिलास में पानी भरने लगती है।
कमला ने जल्दी से बलदेव के दिये पत्र को अपने ब्लाउज में छुपाया था पर जैसे वह पानी भरना शुरू करती है। उसका ब्लाउज ढीला होता है और बलदेव का प्रेम पत्र बाहर गिर जाता है।
अब राजपाल और बलदेव के सामने वह पत्र गिर जाता है।
राजपाल: ये क्या है। कमला
कमला: उह वह ये वो...
कमला घबरा जाती है।
उसका घबराया हुआ चेहरा देख राजपाल का शातिर दिमाग में कुछ गड़बड़ लगती है।
पानी पी रहा बलदेव पानी पीते हुए सरक जाता है और वह आँखे फाड़े देख रहा था ।
बलदेव (मन में) "हे! भगवान बचा लो!"
दूर खड़ी देवरानी (मन में) "अरे कृष्ण कन्हाई. बचा लो ले और घबरा कर अपने आख बंद कर के प्रार्थना करने लगती है और मंत्र पढ़ने लगती है।"
कमला: हाँ! वह वैध जी ने दिया था ये मुझे।
राजपाल: क्या है। इसमे
गुलाबी रंग के पत्र को देख ये तो गुलाबी है।
राजपाल (मन मे) : ये तो पत्र जैसा है।
कमला: वो महाराज इसमें जड़ी बूटी के नाम है। जो वैध जी ने कहा था मुझे कहा था युवराज को दे देने के लिए ।
कमला झट से उठा के पत्र बलदेव की तरफ करती है।
बलदेव अपना हाथ आगे बढ़ाता है लेकिन उससे पहले..
राजपाल: ज़रा मुझे भी बताओ आख़िर कौन-सी औषधि और जड़ी बूटी मंगवाते हैं ये वैध जी।
राजपाल एक दम चतुर बनते हुए कमला के कांपते हुए हाथ से वह पत्र अपने हाथ में लेता है।
देवरानी अब आँख खोल कर देखती है। "हे भगवान, ये मेरा पत्र तो नहीं है पर बलदेव बुधु ने तो जरूर सब खुल्लम खुल्ला लिखा होगा!"
बलदेव डर से अपने दोनों हाथों से कुर्सी को पकड़ लेता है।
और कमला कांपती हुई खड़ी थी।
जारी रहेगी...