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CHAPTER 7-पांचवी रात
योनि पूजा
अपडेट-23
लिंग पूजा- 'लिंग जागरण क्रिया"
गुरुजी ज़ोर से मंत्रों का उच्चारण कर रहे थे। अब उन्होंने लिंगा महाराज के पवित्र द्रव्य से भीगे हुए प्रतिरूप को मेरे मुँह में लगाया। मैंने पहले तो थोड़े से ही होंठ खोले, लेकिन लिंगा प्रतिरूप की गोलाई ज़्यादा होने से उसे थोड़ा और मुँह खोलना पड़ा। गुरुजी ने लिंगा प्रतिरूप को मेरे मुँह में डाल दिया और मैं उसे चूसने लगी। प्रतिरूप में लगे हुए द्रव्य का स्वाद अच्छा लग रहा था जिससे मैं उसे तेज़ी से चूस रही थी। गुरुजी ने लिंगा प्रतिरूप को धीरे-धीरे मेरे मुँह में और अंदर घुसा दिया और अब वह मुझे बड़ा अश्लील लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे कोई औरत किसी मर्द का लंड चूस रही हो।
गुरुजी--रश्मि! लिंगा को अपने हाथों से पकड़ो और ध्यान रहे इस 'जागरण क्रिया' के दौरान ये तुम्हारे मुँह में ही रहना चाहिए।
अब मैंने अपने दोनों हाथों से लिंगा प्रतिरूप को पकड़ लिया और चूसने लगी। गुरुजी की आज्ञा के अनुसार मैंने अपनी आँखें बंद ही रखी थीं। आँखें बंद करके लिंगा को चूसती हुई मैं अवश्य ही बहुत अश्लील लग रही होउंगी, शरम से मैंने अपनी गर्दन झुका ली। गुरुजी मेरी और गौर से देख रहे थे। उन्हें इस दृश्य को देखकर बहुत मज़ा आ रहा होगा की एक सुंदर महिला, तने हुए लंड की आकृति के लिंगा को मज़े से मुँह में चूस रही है। फिर मैंने अपना चेहरा ऊपर को उठाया और लिंगा से थोड़ा और द्रव्य बहकर मेरे मुँह में चला गया। लिंगा को चूसते हुए मैं बहुत कामुक आवाज़ निकाल रही थी।
लिंगा का प्रतिरूप चूसते हुए मुझे अपनी एक पुरानी घटना याद आ गयी। मैंने अपने पति का लंड सिर्फ एक बार ही चूसा था और तब भी मैंने असहज महसूस किया था। शादी के बाद जब पहली बार जब मेरे पति ने मुझसे लंड चूसने को कहा तो मैं बहुत शरमा गयी और तुरंत मना कर दिया। फिर और भी कई दिन उन्होंने मुझसे इसके लिए कहा, पर जब देखा की मेरा मन नहीं है तो ज़्यादा ज़ोर नहीं डाला। लेकिन बारिश के एक दिन मैं एक सेक्सी नॉवेल पढ़ रही थी और पढ़ते-पढ़ते कामोत्तेजित हो गयी।
जब मेरे पति अनिल काम से घर लौटे तो मेरा सेक्स करने का बहुत मन हो रहा था। लेकिन वह थके हुए थे और उनका मूड नहीं था। उस दिन मैं जानबूझकर देर से नहाने गयी और मैंने ध्यान रखा की जब मैं बाथरूम से बाहर आऊँ तो उस समय मेरे पति बेड में हों। मैं ड्रेसिंग टेबल के पास गयी और वहाँ खड़ी होकर नाइटी के अंदर से अपनी पैंटी उतार दी। ताकि मेरे पति को कामुक नज़ारा दिखे और मैं भी शीशे में उनका रिएक्शन देख सकूँ। मेरी ये अदा काम कर गयी क्यूंकी जब मैं बेड में उनके पास आई तो देखा पाजामे में उनका लंड अधखड़ा हो गया है।
लेकिन वह दिखने से ही थके हुए लग रहे थे और एक आध चुंबन लेकर सोना चाह रहे थे। लेकिन मैं तो चुदाई के लिए बेताब हो रखी थी। वह लेटे हुए थे और मैं उनके बालों में उंगलियाँ फिराने लगी और अपनी नाइटी भी ऐसे एडजस्ट कर ली की मेरी बड़ी चूचियाँ उनके चेहरे के सामने आधी नंगी रहें। वैसे तो मैं, ज़्यादातर औरतों की तरह बिस्तर में पहल नहीं करती थी। पर उस दिन अपने पति को कामोत्तेजित करने के लिए बेशरम हो गयी थी। अब मेरे पति भी थोड़ा एक्साइटेड होने लगे और उन्होंने मेरी नाइटी के अंदर हाथ डाल दिया।
मैं इतनी बेताब हो रखी थी की मैंने अपनी जांघों तक नाइटी उठा रखी थी। वह मेरी नंगी मांसल जांघों में हाथ फिराने लगे। लेकिन मैंने देखा की उनका लंड तन के सख़्त नहीं हो पा रहा है। फिर मेरे पति ने लाइट ऑफ कर दी, तब तक मेरे बदन में सिर्फ मंगलसूत्र रह गया था और मैं बिल्कुल नंगी हो गयी थी। मैं अपने हाथों से उनके लंड को सहलाने लगी ताकि वह तन के खड़ा हो जाए।
उन्होंने कहा की मुँह में ले के चूसो शायद तब खड़ा हो जाए. मैंने मना नहीं किया और उस दिन पहली बार लंड चूसा। सच कहूँ तो ऐसा करना मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा और दूसरे दिन मैंने अपने पति से ऐसा कह भी दिया। लेकिन उस दिन तो मेरा लंड चूसना काम कर गया क्यूंकी चूसने से उनका लंड खड़ा हो गया और फिर हमने चुदाई का मज़ा लिया।
जैसे आज मैं लिंगा के प्रतिरूप को चूस रही थी, उस दिन मैंने भी अपने पति के लंड को चूसा और चाटा था। उसके प्री-कम से लंड चिकना हो गया था और चूसते समय मेरे मुँह से भी वैसी ही कामुक आवाज़ें निकल रही थीं। गुरुजी अब मेरे पीछे आ गये और लिंगा के दूसरे प्रतिरूप को मेरे बदन में छुआकर मंत्र पढ़ने लगे।
वो मेरे बदन में एक जगह पर लिंगा को लगाते और मंत्र पढ़ते फिर दूसरी जगह लगाते और मंत्र पढ़ते। ऐसा लग रहा था जैसे कोई जादूगर जादू कर रहा हो। सबसे पहले उन्होंने मेरे सर में लिंगा को लगाया फिर गर्दन में और फिर उसकी पीठ में। जब गुरुजी ने मेरी पीठ में लिंगा को छुआया तो मेरे बदन को एक झटका-सा लगा।
गुरुजी मेरे पीछे खड़े थे और जैसे ही लिंगा मेरी कमर में पहुँचा उन्होंने लिंगा मेरे नितम्बो की तरफ किया तो मेरी स्कर्ट नीचे को सरका दी। मैंने हड़बड़ा कर लिंगा को चूसना बंद कर दिया और अब मैं लिंगा को मुँह से बाहर निकालने ही वाली थी। तभी गुरुजी ने कहा।
गुरुजी--बेटी, जैसा की मैंने तुमसे कहा था, तुम जो कर रही हो उसी पर ध्यान दो। मैं तुम्हें बता दूँ की लिंगा से ऊर्जित करने की इस प्रक्रिया में किसी अंग के ऊपर वस्त्र नहीं होने चाहिए. उस समय मैंने केवल चोली पहनी हुई थी और मेरी पीठ पर मेरी स्कर्ट भी कमरबंद की तरह बंधी हुई थी।
ऐसा कहते हुए गुरुजी मेरा रिएक्शन देखने के लिए रुके और जब उन्होंने देखा की वह उनकी बात समझ गयी है तो उन्होंने निर्मल की तरफ देखा।
गुरुजी--निर्मल लिंगा में थोड़ा द्रव्य डाल दो।
"जी गुरुजी!"
निर्मल साइड में था, मेरी पीठ में पीछे से रोशनी पड़ रही थी क्योंकि मेरी चाय मेरे सामने बन रही थी है। गुरुजी ने मेरी स्कर्ट कमर के नीचे मेरी जांघो पर खींच दी थी। मेरी पेंटी पहले ही उत्तरी हुई थी गुरुजी सहित सभी पांचो मर्दो को मेरी नग्न गांड और नितम्ब देखकर मज़ा आ रहा होगा।
निर्मल का ध्यान भी मेरी नग्न गांड पर था और जब उसने द्रव्य नहीं डाला तो गुरूजी ने उसे फिर से पुकारा
गुरुजी--देर मत करो। यज्ञ का शुभ समय निकल ना जाए. निर्मल द्रव्य डालो।
फिर नृमल ने जल्दी से द्रव्य का कटोरा लिया और मेरे पास आ गया। मैंने मुँह से लिंगा को बाहर निकाल लिया औरमैं हाँफ रही थी। मेरी आँखें अभी भी बंद थीं। उसने लिंगा में थोड़ा द्रव्य डाल दिया।
निर्मल अपनी जगह वापस गया और मैंने फिर से लिंगा को मुँह में डालकर चूसना शुरू कर दिया। इतनी देर तक गुरुजी मेरी गांड को नग्न किये हुए थे। अब मैं फिर से लिंगा को चूसने लगी तो गुरुजी ने मेरे गोल बड़े नितंबों पर लिंगा को घुमाना शुरू किया।
गुरुजी दोनों हाथों से लिंगा पकड़कर हाथ मेरी गांड पर घूमा रहे थे और साथ-साथ मन्त्र पढ़ रहे थे और फिर कुछ देर बाद वह एक हाथ से लिंगा फिर रहे थे और दुसरे हाथ से गुरुजी मेरी गांड को सहला रहे थे और जैसे ही उन्होंने लिंगा को मेरी गुदा पर लगाया मुझे झटके लगे और मैं अपने बदन को झटक रही थी।
गुरूजी के चारो शिष्यों को ये दृश्य बहुत अश्लील लग रहा होगा और मैं असहज हो गयी थी और क्यूँ ना हो? मैं एक पारिवारिक विवाहित महिला थी और अगर कोई मर्द उसकी गांड में लिंग स्पर्श करे और साथ ही साथ उसको दूसरा लिंगा चूसना पड़े तो कोई भी औरत अवश्य कामोत्तेजित हो जाएगी। ये बिलकुल थ्रीसम जैसे हालात थे। गुरुजी मंत्र लगातार पढ़े जा रहे थे और अपनी ऊर्जित प्रक्रिया को जारी रखे हुए थे। अब वह मेरे सामने आ गये और लिंगा को मेरे घुटनों में लगाया और धीरे-धीरे ऊपर को मेरे जांघों में घुमाने लगे। जैसे-जैसे गुरुजी के हाथ ऊपर को बढ़ने लगे तो मेरे दिल की धड़कनें तेज होने लगी क्यूंकी अब गुरुजी के हाथ मेरे नाजुक अंग तक पहुँचने वाले थे। तभी अचानक गुरुजी ने कहा।
गुरुजी--राजकमल यहाँ आओ।
मुझे महसूस हुआ राजकमल वहाँ आ गया है।
गुरुजी--तुम रश्मि की स्कर्ट पकड़ो। मैं इसकी योनि को ऊर्जित करता हूँ।
गुरुजी के मुँह से योनि शब्द सुनकर मुझे थोड़ा झटका लगा लेकिन फिर मैंने सोचा ये तो यज्ञ की प्रक्रिया है तो इसका पालन तो करना ही पड़ेगा। किसी भी औरत के लिए ये बड़ा अपमानजनक होता की उसके कपड़े नीचे करके उन्हें पकड़कर कोई मर्द उसके गुप्तांगो को छुए लेकिन गुरुजी के अनुसार यज्ञ की प्रक्रिया होने की वजह से इसका पालन करना ही था। इसलिए मैंने भी कुछ खास रियेक्ट नहीं किया।
राजकमल ने एक हाथ से स्कर्ट पकड़ी और आगे से कमर तक ऊपर उठा दी। लेकिन गुरुजी ने उसे दोनों हाथों से पकड़कर ठीक से थोड़ा और ऊपर उठाने को कहा। राजकमल ने दोनों हाथों से स्कर्ट पकड़कर थोड़ी और ऊपर उठा दी। अब मेरी नाभि दिखने लगे।
गुरुजी ने दोनों हाथों से लिंगा को मेरी योनि के ऊपर घुमाना शुरू किया और ज़ोर-ज़ोर से मंत्र पढ़ने लगे। उस सेन्सिटिव भाग को छूने से मेरा चेहरा लाल हो गया और मैंने लिंगा को चूसना बंद कर दिया। वैसे लिंगा अभी भी मेरे मुँह में ही था और मेरी आँखें बंद थीं। फिर मैंने महसूस किया की गुरुजी मेरी चूत की दरार में ऊपर से नीचे अंगुली फिराने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी ऊँगली के स्पर्श से मेरी चोली के अंदर निप्पल एकदम तन गये। गुरुजी की अँगुलियाँ मेरी योनि के ओंठो को छू रही थीं और अब मैंने आँखें बंद किए हुए हल्की सिसकारियाँ लेने लगी।
मैं--उम्म्म्ममम।
गुरुजी अब साफ-साफ मेरी चूत के त्रिकोणीय भाग को अपनी अंगुलियों से महसूस कर रहे थे और लिंगा को बस नाममात्र के लिए घुमा रहे थे। वह मेरी चूत के सामने झुककर इस 'जागरण क्रिया' को कर रहे थे। मैं अब उत्तेजित हो गयी थी और मेरी छूट गीली हो गयी थी और अब अपनी खड़ी पोजीशन में इधर उधर हिल रही थी और मैं असहज स्थिति में थी। कुछ देर बाद ये प्रक्रिया समाप्त हुई और गुरुजी सीधे खड़े हो गये। राजकम ने स्कर्ट नीचे कर दी और मैंने राहत की सांस ली।
गुरुजी--लिंगा में थोड़ा और द्रव्य डालो।
निर्मल ने उस गाड़े द्रव्य का कटोरा लिया और मुझे लिंगा को मुँह से बाहर निकालने को भी नहीं कहा और ऐसे ही लिंगा में थोड़ा द्रव्य डाल दिया। लिंगा में बहते हुए द्रव्य मेरे होठों में पहुँच गया और थोड़ा-सा ठुड्डी से होते हुए गर्दन में बह गया। गुरुजी ने तक-तक मेरे के सपाट पेट में लिंगा घुमा दिया था और अब ऊपर को बढ़ रहे थे।
एक मर्द के द्वारा नितंबों और चूत को सहलाने से अब मैं गहरी साँसें ले रही थी और मेरी नुकीली चूचियाँ कड़क होकरचोली में बाहर को तनी हुई थीं। निर्मल और राजकमल मेरे बिलकुल पास खड़े हुए थे मेरे स्तनों और खड़े निप्पल की शेप देख रहे होंगे और निश्चित ही उन्हें मेरी तनी हुई चूचियाँ बहुत आकर्षक लग रही होंगी।
कहानी जारी रहेगी