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महारानी देवरानी 024

Story Info
शिलाजीत, आम-बड़े रस भरे आम
4.1k words
3.5
34
00

Part 24 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

UPDATE 24

आम-बड़े रस भरे आम

देवरानी की गांड पर लंड दबते ही उसके चूतने लब खोल कर पानी उधेल दिया था जिस की भनक लगते हैं वह देवरानी अपने बेटे के साथ उठा बैठक का खेल रोक कर अपने कक्ष में चली आई।

देवरानी: (मन मैं) हाय राम! में क्या करूं इस निगोरी का जब देखो तब पानी छोड़ देती है और छोड़े भी क्यू ना? अगर कोई दिन रात उकसायेगा तो इसका भी तो यही हाल होगा। इसको रात में सपनों में परेशान किया था बलदेव ने और अब दिनो में रगड़ के पानी-पानी कर दिया।

क्या करूँ इस लड़के का?

तब वह एक कपड़ा उठा के अपने चुत का पानी साफ करती है फिर से अपनी साड़ी निचे कर रसोई की तरफ आती है और भोजन की तैयारी करने लगती है।

देवरानी इतनी खुश आज थी इस से पहले कभी नहीं हुई और इस खुशी की वजह बलदेव था।

देवरानी: (मन में) आज मेरे बलदेव के लिए मैं खुद से उसके पसंद के भोजन बनाउंगी और कुछ सब्जी ले कर रसोई में काटने लगती है।

तभी वहा कमला आ जाती है और देवरानी को ऐसे दिल से काम करता देखती है ।

कमला: (मन मैं) आज पहली बार 18 साल में इसे एक बहू की तरह दिल से खाना बनाती हुई देख रही हूँ।

कमला: महारानी आप रहने दीजिए में कर लूंगी ।

देवरानी: नहीं कोई बात नहीं ये घर मेरा भी तो है।

कमला: (मन मैं) इतने सालो से तेरा घर नहीं था। आज किसने पेल दिया तुझे जो एक पिलाई पर सावित्री बहू की तरह खुश हो कर इस घर को अपना घर बना लिया।

देवरानी: आज मटर पनीर बना रही हूँ।

कमला: किस खुशी में?

देवरानी: वह बलदेव को बहुत पसंद है ना।

कमला: (मन में) ओह! तो ये बात है बलदेव ही है इसकी खुशी का राज! पर वैसे मेरा भी दिल रोने को हो रहा है, जो प्यार है इसे 18 वर्ष पूर्व मिलना चाहिए था वह इसे अब मिल रहा है।

कमला: महारानी में आती हूँ, बाहर से कुछ और सब्जियाँ ले कर।

देवरानी: ठीक है जाओ!

कमला महल से निकल जाती है और सोचती है "अभी पिलाई नहीं हुई तो ये आलम जब बलदेव पेल देगा, तो पूरा महल हाथो पर उठा लेगी!"

इधर बलदेव भी अपना व्यायाम कर के स्नान करने जाता है उसके मन में बार-बार आज की घटना याद आ रही थी। कैसे वह देवरानी को पकड़ के उठा बैठक करवा रहा था और उसकी गांड को खूब मसला था पर देवरानी ने उसे कुछ नहीं कहा उल्टा खुश थी।

ये सब बाते सोचने हुए के उसे आगे कैसे बढ़ना चाहिए वह यही सोच रहा था । बलदेव स्नान कर के अपने कक्ष से निचे उतारता है और उसे चूड़ी की और ठक-ठक की आवाज आ रही थी।

वो रसोई के तरफ देखता है तो वहाँ देवरानी सब्जी काट रही थी।

देवरानी सब्जी काटती हुई हिलती तो उसकी सुंदर गांड के दोनों पट बारी से हिलते! जिसे देख...

बलदेव: (मन मैं) हे भगवान! माँ एक तरफ छूरी से सब्जी कट रही है और इसके खरबूजे ने मेरा दिल छलनी-छलनी कर दिया है ।

"क्या खूबसूरत लग रही है काले घने बाल! उसके नीचे इतनी सुंदर पीठ और उसके निचे लहराती हुई लरजती गांड, मोटी जाँघे देख तो दिल करता है अभी दबोच लू ये सुंदर गोरी टाँगे ।"

तभी देवरानी आहत सुन कर पलट जाती है

देवरानी: बलदेव आ गये तुम यहाँ बैठो! में खाना बना रही हूँ।

देवरानी पलट कर मुस्कुरा कर देखती है । उसके इस कातिल अंदाज में देखने से बलदेव अब पूरा घायल हो जाता है।

बलदेव: (मन में) कितनी सुंदर आखे है झील से गहरी, तीखे नयन नक्श और भरे गोल गाल को तो काट लू। अपने दांतो से निशान बना दू। ओंठ जैसे गुलाब की पंखुरिया हो नीचे वक्ष के क्या कहने, पूरे घाटराष्ट्र में ना है इतने बड़े और उसके नीचे पतली कमर। वाह! क्या बात है। ।

बलदेव: (मन में) सिंदूर और मंगलसूत्र तो और भी चार चांद लगाते है तुम पर मां!

देवरानी ऐसे बेटे को खोए देखे अपने सर को झुका कर अपने पैरो की तरफ देखने लगती है और अपने अंगूठे से जमीन कुरेदने लगती है।

बलदेव होश में आते हुए "माँ आज खाने में क्या बना रही हो बड़ी खुशबु आ रही है / लगता है पहली बार कोई विशेष पकवान बना रही हो"

देवरानी: (मन में) तुम्हारे लिए ही बना रही हूँ और इसकी वजह तो तुम ही हो। इतना खुश रखते हो मुझे के में यहाँ खुशी में खाना बनाने आ गई ।

देवरानी: बेटा आज में पहली बार नहीं बना रही हूँ जब तुम छोटे थे तो मेरे लिए विशेष पकवान बना कर खिलाती थी।

बलदेव: हाँ माँ मुझे अब भी याद है के आप मुझे किसी और का बना हुआ खाना नहीं देती थी।

देवरानी: चहकती हुई हुए फिर सब्जी काटती है और उसके दूध अब हिल रहे-रहे "तुम्हें याद है बेटा!"

बलदेव: दूध को देखते हुए "हाँ माँ मुझे याद है।"

इतने में सब्जी काट राही देवरानी की नजर अपने बेटे की नजर पर जाती है जो उसके हिलते दूध को देख रहा था और उसका ध्यान भटकने से उसकी छूरी सब्जी के उसके उन्गली पर भी वार करती है।

जिस से देवरानी दर्द से चिहुक उठती है ।

देवरानी: "आआआह!" आख बंद कर के अपने उन्गली पकड लेती है।

बलदेव ये देख कर झट से अपनी माँ का उन्ली पकडता है और अपनी माँ को दर्द में देख वह उसका ऊँगली ले कर अपने मुह में रख लेता है।

देवरानी की जो आँखे पहले से बंद थी और ज़ोर से बंद हो जाती है। क्योंकि बलदेव ने उसकी ऊँगली अपने मुह में ले ली है। बलदेव अब ऊँगली को ले कर उसके मुह में रख जुबान से छूता है और चूसने लगता है।

देवरानी सिसक उठती है और बलदेव उसके ऊँगली चूसे जा रहा था, देवरानी इस से गरम हो जाती है और बलदेव के और करीब आ जाती है।

कुछ एक मिनट चूसने के बाद देवरानी अपने आँख खोलती है।

देवरानी: बलदेव...बेटा बस अब मझे दर्द नहीं हो रहा है ।

बलदेव भी होश में आता है और,

बलदेव: माँ मुझे क्षमा कर दो।

देवरानी: क्षमा किस बात की?

बलदेव: वह आपकी आज्ञा के बिना आपके ऊँगली...

देवरानी: (मन में) कितना शिष्टाचारी है बलदेव मेरा कितना सम्मान करता है।

देवरानी: बेटा तुमने वही किया जो एक युवराज अपने माँ को दर्द में देख करता, उल्टा मुझे तुम्हें धान्यवाद करना चाहिए के तुम मुझे दर्द में देख तुम कुछ भी करने को तैयार हो।

बलदेव: हाँ माँ में तुम्हारे दर्द में देख नहीं सकता और तुम्हारे लिए मैं पूरी दुनिया से लड़ सकता हूँ।

ये बात सुन कर देवरानी के आंखों में आसू छलक आते हैं और वह हल्के से बलदेव का सर अपने सर पर रख लेती है ।

देवरानी: अब तू जा मुझे काम करने दे।

बलदेव मुस्कुराता हुआ वहाँ से चला जाता है।

भोजन का समय होता है और कमला और राधा सबका भोजन लगा देती है सब भोजन कर के चले जाते है।

महारानी सृष्टि: राधा तुम काम खत्म कर के, मेरे कक्ष में आना!

थोडी देर बाद सृष्टि की दासी राधा अपना काम खत्म कर के महारानी सृष्टि के कक्ष में जाती है जहाँ वह देखती है के वह गहरी सोच में डूबी हुई थी।

राधा: जी महारानी!

शुरुआत: राधा आज कल इस देवरानी को क्या हुआ है जरूरत से ज्यादा प्रसन्न रहती है?

राधा: हाँ महारानी आज कल खुश रहती है वो।

शुरुआत: वह तो हमें भी पता है पर इसकी वजह क्या हो सकती है?

राधा: शायद महाराज नहीं है इसलिए!

शुरष्टि: नहीं नहीं...आज मैंने उसे कम से कम 15 साल बाद खुद से खाना बनते हुए देखा और आज कल वह हमेशा चहकती रहती है, मैं चाहती हूँ......

राधा: क्या महारानी सृष्टि?

शुरूः तुम इस बात का पता करो।

राधा: ठीक है।

शुर्ष्टि: सुनो अगर तुम ये जानकरी निकाल ली तो तुम्हें हम इनाम देंगे।

राधा खुश हो कर चली जाती है।

इधर कमला सबको खाना खिलाने के बाद अपनी भारी गांड मटकाती हुई अपना और वैध जी का खाना ले कर वैध जी के पास आ जाती है

दरवाजा बंद होने पर ठोकती है "वैध जी!"

"ओ वैध जी."

वैध जी फिर दरवाजा खोलते हैं।

कमला: लगता है फिर से तेल लगा रहे और घर में प्रवेश करती है।

कमला के चूचे ब्लाउज से झाक रहे थे जिसे देख वैध जी अपने होंठो पर जबान फेरते है।

वैधः दरवाजा तो लगा दो।

कमला: क्यू में क्या तुम्हारी पत्नी हूँ जो दरवाजा लगाउ। में सिर्फ आपको खाना देने आई हूँ।

ये कह कर कमला हसती हुई दरवाजा लगा देती है।

कहीं न कहीं कमला की चूत में भी खुजली हो रही थी, पर वह झूठे नखरे करना अछि तरह से जानती थी।

कमला: चुप चाप खाना खाओ वैध जी!

या वह नीचे बैठ के खाना लगाने लगती है।

वैध जी: पत्नी होती तो दरवाजा भी नहीं लगाता। तब तो मैं डरता ही नहीं किसी से!

और ये बात सुन कर कमला का स्तन फूलने लगता है जिसे वैध की नज़र से बचाना मुश्किल था।

वैध खाने लगाती हुए कमला के स्तनों को बड़े गौर से घूर रहा था।

कमला: मैं एक विधवा हूँ अब मैं कैसे आपकी पत्नी बन सकती हूँ। ये समाज तो मुझे जिंदा जला देगा (उसके चेहरे पर मयूसी छा जाती है।)

वैध: कमला तुम कहो तो मैं विवाह कर लू तुमसे।

कमला है कर बोली "बूढ़े अपनी आयु देखी है।"

वैद्य: मैं मानता हूँ मेरी आयु 60 के ऊपर है पर तुमने मेरा लिंग देखा है!

ये बात सुन कर कमला शर्मा जाती है।

कमला: आप बड़े गंदे हो!

वैध: अब अपनी उस योनि से पूछो के में कितना जवान हूँ।

कमला: चुप करो बदमाश! अब खाना खाओ।

दोनो बैठ के भोजन करने लगते हैं।

वैध: आज का भोजन बहुत स्वाद है और रोज़ से अलग है ।

कमला: हाँ आज महारानी देवरानी ने खुद बनाया है।

वैध: हम्म! आज किस खुशी में?

कमला: (मन मैं) अब तुम्हें क्या बताउ वह अपने बेटे के प्यार पर पड़ने वाली है।

कमला: वह भोजन उसने अपने बेटे के लिए ख़ास पकवान बनाये थे ।

वैध: हम्म! बढ़िया है! वैसे भी युवराज को अच्छा खाने की आवश्यकता है।

कमला: सबको नहीं है? उसको ही क्यों?

वैध: मैं उसे हिमालय की सबसे उत्तम जड़ी बूटी दे रहा हूँ।

कमला: किस लिए?

वैध: क्योंकि वह एक जवान है और उसके कद काठी के हिसाब से उसे ज्यादा पौष्टिक आहार चाहिए जिसकी पूर्ति सिर्फ भोजन से नहीं हो सकती।

कमला: ऐसा और क्या फायदा है इससे?

वैध: उस में शिलाजीत है जो मैं खुद हिमालय से लाया था और मैं उसे कुछ और जड़ी बूटिया मिला कर दे रहा हूँ ।

कमला: इससे क्या होगा?

वैध: शिलाजीत, जिसे पहाड़ों के विजेता और कमजोरी के विनाशक के रूप में भी जाना जाता है, हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं में पाया जाने वाला एक प्राकृतिक, तारकोल जैसा पदार्थ है। शिलाजीत एक कायाकल्प करने वाले पुराने प्राकृतिक पदार्थ के रूप में लोकप्रिय है जो ऊर्जा, जीवन शक्ति को बढ़ाता है और विभिन्न स्वास्थ्य स्थितियों में सुधार करने में संभावित रूप से सहायक है।

वैध: जल्दबाजी से "इस से उसके अंग जो मजबूत पहले से घोड़े जैसे है, वो 10 घोड़ो के बराबर मजबूत हो जाएंगे और उसका लिंग भी लंबा और मोटा हो जाएगा।"

कमलाः छि! वैध जी तुम भी ना!

वैध: तुम्हें क्या पता एक राजा को इतना मजबुत होना पड़ता है के वह युद्ध भी कर सके और युद्ध से वापिस आ कर अपने को खुश भी कर सके

कमला: इसीलिए राजा इतनी रनिया रखते हैं।

वैध: हाँ! पर हर राजा इतना चतुर नहीं के वह हर रानी की इच्छा पूर्ण कर दे और शिलाजीत तो वरदान है जिसके बारे में सबको नहीं पता है और ना ही वह सबके हाथ आता है।

कमला: इतना ताकतवर है क्या वह तो तुम भी खाते हो?

वैध: मेरी आयु ज्यादा हो गई इसलिए में उतनी मात्रा में नहीं ले सकता, जितनी मात्रा में बलदेव खा सकता है और खाने के बाद इसके पाचन के लिए भोजन और डट कर व्यायाम भी करना होता है।

कमला: तो बलदेव अगर दस घोड़े के बराबर हो जाएगा तो (कमला मन में ये सोचती है के देवरानी का क्या हाल होगा फिर) उसका लिंग घोड़ी के अलावा तो कोई और नहीं ले पाएगी ।

वैध: उसके साथ जो स्त्री सहवास करेगी वह जीते जी स्वर्ग का अनुभव करेगी, जो स्त्री योग करती है, कद काठी सही है और सेहत के लिए जड़ी बूटीया लेती है, उसके साथ ही बलदेव का वह सम्बंध उचित होगा। किसी साधरण स्त्री में प्रवेश करते ही स्त्री बहोश हो सकती है।

कमला: (मन में) हाय राम! ऐसे कोई साधारण स्त्री तो मर ही जाएगी फिर, अच्छा हुआ बलदेव अपने माँ के पीछे लगा है। वही योग करती है और जड़ी बूटीया लेती है और उसकी कद काठी भी ऊंची है।

वैध: उसका लिंग कुछ समय में इतना मजबूत हो जाएंगे की उसने असली घोड़ी को भी पेल दिया तो वह भी हिनहिनाने लगेगी।

कमला: फिर तो वह गुदा मैथुन कर ही नहीं सकता।

वैध: तुम्हें बहुत पता है।

कमला: आखिर में वैध की आधी पत्नी जो हूँ और आँख मारती है।

वैध: हां कमला! भले ही स्त्री कितने भी मजबुत हो पर अगर बलदेव ने पीछे से प्रवेश कर दिया तो स्त्री की पूंछ की हड्डी खिसक या टूट सकती है।

दोनो बात वह कर रहे द के कमला के कानो में पायल के बजने की आवाज आती है और वो वैध को चुप होने का इशारा करती है और वो उसका दरवाजा खोल देखती है, तो उसे कोई नहीं दिखता है, फिर से वो दरवाजा बंद कर के वैध जी के पास आती है।

.

वैध जी को देख वो चौक जाती है क्योंकि वो अभी अपना लंड खोल कर बिस्तर पर बैठे थे और मुस्कुरा रहे थे ।

वैध: कमला! हाथ धो कर आ जाओ!

कमला जा कर अपना हाथ धो कर पोछती है और अपना ब्लाउज का बटन खोलती है।

वैध कमला के दूध देख कर अपने लंड पर तेजी से हाथ ऊपर नीचे करना शुरू कर देता है।

कमला ब्लाउज खोल कर वैध जी के पास बिस्तर में आ जाती है और वैध का लंड लेती है और हिलाने लगती है वैध अपना आंख बंद कर मजे ले रहा था।

अब वैध एक हाथ बढ़ा कर कमला के एक दूध को पकड़कर सहलाने लगता है और दूसरे हाथ से सिर्फ पेटीकोट में बैठी कमला को अपने लंड पर बिठा लेता है और फिर उसके होठो को अपने होठों से छूना शुरू कर देता है और निचे अपने दोनों हाथ से खूब कस के उसके दूध को दबाता है।

कमला आँख बंद कर सिसक रही थी और अपने गांड को वैध के लौड़े पर गोल-गोल घुमा रही थी।

कमला: "आह वैध जी!"

वैध: तेरे ये स्तन! मेरे जी करता है तुझे में माँ बना दूं और तेरे स्तन दूध से भर जाए तो मैं उन्हें निचोडू!

कमला: हय दैया ये समाज हमें मार देगा।

वैध: तुम्हारे बच्चे तो तुम्हे छोड़ कर चले गए?

और अपना हाथ कमला के गांड पर रख कर दबाता है।

कमला: आआहह वैध जी!

वैध: तुम्हें एक बच्चा दे दूंगा तो तुम्हारा मन भी लगा रहेगा!

ये कह वैध कमला को अपने ऊपर से खींच नीचे ले लेता है और उसके पेटीकोट को एक झटके में उतार फेंकता है और अपना पूरा बदन कमला बदन से रगड़ने लगता है।

कमला: आह दैया! में मर गई! धीरे करो!

वैध अपना लिंग को उसके चूत पर हल्के से दो बार रगड़ कर एक झटके से पेल देता है

कमला अपनी आखें मूँद लेती है।

"आह वैध जी!" "बस वैध जी!"

वैध: "ले ये ले मेरी रानी!"

"घप्प गप्प" कि शोर में भरी दोपहर में वैध कमला की चुत मार रहा था।

दस मिनट की चुदाई के बाद वैध अपना वीर्य कमला की योनि में छोड़ देता है और निढाल हो जाता है।

वैध जी हफ्ते हुए लेट जाते हैं

कमला: (गुस्से में) वैध आपने पानी अंदर क्यू छोडा?

वैध: घबराओ नहीं रानी तुम गर्भवती नहीं होगी।

कमला: अगर हो गई तो!

वैध पास रखे एक कटोरे से एक जड़ी निकल कर कमला को देता है हर दस दिन में इसका सेवन करो एक बार भी गर्भ नहीं ठहरेगा।

कमला वह जड़ ले कर खा लेती है और अपने ब्लाउज साड़ी पहन कर तैयार हो कर अपना पोटला उठा कर जाने लगती है।

वैध: सुनो अगर गर्भवती हो भी गई तो मैं पिता बनने तैयार हूँ।

ये सुन कर कमला....

कमला: चल हट बूढ़े!...

मुस्कुराती हुई अपने गांड मस्ती में मटकाती हुई वापस चली जाती है।

भोजन के बाद बलदेव और देवरानी अपने-अपने कक्ष में आराम कर रहे होते संध्या 5 बजे उठ कर देवरानी उठ कर योग करती है, फिर जा कर स्नान कर साडी बदल लेती है।

देवरानी काली साड़ी में बला की ख़ूबसूरत लग रही थी। फिर वह बलदेव को खोजने निकल जाती है। बलदेव भी तैयार हो कर अपने मंत्री के साथ बैठ कर किसी योजना पर काम कर रहा था और मंत्री उसे क्षेत्र और राष्ट्र के भुगोल की जानकरी देते हुए आक्रमण करने की नीति समझा रहे थे।

देवरानी उसे निहारते हुए "बलदेव!"

बलदेव उसे देख कर खुश हो जाता है और वह मंत्री को "मंत्री जी आप से हम बाद में बात करेंगे"

ये सुन कर मंत्री "जो आज्ञा युवराज!" बोल वहा से चला जाता है।

बलदेव अपनी माँ को देखता है।

उसकी माँ एक काली साड़ी पहने हुई थी और उसकी पतली-सी साड़ी से झांकते हुए उसके बड़े दूध साफ दिख रहे हैं जिसे देख बलदेव की आँखे वही जम जाती है।

देवरानी: (मन में) देख ले मेरे बच्चे! मैं तेरे लिए ही सजती संवरती हूँ और अभी कैसे तूने मेरे आने पर कैसे मंत्री को भगा दिया, कितना ख्याल है तुझे मेरा!

बलदेव: आओ माँ! उधर क्यों खड़ी हो?

देवरानी: बेटा ये सब युद्ध यंत्र षड्यंत्र से तुम्हारा मन नहीं भरता! इससे थकते नहीं हो?

बलदेव: ये सब तो एक राजा की जिम्मेदारी होती है, भला इस से कैसे कोई राजा बच सकता है?

देवरानी: क्या राजा की जिम्मेदारी बस युद्ध करना और दुसरो पर विजयी होना ही होती है उसके लिए उसका परिवार कुछ नहीं?

बलदेव: नहीं मां! युद्ध तब किया जाता है जब उसके परिवार की रक्षा करनी हो और ये प्र भी राजा का ही परिवार होती है । परन्तु कुछ राजा लोभी होते हैं, जो जीवन भर अपने राज्य को बढ़ाने में लगे रहते हैं और अपने परिवार को भूल जाते हैं।

देवरानी: पुत्र! तुम कितने बुद्धिमान हो।

बलदेव: धन्यवाद पर बेटा तो मैं आपका ही हूँ और मैं अपने परिवार को पहली प्रतिमिकता देता हूँ जो की इस छोटे से जीवन में हमारे साथ होते हैं।

देवरानी: मज़ाक करते हु " पर तुम तो दिन भर व्यस्त थे युद्ध की योजना बनाते हुए. मेरे पास तो आए ही नहीं।

बलदेव: माँ तो ये बात है तो चलो हम कहीं चलते हैं।

देवरानी: कहा जाएंगे! मेरे बेटे को तो अभी युद्ध करना सीखना है।

बलदेव: माँ तुम से बढ़ कर मेरे लिए राजपाट नहीं है । में तो तुम्हारे लिए राज्य भी छोड़ सकता हूँ।

देवरानी ये सुन कर खुश हो जाती है।

देवरानी: बलदेव बाग में चलते हैं और वह हम आम देखेंगे।

बलदेव: ठीक है तो चलो।

या दोनों महल से निकल कर अपने बागीचे की यात्रा करते हैं जहाँ पर बहुत से आम के पेड थे।

आम के पेड़ देख और उसपे लटक रहे कहीं पर हरे और कहीं पर पीले आम देख देवरानी आम का पेड़ का चुनाव करने लगती है।

बलदेव की माँ पेड़ के ऊपर आम निहार रही थी और बलदेव निचे उसके गांड ताड रहा था । उसकी कसी हुए गोल गांड को देख अचानक से बलदेव के मुह से निकल जाता है।

बलदेव: क्या तारबूज है?

ये सुन कर देवरानी समझ जाती हैं कि बलदेव उसके पीछे खड़ा है और क्या देख रहा है।

देवरानी: बेटा यह तरबूज नहीं आम है।

बलदेव: हाँ वह उस तरफ तरबूज है।

देवरानी: (मन में) मुझे पता है तुमने मेरी गांड को तरबूज कहा है, इतने पसंद हैं तुम्हें ये बलदेव पर ये तरबूज़ तो नहीं है। बलदेव!)

और देवरानी मुस्कान देती है

देवरानी: ये आम कैसे लगे। ये दशहरी आम है।

और देवरानी मुड़ती है।

देवरानी के मुडने से उसके बदन पर से पतली साडी का पल्लू सरक जाता है और उसका दूध सीधे बलदेव के सामने आ जाते हैं।

बलदेव देखता है उसके माँ के भारी भरकम दूध उसके ब्लाउज में समा नहीं रहे हैं और वह बस उन्हें देखे जा रहा था।

देवरानी: कैसे लगे दशहरी आम

बलदेव: माँ वह बहुत मस्त है बड़े-बड़े में तो मैं चूस-चूस कर खाऊंगा।

देवरानी आमो में इतना खोई थी के वह अपने साडी के पल्लू का फिक्र ही नहीं थी । जब वह बलदेव की ये बात सुनती है तो उसका ध्यान अपने स्तनों पर जाता है और शर्मा कर अपने स्तन को पल्लू से ढक लेती है।

देवरानी: क्या इस पेड़ पर से हम आम तुड़वा ले।

बलदेव: हाँ माँ इस पर जितने बड़े आम है उतने बड़े मैंने कहीं नहीं देखे।

देवरानी को भी शरारत सूझती है

देवरानी: पर इस आम को खाने की इच्छा तो सब करते हैं पर खाने की कला सब में नहीं हैं ।

बलदेव: इस आम को सिर्फ खूब दबा-दबा के, इसके ऊपर से पहले इसका दूध निकाल कर जो चूसने में मुझे मजा है, वह किसी और में नहीं।

देवरानी: तो तुम्हें पता है इसे कैसे चूसा जाता है। (हलका शर्मा जाती है)

बलदेव: हाँ माँ!

देवरानी: पर इसे पाना आसान नहीं हैं बालक! ये बड़े उचे पेड़ है और बड़ी कथिनाई से टूटते है।

बलदेव: अब मैं भी कोई छोटा बच्चा नहीं रहा मां। इतने ऊंचे पेड के बड़े आम मुझे जैसे ऊँचे कद के लिए ही है। ये मुझे पसंद है और कैसे तोड़ते हैं मुझे पता है, बलदेव कभी कठीनाई से नहीं भागता।

देवरानी ये बात सुन अपनी एक उन्गली अपने मुह में दबा लेती है।

और बलदेव झट से आम के पेड़ पर चढ़ कर, दो पके हुए आम नीचे गिरा देता है।

उसके फुरती और पेड पर चढ़ने की शैली से देवरानी बहुत प्रभावित होती है और वह निचे गिरे दोनों आम जो काफी बड़े थे अपने दोनों हाथो से उठाने के लिए झुकी जाती है और जैसे वह उठती है उसके दोनों हाथो में आम थे उस पर उसका पल्लू इस बार पूरा गिर जाता है।

बलदेव पेड़ पर चड्ढा हुआ था और माँ को झुक कर आम उठाते हुए देखता है और जैसे ही उसका पल्लू गिरा उसके माँ की दूध के साथ गहरी नाभी और मांसल पेट देख कर उसका लौड़ा खड़ा हो जाता है।

देवरानी दोनों हाथ में आम लिए खड़ी रहती है और उसका बेटा उस पर अपने आखे सेक रहा था।

देवरानी को समझ नहीं आ रहा था वह क्या करे? । बलदेव झट से पेड से नीचे उतारता है और अपनी माँ की स्थिति पर मस्कुराते हुए, उसके पास जा कर दोनों हाथो में रखे आम को अपने हाथ से पकड़ कर देवरानी के आंखों में देख कर कहता है।

"माँ क्या बड़े और पके आम है।"

देवरानी अपना सर नीचे कर लेती है और लज्जा कर, अंदर ही अंदर मुस्कुरा रही थी।

बलदेव उसके हाथो से आम ले कर एक कपड़े में बाँध लेता है, तब तक देवरानी अपना पल्लू ठीक करती है।

बलदेव: माँ तुम्हें बाग से कोई और फल चाहिए?

देवरानी: फल तो नहीं पर मुझे गन्ना पसंद है पर... और वह शरारत भरी मुस्कान देती है।

बलदेव: पर क्या मां

देवरानी: समय ज्यादा हो गया, और तुम्हे भी तो तरबूज अच्छे लगे थे।

बलदेव: हाँ वह उस तरफ है।

देवरानी: (शरारती मुस्कान से) पर वह आम नहीं जो झट से टूट जाए । तुमको उसके लिए खुदाई का अभ्यास होना चाहिए तभी तरबूज हाथ आएगा नहीं तो थक जाओगे और कुछ नहीं मिलेगा।

बलदेव: हाँ पर भले ही मुझे इसका अभ्यास नहीं। पर में जी जान से मेहनत करूंगा और तरबूजा निकाल कर तोड़ उसका रस पीउंगा।

(बलदेव उसकी आंखों में देख कहता है)

देवरानी ये सुन कर अपना सुर झुका लेती है।

मन में "हे भगवान ये तो मेरी गांड फाड़ने की बात कर रहा है।"

देवरानी: पर बलदेव खोदोगे कैसे?

बलदेव: आपको गन्ना पसंद है ना हम पास वाले खेत से अच्छा मोटा और लंबा गन्ना ले आएंगे और फिर तरबूज के लिए खुदाई करेंगे

देवरानी: सोच में पड कर "पर इतना मजबूत और मोटा और लंबा गन्ना कहा मिलेगा जिस से हम तरबूज खोद सके"

बलदेव: मैंने देखा है माँ ऐसा गन्ना जो जमीन को खोदने वाली लोहे की खांटी जैसा है।

ये सुन कर देवरानी की चुत में चींटी रेंग रही थी।

देवरानी: पर कहीं गन्ना टूट गया तो खुदाई अधूरी रह जाएगी।

बलदेव: मुझे अस्त्र शस्त्र का ज्ञान है वह गन्ना ऐसे तरबूज को अच्छे से फोड़ सकता है।

देवरानी: (मस्कुराते हुए) इतना भरोसा है!

बलदेव: हाँ पुरा भरोसा और बीच में खुदाई नहीं रुकेगी मां!

बलदेव: तो चलो माँ हम चलते हैं पहले गन्ना लेने।

देवरानी कुछ सोच कर अंदर से घबरा जाती है और कहती है।

"बेटा किसी और दिन तुम उस गन्ने से खोद के फिर फोड कर खा लेना अभी हम चलते हैं"

दोनो एक-एक हाथ में मैं आम लिए चूसते हुए महल की ओर बढ़ चले ।

कभी बलदेव माँ को देख कर आम चूसता तो कभी देवरानी ऐसा करती और दोनों एक दूसरे से हंसी मजाक करते हुए महल वापस आ जाते हैं।

जारी रहेगी

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